तेलंगाना में पहले उम्मीदवार घोषित करने की रणनीति

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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लगभग डेढ़ दशक पूर्व अविभाजित आंध्र प्रदेश के सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के मुख्यमंत्री वाईएस चंद्रशेखर रेड्डी ने पार्टी आल कमान को विधान सभा चुनावों से महीनों पूर्व इस बात के लिए राजी कर लिया कि विधान सभा के उम्मीदवारों के नाम जितना जल्दी घोषित करेंगे पार्टी को इसका उतना ही अधिक लाभ मिलेगा। उन्होंने सभी 294 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम भी प्रेषित कर दिए। पार्टी के मुख्यमंत्री की रणनीति को स्वीकार करते हुए कुल 293 के नाम उम्मीदवार के रूप में घोषित कर दिए गए। यह कांग्रेस पार्टी के सामान्य चुनावी रणनीति के विपरीत था। आम तौर उम्मीदवारों के नाम नामांकन दाखिल करने के कुछ दिन पहले ही घोषित किये जाते हैं। इस नई रणनीति को लेकर पार्टी के कई केंद्रीय नेता अह्सहमत थे। लेकिन इन सबको नकारते हुए  राजशेखर रेड्डी भारी बहुमत से चुनाव जीतने में सफल रहे। 

ऐसा ही प्रयोग मई में कर्नाटक विधान सभा चुनावों में किया गया। राज्य पार्टी अध्यक्ष डी के शिवकुमार पार्टी आला कमान को राजी करने में सफल रहे कि उम्मीदवारों की घोषणा काफी पहले कर दी जाये। वे 225 में से लगभग 150 उम्मीदवारों के नाम चुनावों लगभग डेढ़ महीन पहले ही घोषित करवाने में सफल रहे। पार्टी ने जब चुनाव जीता और जीत का विश्लेषण किया गया तो उसमे से एक कारण अन्य पार्टियों से बहुत पहले उम्मीदवार घोषित किया जाना भी था। 

यही प्रयोग आंध्र प्रदेश से अलग होकर बने तेलंगाना के मुख्यमंत्री तथा भारत राष्ट्र समिति के सुप्रीमो के चंद्रशेखर राव ने पिछले विधान सभा चुनावों में किया। उनको इसका लाभ भी मिला। उन्होंने अन्य पार्टियों के अपेक्षा कई महीने पहले ही पार्टी के सभी 119 उम्मीदवार घोषित कर दिए पार्टी 88 सीटें जीतने में सफल रही। 

तेलंगाना विधान सभा के चुनाव इस वर्ष के अंत में होने है लेकिन चंद्रशेखर राव अभी से उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने में लगे है। अब तक वे सर्वे   एजेंसियों द्वारा अपने वर्तमान विधायकों की अपने अपने क्षेत्र में लोकप्रियता तथा पिछले पांच वर्ष में उनके दवारा करवाए गए लोक हित के कामों का  आकलन करवा चुके है। वे अब उम्मीदवारों के सूची तैयार करने में लगे है। राज्य में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है। बीजेपी राज्य में बीजेपी तीसरे स्थान पर है।   चंद्रशेखर राव को इस बात का लाभ है कि वे पार्टी के लगभग सर्वेसर्वा है। 

वे बिना किसी के प्रभाव यह दवाब में वे अपने स्तर पर उम्मीदवारों को चयन करने के स्थिति में है। उनके दल भारत राष्ट्र समिति की तुलना में कांग्रेस और बीजेपी कमजोर विकेट पर है। दोनों दलों में खुलकर गुटबंदी है तथा इन दलों के नेता फ़िलहाल पार्टी की अंदरूनी लडाई को शांत करने में लगे हैं। उम्मीद्वारों का चयन इन दोनों पार्टियों में फ़िलहाल कोसों दूर है। कांग्रेस पार्टी ने एक जाने माने  रणनीतिकार की सेवाएँ ली है। रणनीतिकार की टीमें राज्य के विभिन भागों में घूम-घूम कर जमीनी वास्तविकता का जायजा लेने में लगी है। इसी के बाद  चुनावों क्षेत्रों में पार्टी के विधायकों और नेताओं की लोकप्रियता का आंकलन होगा। जब तक यह सब पूरा होगा तब तक चुनाव सिर पर आ जायेगें। 

पिछले दिनों बीजेपी ने जब उन राज्यों के कुछ उम्मीदवारों की घोषणा की जहाँ वर्ष के अंत में चुनाव होने है। उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी आल कमान  तेलंगाना के भी कुछ उम्मीवारों के नाम की घोषणा करेगी। लेकिन ऐसे नहीं हुआ .इसका मुख्य कारण पार्टी की भीतरी गुटबंदी हैं। इसे कम करने के लिए  पार्टी अलाकमान ने राज्य पार्टी के नेतृत्व में परिवर्तन किया है। हाल तक संजय बंडी राज्य पार्टी के अध्यक्ष थे। अब उनके स्थान पर केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी को राज्य पार्टी की कमान सौंपी है। बंडी को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में शामिल कर महा सचिव बनाया गया है। 

पार्टी नेताओं का कहना है कि इससे पार्टी की  भीतरी गुटबंदी कुछ हद तक कम होगी। चूँकि पार्टी के भीतर भारी गुटबंदी है इसलिए पार्टी अला कमान ने अपने स्तर पार्टी के उम्मीदवारों को चिन्हित करने का काम शुरू कर दिया है। विधान सभा क्षेत्रों में पार्टी की ताकत का जायजा लिया जा रहा है। सभी विधान सभा क्षेत्रों को तीन श्रणियों में बाँटा गया है। पहले  क्षेत्र वे हैं जहाँ पार्टी मजबूत है तथा जीत सकती है। दूसरे वे क्षेत्र है जहाँ पार्टी कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। तीसरी श्रेणी में वे क्षेत्र है जहाँ जीत की आशा नहीं के बराबर है। पार्टी की रणनीति के अनुसार जीत वाले क्षेत्रों के उम्मीदवारोंकी घोषणा जल्दी से जल्दी कर दी जाएगी। बाकि दोनों क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों का चयन बाद में होगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)