रोजेदारों को शारीरिक व मानसिक लाभ मिलते हैं : नदीम पठान

जाफर खान लोहानी 

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मनोहरपुर (जयपुर)। आंधी ग्राम के मशहूर कांग्रेसी नेता नदीम खान पठान ने कहा कि रोजो के दौरान हमारी शारीरिक प्रतिक्रिया क्या होती है?  जानकारी (पहले दो रोजे)

पहले दिन के दौरान, रक्त शर्करा का स्तर गिर जाता है, जिसका अर्थ है कि रक्त में शर्करा के हानिकारक प्रभाव कम हो जाते हैं, हृदय गति धीमी हो जाती है और रक्तचाप कम हो जाता है।  सिरदर्द विषहरण के पहले चरण से उत्पन्न होता है।  चक्कर आना  सांसों की दुर्गंध और जीभ पर पदार्थ का जमा होना

(तीसरा से सातवां रोजे)

पहले चरण में शरीर की चर्बी टूट जाती है और ग्लूकोज परिवर्तित हो जाता है। कुछ लोगों की त्वचा नरम और चिकनी हो जाती है। शरीर को भूख लगने की आदत होने लगती है और इस तरह साल भर का पाचन तंत्र उस छुट्टी का जश्न मनाता है जिसकी उसे सख्त जरूरत होती है। श्वेत रक्त कोशिकाएं और प्रतिरक्षा प्रणाली बढ़ने लगती है। इस प्रक्रिया के दौरान मुझे मामूली दर्द महसूस होता है विषहरण शुरू हो गया है। आंतों और बृहदान्त्र की मरम्मत शुरू हो गई है।  आंतों की दीवारों पर जमा पदार्थ ढीला होने लगता है।

(8वें से 15वें व्रत तक)

आप पहले से ही ऊर्जावान महसूस करते हैं। मानसिक रूप से सतर्क और हल्का महसूस करें। पुरानी चोटें और घाव मौजूद महसूस होने लग सकते हैं। क्योंकि अब आपका शरीर अपनी रक्षा के लिए अधिक सक्रिय और मजबूत हो गया है।  शरीर अपनी ही मृत या कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को खाना शुरू कर देता है जिन्हें आमतौर पर कीमोथेरेपी द्वारा मारने की कोशिश की जाती है।  इस कारण कोशिकाओं से पुराने दर्द और दर्द का अहसास अपेक्षाकृत बढ़ जाता है। नसों और पैरों में तनाव इस प्रक्रिया का स्वाभाविक परिणाम है।  यह एक चालू प्रतिरक्षा प्रणाली का संकेत है। रोजाना नमक से गरारे करना तंत्रिका तनाव का सबसे अच्छा इलाज है।

(16वें से 20वें व्रत तक)

शरीर पूरी तरह से भूख और प्यास का आदी हो चुका है। आप छोटे, चाकलेटी और अटके हुए महसूस करते हैं। इन दिनों आपकी जीभ बहुत साफ और लाल हो जाती है। सांसें भी ताज़ा हो जाती हैं। शरीर के सभी विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। पाचन तंत्र दुरुस्त हो जाता है, शरीर से अतिरिक्त चर्बी और सड़े-गले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। शरीर अपनी पूरी ताकत से अपना कर्तव्य निभाने लगता है।

(20वें से 30वें उपवास तक)

20वें रोजे के बाद दिमाग और याददाश्त तेज हो जाती है। ध्यान केंद्रित करने और सोचने की क्षमता बढ़ती है, इसमें कोई संदेह नहीं है, शरीर और आत्मा तीसरे दशक के आशीर्वाद का पूरी तरह से आनंद लेने में सक्षम होते हैं।

यह सांसारिक लाभ है, जो निस्संदेह अल्लाह ने हमारी भलाई के लिए हम पर थोपा है। परंतु भगवान की कृपा देखिए कि उनकी आज्ञा का पालन करने से इस लोक के साथ-साथ हमारे परलोक को भी संवारने की सर्वोत्तम व्यवस्था हो गई है।

पठान ने शायराने अंदाज में कहा कि "मांग लो गिड़गिड़ा कर खुदा से, अभी मगफिरत सस्ती है, रमज़ान में रब की रहमत बरसती हैं। अब हवाएं ही करेंगी  रौशनी का फ़ैसला, जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा।