घुटती सांसें, कटते पेड़, प्रशासन मौन, आखिर वज़ह क्या

लेखक : राम भरोस मीणा  

प्रकृति प्रेमी, निदेशक, एल पी एस विकास संस्थान

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सड़क चौड़ीकरण के नाम पर लगभग दस हज़ार पेड़ कटेंगे जिनका प्रभाव पारिस्थितिकी तंत्र के साथ साथ मौसम पर भी दिखाई देने से नकारा नहीं जा सकता, पेड़ों की कटाई रोकने के लिए विभाग द्वारा कार्यवाही होना तय हो जिससे बड़ी क्षति से बचा जा सके।

ठेका पद्धति से सड़कों का निर्माण कराने से प्राकृतिक संसाधनों का शोषण दो गुना अधिक होता है, विभाग चाहे तो बच सकते हैं लाखों पेड़ हर साल सड़कों की चौड़ाई करण नये सड़क निर्माण  रास्तों की मरम्मत जैसे कार्य मानव के आर्थिक विचारधाराओं के साथ जुड़ा हुआ है ओर सदियों से रास्तों के निर्माण का कार्य चला आ रहा है। कच्चे रास्तों का निर्माण, ग्रेवल रोड निर्माण, फिर डामरीकरण का दौर तथा वर्तमान में सी सी रोड बनाने का दौर पिछले एक दशक से तेजी से रफ्तार पकड़ रखा है, खैर जो भी हो। विकास के साथ रोड़ बनना रोड़ों का चौड़ा होना जैसे जैसे परिवहन के संसाधनों में इजाफा होगा वैसे वैसे निर्माण होना तय है। निर्माण पहले भी होते रहे और आज भी हों रहें हैं लेकिन दोनों में बहुत बड़ा अंतर रहा। 

पहले जिम्मेदारी से काम होता आज विभाग ठेकेदार को देकर पिछा छुड़ाता है चाहे काम जैसे भी हो, यहीं नहीं विकास के नाम पर हमारी प्राकृतिक सम्पदा ओं को नष्ट किया जा रहा है, पानी के रास्तों को अवरूद्ध किया जा रहा है, पहाड़ो पर रोड़ निर्माण के नामों खनन तेज़ हो रहा है, चौड़ीकरण व नवनिर्माण के नाम पर पेड़ों की कटाई आदि। कार्य की स्वीकृति संवैधानिक नियमों, पर्यावरणीय स्वीकृति, वनविभाग की अनुमति परिवहन मंत्रालय की अनुमति राज्स्व स्वीकृति जैसे बहुत सारे विभाग व मंत्रालयों से गुज़र कर स्वीकृति प्राप्त होती है और सही भी है, होनी चाहिए। सभी विभागों को पता होना चाहिए। सब अपनी अपनी जिम्मेदारी भी पूरी करते हैं, सत्य है। कार्य की स्वीकृति तथा कार्य निर्माण की अनुमति मिलने के बाद आखिर ऐ सभी विभाग व मंत्रालय के स्वीकृति दाता कहा चलें जातें हैं जो सब कुछ ठेकेदारों पर विश्वास कर छोड़ दिया जाता है, क्या ऐ सभी नियमों को ध्यान में रखते हुए कार्य कर रहे हैं या जो हों रहा है वो सत्य व सहीं है।

वर्तमान में देश की बात करें तों नई पुरानी छोटी बड़ी  कच्ची  ग्रेवल  सी सी सड़कें लगभग एक लाख किलोमीटर से अधिक लम्बाई में प्रतिवर्ष बनाईं जा रही है, जिनके निर्माण के नाम पर करोड़ों पेड़ों की बलि छड़ा दी जाती है, इससे नकारा नहीं जा सकता। पिछले दो तीन महीनों से राजस्थान के अलवर जयपुर में थानागाजी से शाहपुरा के मध्य एन एच 248 ए पर सड़क चौडाईकरण का कार्य बड़ी तेज़ी से चल रहा है, रोड को चौड़ा होना है, सर्वे हुआं है सड़क के दोनों तरफ़ नई सड़क बननी है, सभी प्रकार का सर्वे हुआ, पेड़ भी गिनें गये, काटने योग्य को चिन्हित करना तय हुआ, कटाई ठेकेदार को ठेके पर देने के बाद विभाग पेड़ों को चिन्हित करना भुल गया, आखिर ऐसा क्यों, क्या मजबूरी थी। आज की स्थिति में कटू सत्य है। जो पेड़ आज से चार दशकों पूर्व सड़क के दोनों ओर संघन  लगाए गए, विशालकाय रुप लिए पारिस्थितिकी सिस्टम को बनाए रखा वे सड़क के दोनों किनारों पर एक सप्ताह पूर्व तक दिखाई दे रहे थे, अनुमानित संख्या दस हज़ार से उपर थीं, बड़ी निर्दयता से कांटे जा रहें हैं, कटना था लेकिन इस बर्बरता के साथ नहीं। कटान सड़क किनारे से लेकर पच्चास फुट की दूरी तक हों रहा है, जों सरआसर ग़लत है, जनता हर किसी को बता रही हैं, आपस में चर्चा कर रहे हैं गुस्सा दिखाईं दें रहा है,  लेकिन जनता की सुनने वाला, पेड़ों के महत्व को समझने वाला आखिर है कौन। 

पेड़ों की कटाई के साथ सड़क निर्माण में बरती जा रही खामियों के चलते  सड़क के आस पास पोल्यूशन बड़ता जा रहा है , वायु की गुणवत्ता खत्म हो गई, आम आदमी धुल मिटटी परिवहन के साधनों की धुआं से परेशान हो रहा है, पर्यावरण पर पेड़ों की कटाई का असर दिखने लगा है, एक किलोमीटर से अधिक दुरी से धुल के बादल दिखाई देने लगे हैं। आस पास के लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ने लगा है, पेड़ जों 

बिगड़ते पर्यावरणीय हालातो को बनाए रखने में अपना योगदान दे रहे थे, उनकी बली लीं जा रही है जो पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है। सड़क के दोनों ओर नीम शीशम, किकर, सफेदा के एक हज़ार से अधिक पेड़ कांटे जा चुके हैं, जिनमें सैकड़ों पेड़ रोड की चौड़ाई करण की सीमा से काफी दूर स्थित थे आखिर उन्हें क्यों कांटा गया ओर प्रशासन मौन क्यों हैं? एक विचारणीय व सोचने योग्य बात है, पेड़ों की इस क़दर कटाई से पोल्यूशन ही नहीं बडा़ बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र पर भी बुरा असर पड़ा है। गिरते वायु की गुणवत्ता, बड़ते प्रदुषण से आंक्सिजन की कमी पैदा हो रही है, दूसरी तरफ़ यदि दस हज़ार से अधिक पेड़ों के एक साथ कटान हुआ तों  यहां मौसम पर भी असर दिखाई देने की सम्भावना से नकारा नहीं जा सकता।  

सड़क की चौड़ाई के तहत हो रहें पर्यावरणीय ख़तरों को मध्य नजर रखते हुए वन विभाग, पर्यावरण विभाग व स्थानीय प्रशासन द्वारा इस पर निगरानी के साथ कार्यवाही होना जरूरी है उससे अधिक पेड़ों के चिन्हीकरण का कार्य बहुत आवश्यक है ओर वह सभी जगह जहां सड़क निर्माण हो वही होना चाहिए जिससे प्राणदाता ओ के प्राण बचाए जा सके। लेखक के अपने निजी विचार है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)