खिलौना : डॉ सुधा जगदीश गुप्त

 लघु कथा

लेखिका : डॉ सुधा जगदीश गुप्त 
कटनी, मध्य प्रदेश

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संक्रांति का मेला लगा हुआ था। आज कामवाली बाई छुट्टी लेकर गई थी। वहांँ उसनेअपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदे ,हर माल ₹10 का वाले स्टाल से। बाई ने अपने पति से कहा- जहांँ काम करती हूंँ उनका छोटा बेटा कृष्णा है, उसके लिए खिलौने लेने का मन कर रहा है। मैं उसे बहुत प्यार करती हूंँ। वह भी तो अम्मा अम्मा करता मेरे पीछे लगा रहता है। पति ने कहा-ले लो, तेरा मन कर रहा है तो। वह बोली- उनके यहांँ तो इतने महंँगे महंँगे खिलौने हैं और इतने सारे हैं कि दो बड़े-बड़े ड्रम भर जाएंँ, मुझे तो शर्म लगेगी, यह खिलौना देते हुए। 

पति बोला- तू कह तो ठीक रही है, फिर भी तू चुपके से उसे दे देना। बाई ने खिलौना ले लिया। दूसरे दिन वह काम पर गई तो कृष्णा रिमोट वाली कार, ट्रेन, एरोप्लेन, से खेल रहा था। बाई के आते ही कृष्णा- अम्मा अम्मा करने लगा। बाई ने उसे गोद में उठा लिया और अपने हाथ में छुपाया रंँग बिरंँगा खुनखुना उसे पकड़ा दिया। कृष्णा बेहद खुश हुआ नया खिलौना देखकर। खुनखुना में बना मिट्ठू, उसकी आंखें, उसकी चोंच पकड़-पकड़ कर कृष्णा इतना खुश हुआ कि सारे कीमती खिलौने उसने अलग कर दिये, वह अपनी मांँ को बता रहा था। (उसे प्यार का प्यारा खिलौना जो मिल गया था) अम्मा अपनी आंँखों से खुशी के आंँसू पौंछ रही थी।