आंध्र प्रदेश में बदलते सियासी समीकरण
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक  

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पिछले विधान सभा और लोकसभा के चुनावों में आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की आंधी में लगभग समी दलों सफाया हो गया था। ना वहां के  सत्तारूढ़ दल तेलगु देशम जैसी बड़ी क्षेत्रीय पार्टी और न ही कांग्रेस और बीजेपी जैसे बड़े राष्ट्रीय दल कांग्रेस से अलग होकर बनी इस क्षेत्रीय पार्टी के  सामने टिक पाए। 

राज्य के मुख्यमंत्री तथा इस पार्टी के सुप्रीमो जगन मोहन रेड्डी, जिनके खिलाफ अभी भी भ्रष्टचार और मनी लौड़रिंग के कई मामलों की जाँच चल रही है, के केन्द्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार से खट्टे मीठे संबध रहे है। कई मौकों पर इस दल ने बीजेपी  का साथ दिया। ऐसे माना जाता है कि जगन मोहन रेड्डी “एकला चलो” की नीति पर चलने में विश्वास रखते है। आन्ध्र प्रदेश के पडोसी राज्य तेलंगाना के मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ दल भारत राष्ट्र समिति के सुप्रीमो के चन्द्रशेखर राव ने जब राष्ट्रीय स्तर पर गैर कांग्रेस एयर गैर बीजेपी वाला तीसरा मोर्चा बनाने की मुहीम शुरू की तो जगन मोहन रेड्डी ने उनसे हाथ मिलाने से इंकार कर दिया। इसी प्रकार जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गैर बीजेपी दलों को एक मंच पर लाने के प्रयास शुरू कर किये  तब भी जगन मोहन रेड्डी ने उनके साथ आने से साफ़ इंकार कर दिया। उनकी एकला चलो की राजनीति के चलते उन्होंने सभी चुनाव अपने बलबूते पर लड़े और राज्य में अपनी पैठ बनाई। बीजेपी ने अपनी और से ऐसा कोई कदम नहीं छोड़ा जिसके चलते रेड्डी एनडीए का हिस्सा बन जाये। लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सके। 

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहे है बीजेपी क्षेत्रीय और छोटे-छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है। कर्नाटक विधान सभा चुनावों में  पार्टी की हार को देखते हुए बीजेपी के नेता दक्षिण के हर राज्य में अपने पैर पसारने चाहते है ताकि इसके चलते पार्टी केंद्र में फिर सत्ता में आ जाये।

2014 में जब आंध्र प्रदेश को तोड़ कर तेलंगाना बनाया गया तो तेलगु देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री बने। उस समय उनकी पार्टी एनडीए का हिस्सा थी। जब उन्होंने अमरावती को राज्य की राजधानी बनाये जाने की घोषण की तो उनको उम्मीद थी कि केंद्र सरकार इसके लिए अलग से कुछ बड़ी आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाएगी। लेकिन ऐसा हो न सका। इसके चलते नायडू के बीजेपी से रिश्ते खट्टे होते चले गए। उनको विश्वास था कि उनकी पार्टी के अच्छे कामों के चलते वे फिर सत्ता में आ जायेंगे। लेकिन उनकी पार्टी विधान सभा चुनाव हार गई। इसके बाद वे और उनकी पार्टी नेपथ्य में हो गए। पर अबी वे पिछले कुछ समय से वे राज्य का लगातार दौर कर रहे है। बड़ी-बड़ी सभाए और रैलियां कर रहे है। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह अहसास सा कर लिया है कि उनकी पार्टी अपने बलबूते पर वाईएसआर कांग्रेस को चुनौती देने की स्थिति है। पिछले कुछ समय से वे बीजेपी के साथ होने की तैयारी में लगे है। दिल्ली जाकर गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी प्रेसिडेंट जे.पी. नड्डा से लम्बी बैठकें कर चुके हैं। उधर बीजेपी भी राज्य में अपने नए साथी ढूढने में लगी है।   वे चाहते है बीजेपी लोकसभा चुनाव राज्य में उनके साथ मिलकर चुनाव लड़े। इससे दोनों दलों को लाभ होगा। राज्य की कुल 25 सीटों पर दोनों मिलकर वाईएसआर कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे सकते है। 

राज्य में एक तीसरी बड़ी पार्टी जन सेना पार्टी है जिसके नेता तेलगु फिल्मों के अभिनेता पवन कल्याण है। चुनावी राजनीति की विशेषज्ञों का अनुमान है कि  अगर बीजेपी, तेलगु देशम पार्टी और जन सेना पार्टी मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो वाईएसआर कांग्रेस को कड़ी चुनौती दे सकते है। पवन कल्याण  और उनकी पार्टी के कई अन्य नेता चन्द्रबाबू नायडू के बहुत करीबी माने जाते है। पिछले दिनों इन दोनों नेताओ की कई मुलाकाते भी हो चुकी है। उधर  बीजेपी के नेताओं का यह निष्कर्ष है कि जगन मोहन रेड्डी कभी भी उनके साथ मिलकर चलने को तैयार नहीं होंगे इसलिए कोई अन्य विकल्प ढूंढना जरूरी है।  

पिछले दिनों अमित शाह ने राज्य में कई छोटी बड़ी सभाओं में हिस्सा लिया और इनमें जगन मोहन रेड्डी सरकार की जम कर आलोचना की। जवाब में जगन मोहन रेड्डी ने भी अमित शाह और बीजेपी पर पलट हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ये सब घटनाएँ इस बात को  दर्शाती हैं कि राज्य में लोकसभा चुनावों से पहले नई सियासी बिसात बिछती जा रही है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)