लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं
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बीते दिनों एक अखबार में समाचार पढा़ कि दिल्ली में जल्द ही यमुना घाट पर हरिद्वार और बनारस की तरह भव्य आरती का नजारा दिखेगा। यह भी कि कभी कुटिया घाट के नाम से मशहूर कश्मीरी गेट के पास रिंग रोड के किनारे स्थित वासुदेव घाट को आरती के लिए तैयार किया जा रहा है। हांलांकि इसकी तैयारी जी-20 सम्मेलन से पहले शुरू कर दी गयी थी लेकिन यमुना में आयी बाढ़ ने इस काम को प्रभावित किया। अब दिल्ली के उप राज्यपाल श्री वी के सक्सैना ने फिर से डी डी ए के अधिकारियों को यहां काम में तेजी लाने के आदेश दिये हैं।
पता चला है कि अयोध्या में 22 जनवरी को राम लला के प्राण प्रतिष्ठापन समारोह के दिन भी यहां आरती का आयोजन किया गया था। आजकल यहां के घाटों का सौंदर्यीकरण का काम तेजी से किया जा रहा है। यहां पर ट्यूलिप के पौधे लगाये जा रहे हैं। घाटों पर सीढि़यां बनायी जा रही हैं और तो और यहां पर छोटे-छोटे हट भी बनाये जा रहे हैं। घाटों की सजावट के काम को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में सजाया जा रहा है। देखा जाये तो देश की राजधानी दिल्ली में दर्शनीय स्थलों की वैसे ही भरमार है, उनमें एक नाम और जुड़ जायेगा तो कोई खास फर्क नहीं पडे़गा। हां दिल्ली वासियों के लिए यह जगह कहें या घाट एक नयी सैरगाह जरूर हो जायेगी।
वह बात दीगर है कि इस योजना के पीछे दिल्ली के माननीय उप राज्यपाल महोदय हैं या फिर माननीय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी। कोई भी हों लेकिन इस प्रयास को सराहा ही नहीं जाना चाहिए बल्कि इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए कि भले दिल्ली की जीवनदायिनी यमुना मर रही हो, वह जहरीली हो गयी हो, उसमें जल प्रवाह कम क्यों न हो, उसमें लैड, कापर, जिंक, निकेल, कैडमियम और क्रोमियम जैसे सेहत के लिए हानिकारक तत्व मौजूद हों और तो और यमुना में रसायन के चलते बजबजाते झाग को रोकने के लिए समूचे सीवेज के ट्रीटमेंट की जरूरत हो के अलावा बरसों से वह अपने उद्धार के लिए तरस रही हो, उसकी हरिद्वार और बनारस की तरह आरती करके उपराज्यपाल महोदय क्या संदेश देना चाहते हैं। इस आरती के आयोजन से प्रदूषित यमुना का कितना सम्मान बढे़गा, यह समझ से परे है।
वैसे तो सभी यमुना की बदहाली से भलीभांति परिचित हैं ही। बीते दशकों का इतिहास इसका गवाह है कि यमुना साल-दर-साल कितनी प्रदूषित हुयी है। उसका जल आचमन की बात तो दीगर है, वह भयंकर जानलेवा बीमारियों का सबब बन गया है। पहले यमुना में जल प्रवाह को ही लें,दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की ही मानें तो यमुना नदी के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पड़ने वाले हिस्से में जल प्रवाह 23 घन मीटर प्रति सैकेण्ड क्यूमैक्स कम है।
यह जल प्रवाह स्नान योग्य होने और नदी में पारिस्थितिकी बरकरार रखने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। वह बात दीगर है कि पिछले पखवाडे़ जल संसाधन सम्बंधी एक संसदीय स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश में दिल्ली में यमुना के 22 किलोमीटर लम्बे हिस्से में 23 घन मीटर प्रति सैकेण्ड क्यूमैक्स ई-फ्लो रखे जाने की बात कही थी लेकिन डीपीसीसी इस बाबत कुछ और ही बयां कर रही है। डीपीसीसी की मानें तो 23 क्यमैक्स का ई-फ्लो जैविक आक्सीजन मांग यानी बीओडी का स्तर घटाकर 12 मिलीग्राम प्रति लीटर कर देगा।
गौरतलब है कि बीओडी किसी नदी या जलाशय में मौजूद कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने के लिए सूक्ष्मजीवों द्वारा आक्सीजन की मात्रा है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि दिल्ली में पड़ने वाला नदी का हिस्सा इसके तकरीब 80 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। ई-फ्लो जल प्रवाह की न्यूनतम मात्रा है जो किसी भी नदी या जलाशय को अपनी पारिस्थितिकी बरकरार रखने और उसके स्नान योग्य होने के लिए जरूरी है। हकीकत यह है कि मौजूदा दौर में हरियाणा के यमुना नगर स्थित हथिनी कुंड बैराज से मात्र 10 क्यूमैक्स पानी छोडा़ जाता है। जबकि 23 क्यूमैक्स पानी यानी 43.7 करोड़ गैलन रोजाना अक्टूबर से जून के महीने के दौरान नदी में छोडा़ जाना चाहिए। उस हालत में जबकि इसकी सिफारिश राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की 2019 में ही कर चुका है। यह तो एक बानगी भर है।
लोकसभा की स्थायी समिति द्वारा यमुना पर तैयार रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि यमुना के जल में भारी धातु के प्रदूषक तत्वों की भरमार है जो जानलेवा बीमारियों के कारण हैं। समिति ने यमुना में पाये जाने वाले बीओडी,सीओडी और फीकल कोलीफार्म जैसे प्रदूषक तत्वों की ही सूची नहीं तैयार की है,बल्कि समिति ने इनके साथ-साथ नदी में पाये जाने वाले सेहत के लिए जानलेवा बन रही छह धातुओं यथा लैड, कापर, जिंक, निकेल, कैडमियम और क्रोमियम से होने वाले नुकसान की सूची भी तैयार की है।
समिति ने माना है कि लैड से वयस्कों में रीढ़ की हड्डियों से जुडी़ नसों से सम्बंधित पैरीफेरल न्यूरोपैथीऔर खासकर बच्चों में काग्निटिव इंपेयरमेंट, कापर से सिर दर्द, किडनी सम्बंधी बीमारी,उल्टियां और दस्त के साथ नौसिया, जिंक से लिवर व किडनी से जुडी़ बीमारियां के साथ उल्टी-दस्त होने, निकेल से न्यूरोटाक्सिक, जेनेटाक्सिक और कार्सीनोजेनिक, कैडमियम से किडनी और लिवर से जुडी़ बीमारी के साथ गैस्ट्रो व आंत्रशोध और क्रोमियम से न्यूरोनल डैमेज, हेपेटिक व गैस्ट्रो इंटैस्टाइनल जानलेवा बीमारियां जन्म लेती हैं। समिति ने यमुना में झाग बनने से रोकने हेतु दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से प्रवाहित होने वाले समूचे सीवेज का ट्रीटमेंट किये जाने की जरूरत बतायी है़। समिति के अनुसार यमुना के इस झाग का बडा़ कारण बिना ट्रीटमेंट वाले सीवेज में सर्फैक्टैंट्स और फास्फेट की मौजूदगी है। इस झाग से त्वचा रोग और संक्रमण का खतरा बना रहता है।
इसके लिए जरूरी है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों यानी एसटीपी की तकनीक को उन्नत बनाया जाये, उनकी क्षमता में बढो़तरी की जाये और सभी उद्योगों को साझा अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से जोडा़ जाये। इसके साथ ही समिति ने जल संसाधन विभाग से ऐसे नियम ,दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा है कि जिसमें यमुना सहित देश की सभी नदियों में अपशिष्ट प्रवाहित किये जाने के खिलाफ दंडात्मक प्रावधान हो। समिति ने पर्यावरण मंत्रालय की इस बात पर खिंचाई की कि उसने 2018 में की गयी सिफारिश पर एक्शन टेकन नोट दाखिल करने में देरी क्यों की और इसका कारण क्या था। समिति ने जल संसाधन विभाग को सुझाव दिया है कि वह यमुना नदी के लिए भी स्वच्छ गंगा मिशन की तर्ज पर एक कोष की स्थापना करे ताकि नदी की सफाई से जुडे़ कामों में पैसे की कमी आडे़ न आये।
वैसे यमुना की सफाई पर बीते दो दशकों से भी ज्यादा के दौरान अभी तक करोडो़ं स्वाहा हो चुके है। न यमुना में अमोनिया के बढ़ते स्तर पर ही अंकुश लगा है। हकीकत यह कि यमुना में बीओडी का स्तर लगातार बढ़ ही रहा है। यमुना को टेम्स बनाने के दावे को तो लोग भूल ही चुके हैं। इतना जरूर हुआ है कि यमुना पहले से 20 गुणा ज्यादा मैली जरूर हो गयी है। हां इसकी सफाई के लिए आवंटित करोडो़ं की राशि का हिसाब-किताब जरूर सरकार दे देगी जबकि यमुना आज भी बदहाली में जीने को विवश है। इसका अहम कारण यमुना का वोट बैंक न होना है।
यदि ऐसा होता तो यमुना कब की शुद्ध, निर्मल, अविरल और सदानीरा बन चुकी होती और कूडा़ गाडी़ कहें या मैला ढोने वाली के अभिशाप से मुक्त हो चुकी होती। मौजूदा हालात में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का बरसों पहले किया दावा भी बेमानी होकर रह गया है कि यमुना की सफाई मेरी जिम्मेवारी है। अगली बार यमुना में मैं खुद स्नान करूंगा। अगर इसमें मैं फेल हो गया तो मुझे वोट मत देना। अच्छा तो यह होता कि यमुना की भव्य आरती का आयोजन तब होता जब यमुना मैला ढोने वाली गाडी़ के अभिशाप से मुक्त हो जाती। उसी स्थिति में यमुना स्वयं को सम्मानित भी अनुभव करती और उसका गौरव भी बना रहता। अन्यथा ऐसे आयोजनों से यमुना का भला होगा, इसमें संदेह है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)