बैंगलुरु अब देश की स्पेस सिटी

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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हॉल के कुछ वर्षो तक कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरू को भारत की सिलिकोन वैली अथवा साईबर सिटी के रूप में जाना जाता था। देश और कई अन्य देशों की  टैक कंपनियों के कार्यालय यहाँ थे। पिछले दो से तीन दशकों में शहर का विस्तार तेजी से हुआ क्योंकि सभी टैक कम्पनियां यहाँ अपने दफ्तर खोलना चाहती थी। जब इस शहर का तेजी से विस्तार होना शुरू हुआ तो यहाँ उत्तर भारतीयों की संख्या बहुत कम थी। उत्तर भारतीय भोजनालय नहीं के बराबर थे।  लेकिन आई टी क्षेत्र के विस्तार से बड़ी संख्या में आई टी शिक्षित लोग यहाँ आ गए। अब स्थिति यह है कि यहाँ की लगभग आधी आबादी बाहरी लोगों की है  जिनमें भी उत्तर भारतीय सबसे से अधिक है। 

जैसाकि ऊपर कहा गया है कभी शहर सिलिकॉन वैली या साईबर सिटी के रूप में जाना जाता है लेकिन हॉल के वर्षो में इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (इसरो) की तेजी से बढती गतिविधियों के चलते इस शहर का नया नाम स्पेस सिटी हो गया है। विश्व के स्पेस विज्ञान के नक़्शे में अब भारत का यह शहर अब स्पेस सिटी के नाम से ही जाना जाता है।

पिछले एक दशक में इसरो ने चाँद तक पहुँचने के जो मिशन चलाये उसके चलते देश की यह संस्था एक बड़ा ब्रांड बन गई है। अमरीका की स्पेस संस्था नासा  के बाद अब इसरो का ही नाम आता है। इसका मुख्यालय बैंगलुरु में ही है। बैंगलुरू में संस्था का मुख्यालय बनने के एक लम्बी कहानी है 1969 में जब इसरो की स्थापना की गई तब यह केंद्रीय आणविक विभाग का हिस्सा थी। तब देश के प्रमुख अन्तरिक्ष विज्ञानी डॉ. विक्रम साराभाई इसके संस्थापक अध्यक्ष बनाये गए। उस समय केरल की राजधानी त्रिवेंद्रम में इसका मुख्यालय बनाया गया था। अंतिरक्ष में भेजे जाने का स्टेशन पास ही थुम्बा में बनाया गया था। 1972 में जब साराभाई का निधन हो गया तो इसरो के लिए नए अध्यक्ष के तलाश शुरू हुई। 

आखिर देश के प्रमुख अन्तरिक्ष विशेषज्ञ सतीश धवन को यह पद   देने का निर्णय किया गया। सतीश धवन उस समय देश की एक प्रमुख संस्था इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के निदेशक थे। एक सौ से भी अधिक पुराना यह संस्थान बैंगलुरु में ही स्थित है। सतीश धवन ने इसरो का अध्यक्ष बनने के लिए दो शर्तें लगा दी। पहली शर्त यह थी कि इसरो का अध्यक्ष बनने के साथ-साथ वे इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस का डायरेक्टर बने रहेंगे। उनकी दूसरी शर्त यह थी कि इसरो का मुख्यालय त्रिवेंद्रम से बदल कर तब के बैंगलोर में कर दिया जाये। सरकार ने उनकी दोनों शर्तें मान ली। धवन इसरो के सबसे लम्बे से समय तक अध्यक्ष रहे। उनके 12 साल के कार्यकाल में इसरो की गतिविधियों में तेजी से विस्तार। 

अन्तरिक्ष में रॉकेट भेजने का स्थान थुम्बा से श्री हरिकोटा में कर दिया गया। श्री हरिकोटा आंध्र प्रदेश के तटीय  इलाके में आता है तथा इसे   अन्तरिक्ष अभियानों के लिए सबसे उचित तथा सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता है। बैंगलुरू में एच ए एल का पहले से मुख्यालय था। इसके पास ही इसरो का  नया मुख्यालय बना। बड़े अन्तरिक्ष अभियानों की मोनिटरिंग की सुविधाए तैयार की गई। आज इसरो का यह टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क सबसे अधिक सुविधाओं से युक्त है। इसरो के अंतररिक्ष अभियानों से बड़ी संख्या में जुड़े अन्तरिक्ष विशेषज्ञों की टीमें यही बैठ कर अभियानों की प्रगति पर नज़र रखती हैं तथा उन्हें नियंत्रित करती हैं। चाँद पर भेजे गए सभी चंद्रयान पर यही बैठ कर नज़र रखे गई थी। 

चार वर्ष पूर्व चंद्रयान-2 जब अन्तरिक्ष में भेजा गया तो प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने यही बैठकर अभियान के अंतिम चरणों को देखा था। जब इसका लैंड रोवर चंद्रमा पर उतरने के असफल  रहा  तथा तब इसरो के अध्यक्ष सिवन की आंखों में आंसू बहने लगे तो मोदी ने उन्हें गले से लगा लगाकर सांत्वना दी थी। उसके बाद से ही बैंगलुरू का नाम स्पेस सिटी बन गया  

चंद्रयान-3 की  सफलता के बाद नरेन्द्र मोदी  ग्रीस  की  यात्रा पूरी कर  सीधे बैंगलुरू पहुच  कर   इसरो टीम के सभी सदस्यों को यही मिले और उनको बधाई  दी थी। 

चंद्रयान-3 तथा प्रधानमोदी के बधाई के कार्यक्रमों का न केवल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने बल्कि कई अन्य देशों ने इसका सीधा प्रसारण किया था। कई विदेशी न्यूज़ चैनल अपने प्रसारण में बैंगलुरू को बार-बार भारत का स्पेस सिटी के रूप में नाम ले रहे थे।