आंध्रप्रदेश की राजनीति में भाई-बहिन आमने-सामने

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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अविभाजित आंध्रप्रदेश में दो दशक पूर्व  कांग्रेस का दबदबा था। 2004 के विधान सभा चुनावों में वाईएस राजशेखर रेड्डी पार्टी को भारी बहुमत जितवा कर  राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. उस समय लगता था कि  2009 में भी  कांग्रेस फिर सत्ता में आयेगी। लेकिन अचानक उनकी एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद राज्य की राजनीति में उलटफेर शुरू हो गया। उनके युवा बेटे जगन मोहन  रेड्डी को भरोसा था कि पार्टी हाई कमान उन्हें  अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में लेकर आगे बढ़ाएगी। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस अलग होकर अपना क्षेत्रीय दल वाईएसआर कांग्रेस बना लिया। हालाँकि अगले दो चुनावों उनकी यह नहीं पार्टी कोई अधिक दमखम नहीं दिखा पाई लेकिन 2019 के चुनावों में भारी मत जीत कर इस पार्टी की सरकार बनी और जगन मोहन रेड्डी की राज्य का मुख्यमंत्री बनने की अभिलाषा पूरी हो गई। 

दक्षिण इस राज्य में लोकसभा और विधान सभा के चुनाव साथ साथ होते है। इन चुनावों में वाई एसआर कांग्रेस ने विधान सभा की कुल 175 सीटों में से  150 पर जीत हासिल की। इसी प्रकार लोकसभा की कुल 25 सीटों में से 22 इस पार्टी के खाते में आई। इन चुनावों में कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया।  कांग्रेस को नोटा भी कम मत मिले। तब जगन मोहन रेड्डी और उनकी माँ के अलावा बहिन शर्मीला रेड्डी की राज्य में तूती बोल रही थी। फिर सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर परिवार में मतभेद हो गए। यह मतभेद इतने बढ़ गए कि माँ और बेटी ने पार्टी से अलग हो कर, आँध्रप्रदेश से कट कर बने राज्य  तेलंगाना की ओर रुख किया। 

वहां उन्होंने तेलंगाना वाई एस आर  कांग्रेस  बनाई. लेकिन कई कारणों के चलते यह पार्टी वहां पनप नहीं पाई। धीरे-धीरे  माँ और बेटी ने मन बना लिया कि वे वापिस कांग्रेस में लौट जाएँगी। तेलंगाना में दिसम्बर में हुए विधान सभा के चुनावों से पहले शर्मिला ने दिल्ली जाकर राहुल गाँधी तथा  पार्टी के अन्य केंद्रीय नेताओं से  मिली। वह चाहती थी कि राज्य में दोनों पार्टियाँ मिलकर चुनाव  लड़ें। तब ऐसा लगा कि कांग्रेस कुछ विधान सभा सीटें इस पार्टी को दे देगी। लेकिन पार्टी के राज्य नेताओं ने इसका विरोध किया। उनका तर्क था शर्मीला के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी का प्रदेश में कोई वजूद नहीं हैं  इसलिए इसे सीटें देने का कोई औचित्य नहीं। उस समय यह तय हुआ कि विधानसभा चुनावों में शर्मीला की पार्टी कोई उम्मीदवार नहीं खड़े करेगी  तथा पूरी तरह कांग्रेस का समर्थन करेगी। इन चुनावों में जीत के बाद शर्मीला पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के काफी नज़दीक आ  गई। 

वे अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने के लिए तैयार हो गई। कांग्रेस पार्टी का राज्य नेतृत्व इस विलय का खिलाफ था। तब मामले की कमान राहुल  गाँधी ने खुद संभाली। उन्होंने राज्य पार्टी के सभी नेताओं से बात की। उनका कहना था इस विलय से राज्य में कांग्रेस पार्टी और मजबूत होगी ही होगी। कुछ दिनों बाद आखिरकार दोनों पार्टियों का विलय हो गया। शर्मीला ने उस समय बार-बार दोहराया कि यह विलय बिना किसी शर्त के हुआ है। इससे राज्य कांग्रेस पार्टी के नेताओं को भी कुछ राहत मिली। लेकिन तब उन्हें इस बात की जरा सी भी भनक नहीं थी कि दिल्ली में कुछ और ही पक रहा है। कुछ दिनों बाद पार्टी के महासचिव वेणुगोपाल ने यह घोषणा की कि शर्मीला को आँध्रप्रदेश कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है तथा 2024 के विधान सभा और लोकसभा का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जायेगा। हालांकि पार्टी आला कमान  के इस निर्णय से राज्य पार्टी का एक वर्ग खुश नहीं था। लेकिन उनके पास आला कमान का निर्णय मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। 

अब विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में एक ओर  जगन मोहन रेड्डी की पार्टी  वाई एस आर कांग्रेस होगी तथा दूसरी और उनकी बहिन शर्मीला उनको चुनौती देने उतरेगी। दोनों और से पिता राजशेखर रेड्डी के नाम से वोट मांगे जायेंगे, जिनको आज भी पूरे सम्मान से याद किया जाता है। वे अपने समय के एक बड़े ही लोकप्रिय नेता थे। राज्य में पिछले पांच सालों में जगन मोहन रेड्डी सरकार ने अच्छे कम किये है। उनकी छवि एक ईमानदार नेता की है। इसलिए यह कहना अभी कठिन है कि शर्मीला के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी उनको कितनी बड़ी चुनौती दे पायेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)