साबी का जीवन ख़तरे में : राम भरोस मीणा
लेखक : राम भरोस मीणा

लेखक प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद् है।

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साबी नदी के पेटे में सीवर लाइन डाल लगाएंगे 10 एम एल डी का प्लांट। इस कार्य को टक्नोक्राफट कंस्ट्रक्शन  कम्पनी प्राईवेट लिमिटेड नोएडा नगरपरिषद कोटपुतली के साथ मिलकर कर रही सीवर लाइन डालने का काम। अब नदी उगलेगी अमृत की जगह ज़हर। नदी क्षेत्र के आसपास में बसे गांवों कस्बों की 1 लाख 50 हजार से अधिक आबादी जहरीले गंदे नालों के पानी से होगी प्रभावित।

राजस्थान में जयपुर जिले के त्रिवेणी धाम शाहपुरा के नजदीक धारा जी(अजीतगढ़ के टीलों) से सदियों से पवित्र निर्मल वर्षा जल के साथ एक लम्बे चौड़े क्षेत्र में बहते हुए जयपुर तथा अलवर जिलों (वर्तमान में जयपुर, कोटपूतली - बहरोड़, खैरथल जिले) में बहते हुए हरियाणा में प्रवेश कर यमुना जी में अपने को समर्पित करने वाली तथा राजस्थान व हरियाणा राज्यों के भु गर्भ के जल को तालाबों की तरह भरने वाली साबी नदी जो पावटा, कोटपूतली, बहरोड़, नीमराना, मुंडावर, खैरथल के लिए वरदान मानें जाती रही साबी आज स्वयं के अस्तित्व को नहीं बचा पा रहीं, अपने पेटे में ज़हर निगलने कों तैयार की जा रही यह नदी आगामी समय में मां नहीं रहकर डायन बन जाएंगी।

साबी उद्गम से यमुना में शामिल होने तक एक तरफ़ दर्जनों छोटे बड़े बांधों से घिर सी गई है , 150 से 250 मीटर से अधिक चौड़ा बहाव क्षेत्र रखने वाली यह नदी सिकुड़न के साथ मृत्यु की शय्या पर लेटे हुए सहमीं सी दिखाई देने लगी है। साबी वर्ष 1990 के आसपास अपने वास्तविक स्वरूप में बहतीं हुईं दिखाई दीं थीं, लेकिन उसके बाद बड़ते अतिक्रमण नदी क्षेत्र में बने फार्म हाउस तथा पनपें अवरोधों के साथ बिगड़ते पर्यावरणीय हालातो, वर्षा के पर्याप्त नहीं होने से एक तरफ़ नदी बहना बंद हो गई वहीं इसकी सहायक नदी नारायणपुर वाली नदी, सोता नाला जैसे बड़े स्रोत जों नदी को नदी स्वरूप देते वो आज अपना अस्तित्व पुर्ण रूप से खोने के साथ औधोगिक क्षेत्रों, फार्महाउस, होटलों में तब्दील हो गये, लगातार बड़ते अतिक्रमणों अवरोधों के चलते आज युवा पीढ़ी साबी के वास्तविक स्वरूप तथा क्षेत्र के विकास में नदी का जों योगदान रहा उसे भुल से गए।

साबी बिगड़ते मौसम चक्र, बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग, गिरते जल स्तर, बड़ते पर्यावरणीय ख़तरों के साथ प्रशासनिक अनदेखी के चलते अपने बहाव क्षेत्र में उपजी वनस्पतियों, झाड़ियों, वनसम्पदा को खो चुकी, इसके साथ अपने क्षेत्र में बनीं आर्द्रता नम भूमि को भी खो चुकी है। नदी क्षेत्र में नष्ट हुई प्राकृतिक संपदाओं से जल स्तर में तेजी से गिरावट आने लगी है। नदी किनारे देखने पर लगता है कि नदी है हि नहीं।

साबी के साथ बड़े अत्याचारों से नदी की कहानी यहीं पूरी नहीं होती अब यह नदी से बदल कर कचरा ढोने वाली, ज़हर निगलने वाली बनाईं जा रही है, कोटपूतली नगरपरिषद से चार किलोमीटर दूर बहने के बावजूद भी शहर का मल मूत्र, जहरीले पानी को सीवर लाइन के माध्यम से चतुर्भुज गांव के पास नदी में डालने का काम टक्नोक्राफट कन्सन्ट्रेशन कम्पनी प्रा. लि. नोएडा द्वारा नगरपरिषद के सहयोग से तैयार किया जा रहा है, कम्पनी 10 मेघा लीटर प्रतिदिन का सिवरेज ट्रिटमेंट प्लांट लगाए गी जिसमें प्रथम फ़ैज़ में उत्तर-पूर्व दक्षिण-पूर्व तथा पूर्वी भाग के सभी परिवारों को जो नेशनल हाई-वे के पूर्व का हिस्सा है जिसमें अनुमानित 25 लाख लीटर पानी मल मूत्र अपशिष्ट कों प्रति दिन नदी में डालने के लिए जोड़ा गया है।

नदी के साथ अत्याचार यही खत्म नहीं हो रहें, पावटा नगरपालिका के सम्पूर्ण कुड़ा कचरा निगल रही है वहीं बहरोड़ नीमराना के अपशिष्टों कों नदी तक पहुंचाने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। आखिर इस अमृत दायिनी मां स्वरूप साबी कों डायन क्यों बनाया जा रहा है, एक सोचने योग्य है। राज्य सरकार को नदी के महत्व तथा आगामी समय में उपजने वाली क्षेत्रीय समस्याओं को मध्य रखते हुए इस पर विचार करने के साथ साबी पर बनने जा रहे सिवरेज ट्रिटमेंट प्लांट पर रोक लगानी चाहिए जिससे नदी के पारिस्थितिक तंत्र बिगाड़ने से बचें वहीं नदी बहाव क्षेत्र में बनने वाले अवरोधों, कुड़ा पात्रों, जहरीले बदबू दार पानी से नदी कों बचाया जा सके। क्योंकि नदी के बहाव क्षेत्र में यदि सिवरेज ट्रिटमेंट प्लांट लगाए जाते हैं या कचरे डालें जातें हैं उससे नदी का स्वभाव बदलता है, ऐसे में नदी अमृत की जगह ज़हर उगलने लगतीं हैं जो उस क्षेत्र में बसे लोगों, जानवरों, पशु पक्षियों ओर वनस्पतियों के लिए घातक होता है, इसलिए नदियों को स्वच्छ रखना बहुत जरूरी है। लेखक के अपने निजी विचार है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)