क्या हरदा हादसे के पीड़ितों के साथ न्याय हो पायेगा ?
लेखक : नवीन जैन

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)

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बुजुर्गवार पत्रकार, स्व. डॉक्टर वेद प्रताप वैदिक अपने लेखन, और आचरण में गजब का संयम बरतते थे, लेकिन जब देश भर से मिलावट करने वालों की लगातार खबरें आने लगी, तो डॉक्टर वैदिक ने अपना खास इंदौरी ठस्का बताया। उन्होंने मिलावट करने वालों के खिलाफ आग उगलनी शुरू कर दी। एक इतना बड़ा, और अंतरराष्ट्रीय स्तर का विद्वान जब अपनी वाली पर आ जाता तो देखिए कलम से क्या, और कैसे  हंटर चलाता है। मिलावट करने वालों के खिलाफ उन्होंने एक बार देश भर के अखबारों में यहां तक लिख दिया था कि घटना के लिए दोषी व्यक्ति को तत्काल फांसी पर चढ़ा कर उनके शव कुत्तों से नुचवार कर नदियों या समंदरों में फेक दिए जाने चाहिए। डॉक्टर वैदिक ने ये भी लिखा था कि ऐसी सख्त, और निर्मम सजा इसलिए ज़रूरी है कि ऐसे पाप करने वालों की आइंदा रूह कांप जाए। अब दुर्भाग्य वश डॉक्टर वैदिक तो इस दुनिया से करीब डेढ़ साल पहले रुखसत हो गए ,लेकिन चूंकि मुझे पत्रकारिता का पहला सबक उन्होंने ही सिखाया था, इसलिए मैं ये लिखने के लिए मजबूर हूं कि मध्य प्रदेश के हरदा नामक शहर में छह फरवरी को पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से असंख्य लोगों के जो चीथड़े उड़ गए उस फैक्ट्री के मालिक कहे जाने वाले गिरफ्तार दोनों भाइयों क्रमश: राकेश उर्फ राजू अग्रवाल और एक अन्य के साथ वही बर्ताव किया जाना चाहिए, जिसकी वकालत मिलावट को लेकर स्व. डॉक्टर वैदिक ने कभी की थी।

जिस देश में करोड़ों मुकदमे कोर्ट में लंबित पड़े हों, वहां तो हरदा हादसे की फाइले भी कोर्ट में सालों धूल खाएंगी या जला दी जाएंगी या गायब करवा दी जाएंगी। हमारी न्याय प्रणाली अपनी ईमानदारी, और नेक नियति के आखिर कितने प्रमाण दें? लेकिन जिस देश में राजनीतिक हस्त शेप या दबाव के कारण  न्याय व्यवस्तता लगातार लचर की जा रही है, वहां पुराने ढर्रे पर चलकर हम आखिर कब तक एक सभ्य लोकतंत्र होने के नाम पर अपनी कॉलर फड़काते फिरेंगे। Now enough is enough & those who are involved in Harda incident ,must sentenced crossing all the limits. इस देश में नए कानून बनाए जाने की उतनी जरुरत नहीं है, जितनी कि उन्हीं कानूनों की पुन:व्याख्या करने की। आखिर फेक एनकाउंटर भी तो इसी देश के समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसी नए चलन का असर खासकर उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अप्रत्यक्ष रूप से शुरू किया है, जिसके कारण वहां के आम लोगों में कानून के प्रति सम्मान के साथ ही सुरक्षा बोध में लगातार वृद्धि हुई है। हरदा कांड के पहले इसी प्रदेश में जहर तक कहे जाना वाला सिंथेटिक दूध एक लीटर से कई लीटर में तब्दील कर दिया जाता है। वहां छापे भी पड़ते हैं। उस दूध को पीने वाले बच्चे तो पनप नहीं पाते लेकिन इसी दूध से आगे चलकर दही, मक्खन, घी, मिठाई पनीर आदि बना दिए जाते है। सब्जियों में इंजेक्शन देकर कुछ घंटों में उन्हें पका दिया जाता है। जिसके कारण वे पोषण देने की बजाय मानव शरीर को लुंज पुंज कर देती है।स्कूली बच्चों को दाल के नाम पर दाल का पीला पानी या सड़े गले अनाज की रोटियां खिलाई जाती है। इस निमित्त जारी पूरे बजट की बाले बाले लूटमार की जाती है।सड़े आलू की चिप्स खिला दी जाती है। ऐसे आलू के गोदामों पर छापा पड़ता है, लेकिन जल्दी ही बात आई गई हो जाती है। नमकीन और पोहे के लिए यह शहर इंदौर पूरे जगत में खम ठोकता फिरता है, पर इस शहर के नादान वासियों को मालूम नहीं कि जिस चटोरेपन के लिए वे नमकीन,पोहे और चाट के  अड्डों पर टूट पड़ते हैं, वहां से जानकारों के अनुसार दरअसल धीमा जहर भी खिलाया जाता है।

जिस कमिश्नर ने हरदा फैक्ट्री को पुनः चलाने की कानूनों के विपरीत कथित रूप से अनुमति दी, उन सज्जन का तो खैर कुछ बिगड़ेगा नहीं,क्योंकि इस देश के प्रशासनिक सेवा अधिकारी तो देश के आधुनिक मालिक है और मालिक का मालिक कौन। सो, संबंधित अधिकारियों का या तो ट्रांसफर कर दिया जाएगा या साल छह महीनों के लिए उन्हें घर बैठा दिया जाएगा, और मौत का तमाशा ऐसे ही चलता रहेगा। 

हरदा हादसे में कुल कितने लोगों की जाने गई है यह तो शायद ही कभी जाहिर हो सकेगा, क्योंकि मीडिया की खबरों के अनुसार सभी प्रभावित जगहों पर रातों रात मलबा हटाकर जमीन समतल कर दी गई है,लेकिन जिस एक फैक्ट्री मालिक राकेश उर्फ राजू अग्रवाल की मीडिया में तस्वीर छपी है वो तो चेहरे से ही क्रिमिनल भी लगता है। कहते है जनाब को पहले भी सजा मिल चुकी है, लेकिन अब जमानत पर है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपना विचार है)