लेखक : राम भरोस मीणा
पर्यावरणविद् एवं स्वतंत्र लेखक हैं
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छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा जिले के हसदेव अरण्य क्षेत्र के पेंड्रा मार जंगल के 91 हैक्टेयर भूमि से 9000 पेड़ों को 500 पैट्रोलिंग आरा मशीनों से 450 सैनिकों के सुरक्षा जाप्ते के साथ भारत सरकार के कोल मंत्रालय द्वारा आदेश जारी कर छत्तीसगढ़ राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के सहयोग से काट कर साफ़ कर दिया गया। जंगल के गृभ में छुपे कोयला को (जीवाश्म ईंधन) निकालने के लिए अड़ानी कम्पनी द्वारा संचालित परसा केते कोल माइंस कम्पनी को अनुमति दी गई और यह कम्पनी इसे खनन कर राजस्थान राज्य विद्युत वितरण कम्पनी को इंधन की पूर्ति हेतु सप्लाई करेगी। कोयला खनन करने तथा जंगल उजाड़ने का यह काम कोप 28 के समापन के साथ ही प्रारम्भ हुआ आखिर क्यों।
खैर बातें बहुत अच्छी व पर्यावरणिय हालातो मे सुधार की हुई ओर कोप 28 जो दुबई में हुआ में जीवाश्म ईंधन के कम से कम उपयोग के साथ पारिस्थितिकी सिस्टम को बनाने तथा जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने पर जोर रहा, लोगों में उत्साह भी बना, ओर बिगड़े पर्यावरणिय हालातो को कोन सुधरते नहीं देखेगा। कोप 28 से बने एक विश्वास के बावजूद विकास के नाम यहां विधुत उत्पादन के लिए कोयला खनन करने के लिए भारत सरकार ने आदेश जारी कर जहां एक तरफ हजारों वर्ष में तैयार हुएं जंगल को दो से तीन दिन में साफ करा दिया वहीं हजारों वन्य जीवों, पक्षियों, हाथियों को बेघर करने के साथ 10 हज़ार आदिवासीयों को बेघर होने पर मजबूर कर दिया, 10 से 12 गांव उजड़ जाएंगे, दर्जनों गांव इस खनन से प्रभावित होंगे वहीं महानदी की सबसे बड़ी सहायक नदी हसदेव भी सुरक्षित नहीं रह सकेगी, नदी क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा जाएगा वहीं वहां की वनस्पतियों, वन्य जीवों, जलस्रोतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
क्या यही सच्चा विकास हैं ? क्या विशेष वजह है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर प्राकृतिक असंतुलन पैदा कर रहे हैं ? कहा जाएंगे हांथी, कहां रहेंगे पशु पक्षी, कहां बसेंगे आदिवासी ? देश के एक फीसद हांथी छत्तीसगढ़ में पायें जातें हैं यहां 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हांथीयो के लिए रिजर्व है जो लेमरू हांथी रिजर्व क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, लेकिन यह क्षेत्र भी सुरक्षित नहीं है, दिनों दिन सिमट रहा है। यहां 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां एवं 167 प्रकार की वनस्पतियां पाईं जाती है, वहीं दर्जनों प्रकार की वनस्पतियां लुप्त होने के कगार पर हैं। पर्यावरणीय द्रष्टि से यह क्षेत्र सुरक्षित रहा है लेकिन वर्तमान हालातों में यहां खनन से खतरा मंडराने लगा है। प्रत्येक वर्ष लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं, सैकड़ों हेक्टेयर भूमि खाली हों रहीं हैं। वनस्पतियों और जीवों के अस्तित्व को खतरा हो गया है।
सरगुजा के जंगलों में 23 से अधिक कोयला भण्डार है और इस कोयला को निकालने के लिए इसी प्रकार से जंगल नष्ट किए गए तों फिर यहां के हांथी कहां रहेंगे, मानव व वन्य जीवों में आपसी वैमनस्यता बढ़ेगी। पशु पक्षियों के आश्रय स्थल नष्ट होंगे, लोगों की आजीविका नष्ट होंगी। क्योंकि पेंड्रा मार के जंगल नष्ट होते ही हाथीयों द्वारा 15 से 20 घरों को तोड़ दिया, 25 से 30 किसानों की फसल नष्ट कर दी गई। दिनों-दिन अपना आश्रय खोए जानवर व घबराए मानव दोनों का एक साथ रहना मुश्किल होगा, दुसरी तरफ़ जंगल को बचाने के लिए पिछले सालों से आंदोलन कर रहे लोगों व सरकार के बीच मतभेद बढ़ेंगे जों खतरनाक साबित हो सकतें हैं।
वर्तमान पर्यावरणीय ख़तरों, मानवीय आवश्यकताओं व मांगों, पशु पक्षियों के अस्तित्व के ख़तरों को देखते हुए भारत सरकार को कोल मंत्रालय द्वारा जारी खनन कार्य को रुकवाने के साथ साथ स्थानीय लोगों तथा हसदेव अरण्य बचाओं संघर्ष समिति के लोगों के साथ शांति व सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाएं रखने का काम करते हुए जंगल को बचाने में सहयोग करना चाहिए जो पर्यावरणीय परिस्थितियों व मानवीय विचारों को देखते हुए जंगल को बचाना आज की आवश्यकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार है।)