संघ की सोच में लगातार परिवर्तन भाजपा के हक में
लेखक : नवीन जैन

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन ने महाराष्ट्र के शहर नागपुर में 1925की सितंबर माह की 27  सितंबर (विजया दशमी) को गिने-चुने लोगों के साथ मिलकर आकार-प्रकार लिया था। अब यह संगठन न सिर्फ़ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन बताया जाता है,  बल्कि बड़े ठाठ यह भी कहा जाता है, कि दुनिया भर में इसके कार्यकर्ताओ की संख्या डेढ़ करोड़ से आगे निकल गई है और, विश्व में इस संगठन की संख्या करीब पचास हजार, तो हो ही गई है। खैर।

सबसे विचारणीय मुद्दा यह है, कि गठन के समाय से ही संघ को हिंदुत्व का कट्टर समर्थक मानते हुए कहा जाता रहा, कि यह संगठन, तो साम, दाम, दंड भेद से एक दिन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाकर ही मानेगा। इस संगठन के निशाने पर प्रमुख रूप से मुस्लिम, और ईसाई समुदाय रहा है। इस  संबंध में संघ के  वरिष्ठ नेताओं ने किताबें तक लिखीं। कहा, तो यहां तक जाता रहा कि यही वो संगठन रहा जिसने हिंदू-मुस्लिम दंगों के लिए पर्दे के पीछे से खून-खच्चर को हवा दी, और ईसाई समाज की मिशनरियों को चीन की तरह केंद्र सरकार के अधीन लेने की वकालत तक की। 

ये विरोध इतना बढ़ गया था, कि जनसंघ के साथ संघ की दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर कुछ समाजवादी लोकसभा सदस्यों ने  स्व.मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली देश की पहली गैर कांग्रेस मिली जुली सरकार को लगभग ढाई साल में ही गिरा दिया था, लेकिन संघ के प्रमुख विरोधी, और धुर समाजवादी नेता पूर्व सांसद स्व. मधु लिमये जैसे लोग आज जीवित होते, तो शायद सोचने को मजबूर हो जाते, कि जिस संगठन से उन्होने जन्म जात अंता बेली ले रखी  है, उसकी बुनियादी सोच में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। और, ये  परिवर्तन खासकर हुआ है डॉक्टर मोहन भागवत के सर संघ चालक बनने के तत्काल बाद से।

उनके पिछले कुछ सालों के कार्यकाल की चर्चा, तो आगे करेंगे, लेकिन इस बार के दशहरे पर उनके दिए गए पारंपरिक भाषण ने एक बार फिर संघ की मानसिकता में  पुरजोर बदलाव आने के संकेत दिए हैं, जो एक बार फिर अभिनंदन के योग्य हैं। नागपुर में अपने विस्तृत, और सुगठित संबोधन में डॉक्टर भागवत ने विशेष कर इस साल की तीन मई से सुलग रहे, और अराजक मणिपुर की घटनाओ का उल्लेख करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार को इशारो_इशारों नसीहतें भी दीं। 

उन्होंने खुल कर अपनी तकलीफ जताई, कि जो सूबा करीब दस साल से एकदम शांत था, वहां ऐसी क्या नौबत आ गई कि एक अल्प संख्यक या आदिवासी समुदाय की स्त्रियों की नग्न परेड करवाई गई, उनसे बलात्कार किया गया, उस समुदाय को दाने दाने को मोहताज होकर रिफ्यूजी कैंपों में पनाह लेनी पड़ी। कृपया एक बार फिर जान लें, कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, तो वहां तीन दिनों तक डेरा डाले रहे, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर संसद में वक्तव्य देने के लिए संसद के अधिवेशन के दौरान एक दिन के लिए मुंह दिखाई की रस्म अदा करने भी नहीं आते। हां, उन्होंने संसद के बार उक्त दरिंदगी को भी मात देती हुई घटनाओं की आलोचना में जबानी जमा खर्च जरूर किया। इतने संवेदन शील हैं हमारे पीएम ,जो कभी कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य गुलाम नबी आजाद (अब कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके) के सदन से विदा होने पर लगातार रोए जा रहे थे, और आजाद साहब की तारीफों में चूंकि उनका कंठ बार-बार सूख रहा था, इसलिए वे बार-बार पानी पिए जा रहे थे। 

डॉक्टर भागवत ने यह भी कहा कि मणिपुर में अराजकता फैलानें में कहीं विदेशी साजिश का हाथ, तो नहीं था। जान लेना उचित होगा, कि मणिपुर हिंसा के काफी पहले ही देश के डिफेंस एक्सपर्ट्स ने मणिपुर में चीन द्वारा बड़े स्तर पर गड़बड़ कराने की आशंका जता दी थी, लेकिन तब की मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था, कि सरकार ने उक्त इनपुट्स को पर्याप्त गंभीरता से नहीं लिया। 

यह जान लेना भी प्रासंगिक होगा, कि जिस कुकी समुदाय के खिलाफ लगातार कुछ माह तक लगातार हिंसा हुई, वे ईसाई थे, और जो हिंसा पर उतारू मेताई समुदाय था, वो  हिंदू है। हिंदी-मुस्लिम एकता के पक्ष में डॉक्टर मोहन भागवत ने  सबसे पहले एक बड़े अखबार को इंटरव्यू में कहा था कि अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में प्रभु श्री राम मन्दिर की स्थापना के हक में अंतिम फैसला दे दिया है, इसलिए हम सक्रिय राजनीति से हटकर अपने मूल काम सामाजिक चेतना के प्रति फिर से सक्रिय हो रहे हैं। फिर उन्होने काफी महत्वपूर्ण, और बेहद चर्चित बयान दिया, कि भारत में रहने वाले तमाम लोगों का डी.एन.ए. सदियों से एक समान है। 

इसके बाद वे नई दिल्ली की मस्जिद, और मदरसों में गए। वहां मौलवियों, और छात्रों से हुई चर्चा की देश भर में तारीफें हुई। इसी बीच चित्रकुट मंथन में निर्णय लिया गया, कि अब मुस्लिम बस्तियों में भी संघ की शाखाएं लगाई जा सकती हैं। उन्हीं दिनों चूंकि प्रस्तावित सी.ए.ए. कानून को लेकर मुस्लिम समाज लगातार फैल रही भ्रांतियों को देखते हुए उक्त कानून का सरल, और बोधगम्य उर्दू लिपि में अनुवाद करके उसकी प्रतियों का देश भर के अधिकांश मुस्लिम क्षेत्रों में हजारों की संख्या में संघ, और भाजपा कार्यकर्ताओ ने न सिर्फ़ उनका वितरण किया, बल्कि इन्हीं कार्यकर्ताओं ने मुस्लिम परिवारों को पूरा भरोसा दिलाने की कोशिश की कि इस कानून के अमल में लाए जाने से भारत में रहने वाले मुसलमानों का बाल भी बांका नहीं होगा।

ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो इस साल की विजया दशमी पर डॉक्टर मोहन भागवत के उक्त भाषण को खासकर इस महीने में होने वाले पांच राज्यों क्रमश: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में होने जा रहे विधान सभा चुनावों में विभिन्न सर्वे के तहत भाजपा के तले की ज़मीन को  खिसकता देकर उसे थामने की कोशिश वाले व्यक्ति चुनावी फायदों से जोड़कर देख रहें है। इस तरह के लोगों की सूचनार्थ बता देना जरूरी है, कि एक, तो उत्तर प्रदेश जैसी मुस्लिम बहुतायत जैसा सूबा उक्त पांच में एक राज्य भी नहीं है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में वर्तमान सरकारों के कामकाज को लेकर चुनाव होने हैं। 

उक्त पांचों राज्यों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है, मगर वे बाजी पलटने की निर्णायक स्थिति में नहीं हैं। डॉक्टर मोहन भागवत ने सबसे बड़ी बात यह कही है कि अगले साल जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को नहीं जाना चाहिए, क्योंकि उक्त आयोजन सरकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि बेहतर होगा कि उक्त उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों संपन्न कराया जाए। ये है डॉक्टर मोहन भागवत की नेक दिली। जाहिर है कि संघ की विचारधारा में इस तरह का परिवर्तन लगातार आता रहा, तो भाजपा को लेकर लोगों की सोच में भी बदलाव आए बिना नहीं रहेगा। डॉक्टर भागवत ने धर्म के आधार पर नहीं, कर्म, कर्मों को देखते हुए वोट करने की अपील की है। उन्होंने ठंडे दिमाग और संयम से काम लेने की सलाह भी दी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)