लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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जब पाठक ये पंक्तियाँ पढ़ रहे होंगे तब तक कर्नाटक में विधानसभा चुनावों में चुनावी प्रचार थम चुका होगा। दक्षिण के इस राज्य में लगभग दो दशक वर्ष पूर्व पहली बार कमल खिला था, यानि बीजेपी सत्ता में आई थी। उसी समय से यहाँ चुनावों का ध्रुवीकरण होना शुरू हो गया था। कभी बीजेपी सत्ता में रही तो कभी कांग्रेस। राज्य में तीसरा बड़ा दल जनता दल (स) कभी भी अपने बल बूते पर सत्ता में नहीं आया। कम सीटों के बाद भी इसकी भूमिका किंग मेकर की रही। राज्य में त्रिशंकु विधान सभाएं बनते रहने के कारण इसके नेता एचडी कुमार स्वामी सफल राजनीतिक सौदेबाजी करके एक से अधिक बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। यानि किंग मेकर की जगह खुद किंग बनने में सफल रहे।
10 मई को होने वाले चुनावों से पहले राज्य में स्थिति कमोबेश पहले जैसी ही है। 224 सीटों लिए के लिए बीजेपी और कांग्रेस में सीधी टक्कर है वहीं जनता दल (स) अपनी लगभग तीन दर्जन पारम्परिक सीटों को बचाने की लडाई लड़ रहा है।
कहने को तो तीनो दलों के नेता कह रहे हैं कि यह चुनाव विकास के मुद्दे पर हो रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि चुनावों पर जातिवाद छाया हुआ है। आखरी चरण में तो यह काफी हद तक साम्प्रदायिक भी गया। इसके साथ ही इन तीनो दलों के नेता अपने विरोधी दलों की नीतियों और घोषणाओं की आलोचना करने की बजाये नेताओं पर सीधे हमले कर रहे है। पिछले दिनों कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विषधर सांप कहा वही बीजेपी के एक नेता ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी को विषकन्या बता दिया।
आम तौर पर माना जा रहा है कि इन चुनावों से कुछ दिनों पूर्व तक कांग्रेस बीजेपी की तुलना से बेहतर स्थिति में है। लेकिन जिस प्रकार बीजेपी ने चुनावी अभियान के अंतिम चरण में पूरी ताकत झोंक दी उसने इस चुनाव को कांटे की लड़ाई बना दिया है। चुनाव अभियान के आखरी दिनों में नरेंद्र मोदी ने लगभग एक दर्जन बड़ी सभाओं को संबोधित किया तथा इतने ही रोड शो आयोजित किये। केवल इतना ही नहीं बीजेपी के लगभग 100 बड़े नेता इस दौरान यहाँ डेरा डाले रहे। इनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी प्रमुख शामिल थे। उधर कांग्रेस की ओर से चुनाव अभियान की कमान खुद राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी वाड्रा ने संभाल रखी थी। मल्लिकार्जुन खड्गे स्वयं इसी राज्य से आते है। उनकी छवि एक बड़े दलित नेता की है। पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला चुनाव है जो उनके नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। चुनावों की घोषणा के कुछ दिन बाद से ही वे यहाँ डेरा डाले हुए है।
दोनों पार्टियों ने अपने अपने चुनाव घोषणा पत्र जारी कर दिए है। कुछ चुनावी वायदे तो ऐसे हैं जो कभी भी पूरे नहीं किये जा सकेंगे। कांग्रेस ने कहा है की अगर वह सत्ता में आती है तो 200 यूनिट बिजली सभी उपभोक्तायों को मुफ्त दी जायेगी। बेरोजगार युवकों को प्रति महा 2000 रूपये बेरोजगारी भत्ता दिया जायेंगा। सभी महिलायों को 1000 रुपये दिए जायेंगें। बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में अपनी वर्तमान सरकार के लोक कल्याण कार्यक्रमों को जारी रखने के वायदा किया है।
अब नज़र डालते है कि सारा विधानसभा चुनाव किस प्रकार जातिगत होने के साथ साथ साम्प्रदायिक भी हो गया है। बीजेपी सरकार ने चुनावों से कुछ समय पूर्व राज्य के दो प्रमुख जातिगत समुदायों-लिंगायत और वोक्कालिगा का आरक्षण 2-2 प्रतिशत बढ़ा दिया था। इसी प्रकार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण की श्रेणी में बदलाव कर आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर वर्ग में डाल दिया था। कांग्रेस और मुस्लिम नेताओ का कहना है कि एक प्रकार से मुस्लिम आरक्षण समाप्त कर दिया गया है। उनका कहना है कि अगर कांगेस सत्ता में आयेगी तो मुस्लिम आरक्षण फिर से बहाल कर दिया जायेगा।
कांग्रेस नेताओं ने जिस दिन घोषणा पत्र जारी किया उस दिन यह भी कह दिया कि अगर वह सत्ता में आई तो बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगा दिया जायेगा। यह संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुसंगिक संगठन है। यह बात मतदान से एक हफ्ता हफ्ता पहले कही गई। कांग्रेस नेताओं ने बजरंग दल की तुलना मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन पीऍफ़आई से की थी जिस पर केंद्र सरकार ने कुछ समय पूर्व प्रतिबन्ध लगा दिया था। बीजेपी को इससे बड़ा मुद्दा बना दिया तथा इसे हिन्दू मुस्लिम रंग दे दिया। वैसे भी बजरंग दल राज्य में मजबूत है। बीजेपी की सभी सभायों में इस एक बड़े मुद्दे के रूप में उछालना शुरू कर दिया। इस पर कांग्रेस बैकफुट पर आ गई। इसके चलते सारे चुनाव अभियान का रुख ही बदल गया तथा सारा चुनाव साम्प्रदायिक रंग में रंग गया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)