राजनीतिक आयोजन सरकारी खर्चे पर होने पर विवाद

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक है  

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पिछले हफ्ते कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु में 26 विपक्षी दलों की बैठक हुई। कई मायनों में यह बैठक न केवल महत्वपूर्ण थी बल्कि ऐतिहासिक भी थी। इसमें विपक्षी दलों ने एक नया राजनीतिक मंच “इंडिया” बनाया जो अगले लोकसभा चुनावों में केंद्र में बीजेपी नीत एनडीए को सीधी कड़ी चुनौती देगा। लेकिन इस आयोजन पर किये गए सरकारी खर्चे को लेकर स्थानीय स्तर विवाद छिड गया है। राज्य में प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी तथा कभी कांग्रेस के सहयोगी रहे जनता दल (स) ने हाल ही में सत्ता में आई कांग्रेस पर कड़ा हमला किया। 

यह आयोजन राजधानी के एक बड़े और पांच सितारा होटल में किया गया था। इस बैठक में 26 दलों के 50 से अधिक नेताओं को ठहराया गया था तथा इसी में इन दलों की दो दिवसीय बैठक हुई थी। ये सभी नेता अधिकारिक रूप से सरकार के मेहमान थे तथा उनको राजकीय अथिति के रूप में प्रोटोकॉल के अंतर्गत सुविधाएँ उपलब्ध करवाई गई थीं। इसको लेकर सबसे पहला हमला राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रहे तथा जनता दल (स) के नेता एचडी कुमार स्वामी ने किया। उनका कहना था कि पूर्व में किसी भी राज्य में ऐसे राजनीतिक आयोजन का पूरा का पूरा खर्चा राज्य सरकार ने वहन नहीं किया। उनका कहना था कि यह सत्ता का दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है उधर कांग्रेस कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि ऐसा पहले अन्य दलों की  सरकारों के कार्य काल में भी हो चुका है। 

सरकार को यह अधिकार है कि वह राज्य में आने वाले किसी बड़े अथवा महत्वपूर्ण व्यक्ति को राजकीय अतिथि बना सकती है। गृह विभाग के अंतर्गत आने वाला प्रोटोकॉल विभाग ऐसे अतिथियों के रहने का इंतजाम करता है और उनकी आवभगत करता है। उन्हें सरकारी कार दी जाती है। राज्य सरकार इन मेहमानों की सुविधा के लिए उनके एस्कॉर्ट लगाती है जो उन्हें लेने के लिए एअरपोर्ट अथवा रेलवे स्टेशन पर जा उनकी अगवाई करता है। सामान्य तौर पर एक साधारण सरकारी अफसर को एस्कोर्ट बनाया जाता है। लेकिन वर्तमान सरकार ने इस प्रोटोकॉल में कुछ अधिक ही इजाफा कर दिया। लगभग 30 आईएएस अधिकारियों के इन मेहमानों की आवभगत करने में लगा गया था। 

दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के यहाँ आये मुख्यमंत्रियों के साथ वरिष्ट अधिकारियों को लगाये जाने को तो किसी हद तक सही कहा जा सकता है। लेकिन ऐसा प्रोटोकॉल उनको दिया जाना ठीक नहीं था जो किसी संवैधानिक पद पर नहीं है। मसलन समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, सीपीआई (एम) सीतराम येचुरी, सी पीआई के राजा को किस नियमों के अंतर्गत राजकीय अतिथि बनाया गया। ऐसे कई अन्य नेताओं को भी राजकीय अथिति बनाया गया जो ऐसी पार्टियों के नेता थे जिनका कोई खास नाम अथवा पहचान नहीं है। सरकार की आलोचना का मुख्य बिंदु इस काम के लिए आईएएस अधिकारियों को लगाया जाना था। इन अधिकारियों को यह निदेश दिया गया था कि वे एयरपोर्ट पहुंच कर गुलदस्ते से उनका स्वागत करें तथा आयोजन खत्म होने तक उनको उपलब्ध रहें। 

कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि ऐसा पहले भी होता रहा है। 5 वर्ष पूर्व जब राज्य में जनता दल (स) एस और कांग्रेस की साझा सरकार बनी थी और  कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उस समय शपथ समाराहों में कई विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रिओं सहित 25 दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया था। इन सभी को तब राजकीय अतिथि बनाया गया था। यानि इन सबका खर्चा राज्य सरकार ने ही उठाया था। बस फर्क इतना था कि उनके उनके स्वागत और आवभगत में केवल प्रोटोकॉल विभाग के अधिकारियों को ही लगाया गया था। किसी को कोई अन्य सुविधाएँ नहीं दी गई थी। विपक्षी नेताओं का कहना है की शपथ ग्रहण समारोह एक राजकीय समारोह होता तथा इसमें आने वाले सब सरकार के मेहमान होते है।  

जब यह आयोजन बंगलुरु में हो रहा था तो नव निर्वाचित विधान सभा का पहला स्तर चल रहा था। जैसा कि अपेक्षित था बीजेपी और जनता दल (स) ने इस मुद्दे को लेकर हंगामा सा कर दिया। सदन की कार्यवाही में बाधा डाली गयी। हालत यहाँ तक पहुंच गई कि बीजेपी के 10 सदस्यों को मार्शल की सहायता से सदन से बाहर किया क्योंकि वे स्पीकर के निदेश को नहीं मान रहे थे। बाद में बीजेपी के नेताओ ने कहा कि वे राज्यपाल को एक ज्ञापन देकर मांग करेंगे कि इस आयोजन में लगाये गए सभी आईएएस अधिकारियों को सेवा नियमों का उल्लंघन करने का नोटिस जारी उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की जाये। (लेखक का अपन अध्ययन एवं अपने विचार है)