कविता : अहमियत
लेखक : तिलकराज सक्सेना
जयपुर।
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गलत तुम भी नहीं, गलत मैं भी नहीं,
गलत ये भी नहीं, गलत वो भी नहीं,
बस कुछ हसरतें थीं, कुछ अरमान थे,
जिनकी आपस में कभी बनी ही नहीं।
अहमियत की लड़ाई ने,
छीन लिया सबको, सबसे,
वर्ना कोई और लड़ाई तो थी ही नहीं।
खेला करते थे हम छतों पर आंख-मिचौली,
चंगा-पौ, कभी डाकन-डिब्बा, लंगड़ी टांग,
अब आँसू बहाती छतें सूनी,
कोई खेल खेलने वाले अब रहा ही नहीं।
मोबाइल ने छीन लीं आज़ खुशियां सबकी,
ज़हन में अब सिवा इसके कुछ रहा ही नहीं।