सामाजिक न्याय व उच्चतम न्यायालय : डा. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी एवं पूर्व सदस्य सचिव- राज.राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग हैं 

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सुप्रीम कोर्ट ने नवीन फैसले में 27 प्रतिशत ओबीसी और 10 प्रतिशत ईडब्लूएस कोटा मंजूर करते हुए जस्टिस डी.वाई.चन्द्रचूड और जस्टिस ए.एस.बोपन्ना ने कहा आरक्षण मेरिट या योग्यता के खिलाफ नहीं है बल्कि सामाजिक न्याय है। मेरिट के साथ आरक्षण भी दिया जा सकता है। इसे विरोधाभाषी नहीं मानना चाहिए। सुप्रिम कोर्ट में आरक्षण के खिलाफ याचिकाओं में दलील थी कि किसी उम्मीदवार को ईडब्लूएस कोटे का लाभ सालाना आय 8 लाख रूपये से कम होने पर मिलता है जो कि गलत है। इतली आय वाला परिवार आर्थिक रूप से पिछड़ा नहीं होता। इस पर केन्द्र सरकार ने कहा था कि यह मापदण्ड सही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस डी.वाई.चन्द्रचूड और जस्टिस ए.एस.बोपन्ना की बैंच ने कहा ‘‘ग्रेज्यूएट होने के बाद किसी व्यक्ति की आर्थिक या सामाजिक स्थिति नहीं बदल जाती। इसलिए कमजोर वर्ग के उम्मीदवार की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए आरक्षण जरूरी है। जब पी.जी. कोर्स के लिए आरक्षण लागू है तो फिर नीट में क्यों नहीं हो सकता। बैंच ने यह भी कहा कि परीक्षा में अर्जित अंक किसी की योग्यता का एकमात्र मापदण्ड नहीं हो सकता। योग्यता का विराधाभाषी नहीं है। उम्मीदवार की सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि को भी योग्यता के सम्बन्ध में अधिक प्रासंगिक बनाने की जरूरत है क्योंकि परीक्षा मेरिट की प्रोक्सी नहीं है।

मेरिट को सामाजिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए क्योंकि देश में पिछड़ापन मिटाने को आरक्षण के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। यह भी हो सकता है कि जिन्हें आरक्षण दिया जा रहा है वे पिछड़े न हो लेकिन ऐसे कुछ उदाहरणों के आधार पर आरक्षण की भूमि को नकारना गलत होगा। कौंसिलिंग के पहले आरक्षण लागू करने से नियम को बदलना नहीं माना जा सकता। नीट पीजी. यूजी ओबीसी, इडब्लूएस आरक्षण संवैधानिक है। कोर्ट को दुबारा समीक्षा की आवश्यकता नहीं है।

संविधान सभा में बाबा साहब अम्बेडकर ने आरक्षण संबंधी बहस में कहा था आरक्षण ‘‘माइनरेटी’’ तक रखा जायेगा। 1951 में पं. जवाहरलाल नेहरू ने सामाजिक, शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर पिछड़ा वर्ग आरक्षण संविधान अनुच्छेद 15 व 16 में संशोधन कर जोड़ा था। केवल जाति के आधार पर काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट खारिज की थी और निर्धनता को पधानता देने का सरकूलर जारी किया था। केन्द्रीय सूची नहीं बनाने का निर्णय लेकर राज्यों को अपनी-अपनी सामाजिक, शैक्षणिक गरीबी की स्थिति को ध्यान में रखकर लिस्टें बनाने का आदेश दिया था। 

मण्डल रिपोर्ट में 27 प्रतिशत आरक्षण पिछड़ा वर्ग के लिए रखा था जबकि आबादी का आंकलन 53 प्रतिशत माना था। वी.पी.सिंह ने आरक्षण लागू करने की घोषणा की। नरसिंहा राव सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण पिछड़ा का लागू किया। इसके विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में रिट याचिकाएं दायर हुई। उच्चतम न्यायालय ने मद्रास सरकार की अपील एमबीबीएस में अधिक आरक्षण के कारण खारिज कर दी। महाराष्ट्र की भी मराठा आरक्षण की अपिल खारिज कर दी।  

सुप्रीम कोर्ट ने इन्द्रा साहनी बनाम भारत सरकार की 9 जजों की पीठ में निर्णय किया था कि आरक्षण साधारणतया पचास प्रतिशत रखा जायेगा। निषेद व निर्योग्यताओं के कारण सामाजिक, शैक्षणिक पिछड़ों की आयोग द्वारा लिस्ट को प्रत्येक राज्य व केन्द्रीय स्तर पर हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में परमानेन्ट आयोग बनाने जाकर रिवीजन किया जायेगा। दस साल में पूरी लिस्ट का रिवीजन होगा। क्रिमीलेयर एक हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में गठित समिति तय करेगी। 

अपवर्जन का सिद्धान्त लागू होगा और क्रिमीलेयर को आरक्षण नहीं मिलेगा। अत्यन्त पिछड़े वर्ग जो पृथक धन्धा करते हैं, उनकी लिस्टा पृथक से बनेगी। परमानेंट आयोग लिस्ट से उन वर्गो को हटायेगा जो समृद्ध, शक्तिशाली, धनिक व उन्नत हो गये है। सामाजिक व शैक्षणिक स्थिति सुधर गई है परन्तु दुर्भाग्य से आयोगों ने नई जाति/वर्ग को जोड़ा, किसी को नहीं हटाया गया। लिस्टों का रिवीजन 30 साल में भी नहीं हुआ। क्रिमीलेयर की सीमा राजनैतिक आधार पर बढ़ती गई। गरीब, अत्यधिक पिछड़े को अवसर नहीं मिला। पिछड़ा ओर अधिक पिछड़ गया। पिछड़े के नाम पर शक्तिशाली समृद्ध लाभान्वित होते रहे।

उच्चतम न्यायालय ने इन्द्रा साहनी बनाम भारत सरकार में स्पष्ट निर्णय किया था कि आरक्षण का अधिकारी केवल वही होगा तो निषेदों व निर्योग्यताओं के कारण सामाजिक, शैक्षणिक पिछड़ गया। आरक्षण से प्रशासनिक कर्मठता व योग्यता पर असर नहीं पड़ेगा। ऐसी पोस्टों पर जिन पर विशिष्ट योग्यता प्रशिक्षण आवश्यक हो, बाहर रखा जायेगा। यह भी स्पष्ट निर्णय लिया था कि केवल आय व सम्पत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं मिल सकता। संविधान की मंशा के विरूद्ध है। सुप्रिम कोर्ट ने नरसिंहा राम सरकार द्वारा जारी 10 प्रतिशत आरक्षण का नोटिफिकेशन खारिज कर दिया। आय के आधार पर आरक्षण नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी रिजर्वेशन में भी उन्हीं के पिछड़े लोगों को आरक्षण हेतु क्रिमीलेयर जारी करने की नीति अपनाई। कई फैसलों में लिस्टों का रिवीजन करने का आदेश दिया परन्तु नाम जुड़ते गये। पिछड़ों की जनसंख्या लिस्टों के अनुसार बढ़ती गई, कोई प्रयास नहीं हुए। राजनैतिक कारणों से सही रूप से लिस्टों का वर्गीकरण नहीं हुआ। समृद्ध, शक्तिशाली लाभ ले रहे है। अत्यधिक पिछड़े वंचित रह रहे है। पिछड़े वर्गो की लिस्टों में नाम बढ़ते जा रहे है और वर्गीकरण व आरक्षण में वृद्धि की मांग की जा रही है। 

कहा जा रहा है सुप्रिम कोर्ट के आदेश से जब 60 प्रतिशत हो गया तो सीमा हट गई। राजस्थान में अत्यधिक पिछड़े के नाम से 5 प्रतिशत जोड़े जाने से 64 प्रतिशत हो गया। अब 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत की मांग की जा रही है। पृथक-पृथक जाति/वर्ग द्वारा पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की मांग की जा रही है। वैसे सुप्रिम कोर्ट फैसला दे चुका है, आरक्षण मूल अधिकार नहीं है, सरकार को डिस्क्रीशनरी पावर्स है। ऐसी स्थिति में उपयुक्त होगा उच्चतम न्यायालय कान्सटीट्यूश्नल बैंच पूरे मामले पर विचार कर निर्णय करें क्योंकि विभिन्न व पृथक-पृथक फैसलों से स्थिति अस्पष्ट हो गई है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)