हमारे पूर्वजों के विचारों, प्रथाओं एवं रीति-रिवाजों के उत्सव का दिन : डॉ. कमलेश मीणा

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर विशेष 

लेखक : डॉ कमलेश मीना 

सहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

एक शिक्षाविद्, शिक्षक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

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विश्व के मूलनिवासी लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के शुभ दिन और अवसर पर डॉ. कमलेश मीणा ने हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए अपनी विरासत पर गर्व महसूस करने का दिन बताया। उन द्वारा लिखे गए समाज के लोगों एवं अवाम के लिए सन्देश एक प्रेरणादायी एवं उपयोगी होगा। प्रस्तुत है उनके विचार एवं अध्ययन उन्हीं की कलम से :

दोस्तों,

यह 9 अगस्त तारीख 1982 में मूलनिवासी लोगों (स्वदेशी) आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक के दिन को चिन्हित करती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस दिन दुनिया भर के लोगों को स्वदेशी मूलनिवासी लोगों के अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन पर संयुक्त राष्ट्र के संदेश को फैलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, इसलिए इस दिन को पूरे सम्मान के साथ मनाना हमारी नैतिक, संवैधानिक और मानवीय जिम्मेदारी है। यह एक-दूसरे और इंसान के प्रति सच्ची निष्ठा दिखाने का भी दिन है।

संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के स्वदेशी लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस को मनाने के लिए 2023 की थीम "विश्व के मूलनिवासी युवा आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के एजेंट के रूप में " को चुना। आज दुनिया भर के आदिवासी समुदायों के लिए विश्व के मूल निवासियों के लिए उनकी उपनिवेशवादी पृष्ठभूमि के ऐतिहासिक बोझ के कारण और कभी-कभी लगातार बदलते समाज के साथ विरोधाभास के कारण मूल निवासियों के लिए अधिकारों का हनन एक सतत समस्या, चुनौतियाँ, बाधाएँ और आज के समय की जमीनी हकीकत बन गई है। 

दुनिया भर में मूल निवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों और अपनी जल, जंगल, ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों से अलग किया जा रहा है। दुनिया के आदिवासी समुदायों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों से अलग किया जा रहा है जो बिना किसी भेदभाव या कटौती के सभी मनुष्यों के लिए आवश्यक है।

आदिवासी स्वदेशी लोगों की इन समस्याओं के जवाब में, संयुक्त राष्ट्र ने हर 9 अगस्त को यह याद रखने का निर्णय लिया कि स्वदेशी लोगों को अपने निर्णय लेने और उन्हें सार्थक और सांस्कृतिक रूप से उनके लिए उपयुक्त तरीके से लागू करने का समान अधिकार है, जैसा कि इस दुनिया में किसी भी देश के अन्य लोगों को है आत्मनिर्णय की मांग के इस संदर्भ में, आदिवासी स्वदेशी युवा आज मानवता के सामने आने वाले कुछ सबसे गंभीर संकटों में सबसे आगे रहकर परिवर्तन के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए, आदिवासी स्वदेशी युवा समाधान पेश करने और हमारे लोगों और इस मानव ग्रह के लिए अधिक टिकाऊ, शांतिपूर्ण भविष्य में योगदान करने के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर रहे हैं और नए कौशल विकसित कर रहे हैं। लेकिन आदिवासी स्वदेशी लोगों का भविष्य आज लिए गए निर्णयों पर भी निर्भर करता है। जलवायु परिवर्तन, शांति निर्माण और डिजिटल सहयोग की दिशा में वैश्विक प्रयासों में उनका प्रतिनिधित्व और भागीदारी आदिवासी स्वदेशी लोगों के रूप में उनके अधिकारों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण है।

आदिवासी स्वदेशी लोगों का इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2023, "आदिवासी स्वदेशी युवा आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के एजेंट के रूप में" मनाया जा रहा है। इस शीर्षक विषय के तहत और अंतर्गत जलवायु कार्रवाई, न्याय की खोज में उनके समर्पित प्रयासों को मान्यता देते हुए निर्णय लेने में स्वदेशी युवाओं की भूमिका को फिर से दर्शाता है। अपने लोगों के लिए, और एक अंतर-पीढ़ीगत संबंध का निर्माण जो उनकी संस्कृति, परंपराओं और योगदान को जीवित रखता है।

दोस्तों, हमारे समाज के युवाओं को हमारे सामूहिक प्रयासों और ईमानदार प्रयासों के माध्यम से हमारे देश के विकास के प्रति इसे एक जिम्मेदारी, जवाबदेही, चुनौती और प्रतिबद्धता के रूप में लेना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र ने हमें विकास के लिए परिवर्तन लाने वालों और वास्तविक ट्रांसफार्मर के एजेंट के रूप में चुना है। हमें अपने स्वदेशी उत्पादों, प्रथाओं, जैविक भोजन और प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से ब्रह्मांड को उच्चतम गुणवत्ता वाली जीवन शैली प्रदान करने के लिए अपना शत-प्रतिशत ईमानदारी से प्रभावी प्रयास करना चाहिए। हमें जीवन दाता, नौकरी दाता, उत्पाद दाता और पर्यावरण बचाने वाले के एजेंट के रूप में उभरना चाहिए।

दोस्तों, मुझे लगता है कि यह जलवायु कार्रवाई और हरित परिवर्तन और न्याय के लिए एकजुट होने और अंतर-पीढ़ीगत संबंधों के संदर्भ में आत्मनिर्णय का अभ्यास करने में आदिवासी स्वदेशी युवाओं की भूमिका के बारे में विभिन्न विशेषज्ञताओं और अनुभवों को साझा करने का भी दिन है।

हमें संवैधानिक अधिकारों और मानवीय सिद्धांतों के माध्यम से बेहतर दुनिया के लिए स्वदेशी समुदायों की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि दुनिया के 90 देशों में अनुमानित 476 मिलियन मूलनिवासी लोग रहते हैं। वे दुनिया की आबादी का 5 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बनाते हैं, लेकिन सबसे गरीब लोगों में उनका हिस्सा 15 प्रतिशत है। वे विश्व की अनुमानित 7,000 भाषाओं में से अधिकांश भाषाएँ बोलते हैं और 5,000 विभिन्न संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आज के युग में हम कह सकते हैं कि स्थानीय भाषाओं, स्थानीय बोलियों और स्थानीय कृषि प्रथाओं और जैविक उत्पादों को कायम रखने के लिए मूलनिवासी ही वास्तविक प्रतिनिधि हैं।

स्वदेशी लोग अद्वितीय संस्कृतियों और लोगों और पर्यावरण से संबंधित तरीकों के उत्तराधिकारी और अभ्यासकर्ता हैं। उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विशेषताओं को बरकरार रखा है जो उन प्रमुख समाजों से अलग हैं जिनमें वे रहते हैं। अपने सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद, दुनिया भर के स्वदेशी लोग विशिष्ट लोगों के रूप में अपने अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित सामान्य समस्याएं साझा करते हैं।

स्वदेशी लोग वर्षों से अपनी पहचान, अपने जीवन के तरीके और पारंपरिक भूमि, क्षेत्रों और प्राकृतिक संसाधनों पर अपने अधिकार को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं। फिर भी, पूरे इतिहास में, उनके अधिकारों का उल्लंघन किया गया है। आज मूलनिवासी लोग यकीनन दुनिया में सबसे वंचित और कमजोर लोगों के समूह में से हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अब मानता है कि उनके अधिकारों की रक्षा और उनकी विशिष्ट संस्कृतियों और जीवन शैली को बनाए रखने के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता है।

इन जनसंख्या समूहों की जरूरतों के बारे में सभी देशों, समुदायों और समाज के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए, हर 9 अगस्त को विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है, जिसे 1982 में जिनेवा में स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक की मान्यता में चुना गया था। 

ईमानदारी से हमें यह जानने की जरूरत है कि वैश्विक स्तर पर, अपने स्वयं के रोजगार में लगे सभी स्वदेशी लोगों में से 47% के पास कोई शिक्षा नहीं है, जबकि उनके गैर-स्वदेशी समकक्षों में से 17% के पास कोई शिक्षा नहीं है। उनकी महिलाओं के लिए यह अंतर और भी अधिक है। वैश्विक स्तर पर 86% से अधिक स्वदेशी लोग अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करते हैं, जबकि उनके गैर-स्वदेशी समकक्षों की संख्या 66% है। अपने गैर-स्वदेशी समकक्षों की तुलना में स्वदेशी लोग लगभग तीन गुना अधिक गरीबी और गंभीर परिस्थितियों में रह रहे हैं।

दोस्तों, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुई कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के दौरान दुनिया भर में मूल निवासियों की पहल दर्शाती है कि कैसे जमीनी स्तर के समूह, समुदाय और नेटवर्क, और स्वदेशी युवाओं द्वारा स्थापित मंच सभी समुदायों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं। इसका मतलब है कि वैश्विक स्तर पर मूल निवासियों की प्रथाओं को स्वस्थ और प्राकृतिक के साथ मौजूदा मानव जीवन के लिए यथार्थवादी दृष्टिकोण में महसूस किया जा रहा है और मान्यता दी जा रही है।

संयुक्त राष्ट्र ने पाया कि दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाली 7,000 भाषाओं में से कम से कम 40% किसी न किसी स्तर पर खतरे में हैं। स्वदेशी भाषाएँ विशेष रूप से असुरक्षित हैं क्योंकि उनमें से कई को स्कूल में नहीं पढ़ाया जाता है या सार्वजनिक क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को अपनाया है, जिसका मुख्य विषय और उद्देश्य पहुंच, जवाबदेही, लचीलापन, क्विटी हैं, और हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 स्वदेशी संस्कृतियों, स्थानीय भाषाओं और बोलियों की वकालत करने के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी। हमारी मूलभूत पूर्व प्राथमिक शिक्षा और शिक्षा प्रणाली के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी।

सवाल यह उठता है कि हम विश्व के मूलनिवासी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस जश्न क्यों मनाएं? अंतर्राष्ट्रीय दिवस और सप्ताह जनता को उनके संबंधित मुद्दों पर शिक्षित करने, जागृत करने, जागरूक करने, वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और संसाधन जुटाने और मानवता की उपलब्धियों का जश्न मनाने और उन्हें सुदृढ़ करने के अवसर हैं। यह सार्वभौमिक तथ्य है कि अंतर्राष्ट्रीय दिवसों का अस्तित्व संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से पहले से है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की पहल ने हमें इसे एक शक्तिशाली वकालत करने और सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त उपकरण के रूप में मनाने का अवसर दिया है।

दोस्तों, आज प्रेम, शांति, भाईचारा, स्नेह और खुशी के साथ स्वस्थ और पोषित जीवन जीने की वास्तविक विरासत, समृद्ध विरासत और स्वस्थ जीवन जीने के तरीके का जश्न मनाने का दिन है जो इस ग्रह के (स्वदेशी) मूलनिवासी लोगों के द्वारा पहली बार दुनिया को सिखाया गया है। आज सभी देशों की सरकारों, वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों ने इस बात को सर्वमान्य रूप से स्वीकार कर लिया है कि अच्छा और स्वस्थ जीवन जीने का एकमात्र तरीका मूलनिवासी लोगों का तरीका ही है। यदि हम जलवायु, प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण को बचाना चाहते हैं तो यह एकमात्र रास्ता है जो आदिवासियों ने अपने अस्तित्व के समय से अपनाया है। आज दुनिया स्वदेशी लोगों की प्रथाओं, रीति-रिवाजों, परंपराओं और रहन-सहन और खान-पान की संस्कृतियों की ओर बढ़ रही है। हमें इस सबसे अमीर समुदाय का हिस्सा होने पर गर्व होना चाहिए जो आज मानव जीवन का आधार है।

आप सभी को पुनः विश्व मूलनिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। विश्व मूलनिवासी दिवस के अवसर पर, आइए हम मूलनिवासियों द्वारा झेले गए सभी दर्दों और चुनौतियों को पहचानकर इस दिन को मनाएं। स्वदेशी होने का मतलब बिना देरी या भेदभाव के अपने आस-पास के किसी भी व्यक्ति की मदद करना है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)