कर्नाटक चुनाव, काला धन और आयकर छापे

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

www.daylife.page  

राज्य में कोई पांच महीने पूर्व विधान सभा के हुए चुनावों में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा था। हुआ यों था कि इन चुनावों से कुछ पहले राज्य के सरकारी ठेके लेने  वाले ठेकेदारों के संगठन ने प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था। इसमें आरोप लगाया गया था कि उनके दवारा करवाए गए काम के बिलों के भुगतान  के उन्हें कम से कम 40 प्रतिशत तक रिश्वत देनी पड़ती है। यह राशि राज्य के मंत्रियों, सत्तारूढ़ दल के विधायकों और सरकारी अफसरों को देनी पड़ती है।  उस समय राज्य में बीजेपी की सरकार थी। उन्हीं दिनों एक जिले के बीजेपी नेता, जो सरकारी ठेकेदार भी थे, ने आत्महत्या कर ली। वे अपने पीछे एक पत्र छोड़ गए थे। इस पत्र में उन्होंने साफ़ लिखा था कि एक सरकारी ठेके के काम के बिलों के भुगतान के लिए राज्य के मंत्री बड़ी रिश्वत मांग रहे है, जो वे देने की स्थिति में नहीं है। 

कांग्रेस पार्टी ने इस तरह के भ्रष्टाचार को एक बड़ा मुद्दा बनाया था। कांग्रेस नेताओं ने मत दातायों से यह वायदा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्तामें आती है तो इन सब मामलों की जाँच करवाई जायेगी। ऐसा मना जाता है कि चुनावों में बीजेपी की हार के बड़े कारणों में यह मुद्दा भी शामिल था। मई में जब कांग्रेस सत्ता में आई और सिद्धारामिया मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने पहला आदेश यह जारी किया कि बीजेपी शासन के आखरी सात आठ महीनो में जो भी निर्माण आदि के काम हुए उनके बिलों का भुगतान रोक दिया जाये। कुछ ही दिनों में सरकार ने एक आयोग का गठन किया जिसका काम बीजेपी के शासनकाल में हुए निर्माण कार्यों और उनके बिलों के भुगतान के मामलों की जाँच पड़ताल करना है। 

जैसे ही पुराने बिलों के भुगतान पर रोक लगी वैसी ही सरकारी ठेकेदार एक बार फिर लामबंद हो गए। उन्होंने सरकार पर दवाब बनाना शुरू किया कि उनके बिलों का भुगतान नहीं रोका जाये। इसके लिए उन्होंने उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार का पल्ला पकड़ा। शिवकुमार के पास न केवल जल संसाधन विभाग का विभाग है बल्कि वे बैंगलुरु शहर के प्रभारी भी है। ऐसा माना जाता है, सरकारी ठेके अधिकतर इन्हीं दोनों जगहों से आते है। राज्य में बहुमत मिलने के बाद शिवकुमार, जो प्रदेश कांग्रेस के मुखिया भी हैं, मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार थे। लेकिन पार्टी आला कमान ने निर्णय सिद्ध्रामिया के पक्ष में किया। लेकिन उन्हें साफ़ कर दिया गया कि वे सभी सरकारी निर्णय शिवकुमार की सहमति से ही करेंगे। 

दो ढाई महीने पूर्व सरकार ने ठेकेदारों के पुराने बिलों के भुगतान करने का आदेश जारी किया। इस निर्णय के पीछे सबसे बड़ी भूमिका शिवकुमार थी। शिव कुमार को पार्टी फण्ड जुटाने में माहिर माना जाता है। राजनीतिक हलकों यह कहा जा रहा है कि पार्टी आला कमान ने उन्हें पांच राज्यों में चुनावी धन जुटाने के लिए कहा था। धन का यह आंकड़ा 500 करोड़ से लेकर 100 करोड़ रूपये तक बताया जाता है। यह बात किसी से छिपी नहीं कि बड़े सरकारी ठेकेदार और  भूमि और भवन निर्माण में लगे निजी व्यवसायी इस तरह के धन जुटाने में बड़ी भूमिका निभाते थे। 

यह माना जाता है कि इस महीने के शुरू में आयकर विभाग को यह जानकारी मिली कि कुछ-कुछ ऐसे ठेकेदार और रियल एस्टेट से जुड़े लोग काले धन का संग्रह कर रहे है। महीने के मध्य में शहर में आयकर विभाग ने कुछ स्थानों पर छापे मारे गए। बंद पड़े एक फ्लैट से 40 करोड़ रूपये बरामद हुए। ऐसे ही एक और स्थान पर 45 करोड़ रूपये  बरामद किये गए। जाँच से यह बात सामने आई कि इनमें से एक फ्लैट आर अम्बिकापति का है जो एक बड़े सरकारी ठेकेदार है। वे ठेकेदारों के संगठन के उप प्रधान भी है। केवल इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजे गए पत्र में इन्होने ही बड़ी भूमिका निभाई थी। इसके अलावा कुछ बड़े बिल्डरों के ठिकानों पर छापे मार कर लगभग 95 करोड़ की राशि बरामद हुई। हालाँकि इन छापों और वहां मिले काले धन के बारे में   आयकर विभाग की ओर से कोई खुलासा नहीं किया गया है लेकिन ऐसा मना जाता है कि कांग्रेस की ओर से यह राशि उन पांच राज्यों में भेजी जाने थी, जहाँ अगले माह विधान सभाओं के चुनाव होने है। कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि केद्र की बीजेपी सरकार के इशारे पर ही आयकर विभाग ने ये छापे मारे है।  उधर बीजेपी का कहना है कि मिले कालेधन का सीधा संबंध कांग्रेस पार्टी के नेताओं से है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)