मुख्यमंत्री गहलोत के आश्वासन के बाद जिले का आंदोलन ठंडा पड़ा

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। प्रदेश के मुखिया अशोक गहलोत की ओर से विधानसभा में 19 जिलों की की गई घोषणा के बाद यद्यपि अभी नवीन जिलों के लिए गजट नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है और ना ही नवीन जिलों में सम्मिलित होने वाली क्षेत्रों का डिमारकेशन ही हुआ है। ऐसी स्थिति में नवीन जिलों के पुनर्गठन की विधिवत प्रक्रिया पूर्ण होने पर अभी फिलहाल असमंजस ही बना हुआ है, यहां तक की अब चर्चा यह भी है कि समय रहते यदि नवीन जिलों के लिए गजट नोटिफिकेशन की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हुई तो विधानसभा चुनाव के नजदीक आते-आते चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद यह ठंडे बस्ते में मामला सिमट नहीं जाए। इस बात को लेकर भी अब चर्चाओं का बाजार गर्म है। विधिवेत्ताओं का मानना है कि सीएम गहलोत ने विधानसभा में नवीन जिलों के पुनर्गठन के लिए घोषणा की है वह गजट नोटिफिकेशन की प्रक्रिया पूर्ण होने से पहले किसी भी रूप में संभव नहीं है। 

फुलेरा विधानसभा क्षेत्र के बुद्धिजीवियों का कहना है कि प्रदेश के मुखिया ने उप जिला सांभर को जिले का दर्जा न देकर ग्राम पंचायत दूदू को नवीन जिले की सौगात देकर अपनी राजनीति दुर्भावना का परिचय दिया है। इतिहास में आज तक ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि ग्राम पंचायत को सीधा ही जिला बना दिया जाए और 7 दशकों से सांभर जोकि जिले का संपूर्ण आधार हर दृष्टिकोण से रखता है उसको नजरअंदाज कर दिया जा ऐसा ही सांभर के साथ सौतेला व्यवहार करके उसके ऐतिहासिक अस्तित्व को कम करने का सरकार ने काम किया है। 

यहां जिले के लिए चले अंतिम बार आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री से मिले आश्वासन के बाद से ही आंदोलन अब ठंडे बस्ते में चला गया है। इसका मुख्य कारण यह भी माना जा रहा है कि यहां चार दफा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ा। दूसरा कारण कांग्रेस विधायक उम्मीदवार का सचिन पायलट ग्रुप का समर्थक होना बताया जाना, वर्तमान में भाजपा विधायक का नेतृत्व कांग्रेस सरकार को रास नहीं आना, आंदोलन का ठोस नेतृत्व और रणनीति का अभाव होना, राजनीतिक प्रभाव सांभर के प्रति पूरी तरह से शून्य होना, राजनीतिक दलों का जिले के आंदोलन के दौरान एक प्लेटफार्म पर प्रमुखता से नहीं आना तथा कुछ विचार धाराओं की कमी होना इसके प्रमुख मोटे कारण माने जा रहे हैं जिसकी वजह से प्रदेश के मुखिया पर यहां के राजनेता ऐसा कोई जवाब नहीं बना सके जैसा ग्राम पंचायत दूदू होते हुए वहां के विधायक ने बनाया। 

आंदोलन के दौरान प्रदेश के मुखिया गहलोत, विधायक निर्मल कुमावत, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्यालय चौधरी का सार्वजनिक स्थानों पर पुतला फूंका जाना सकारात्मक संदेश सरकार तक नहीं पहुंचा है। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि जिस प्रकार से दूदू जिला बनने के बाद आसपास के क्षेत्रों का दूदू में शामिल होने का विरोध प्रकट होने से वहां के विधायक के लिए भी गलफांस बनती जा रही है। 

संभावना तो यह भी बताई जा रही है कि सांभर का प्रबल आधार दूदू से 100 गुना मजबूत होने के बाद अब सरकार मजबूरी में दूदू सांभर संयुक्त रूप से नाम जोड़ कर यह नई घोषणा भी कर सकती है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो अब हाई प्रोफाइल विधिवेताओं से राय लेकर राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर उन प्रमुख आधारों को उठाया ताकि न्यायालय को सरकार कोई  यथोचित दिशा निर्देश जारी करने पड़े, हालांकि सरकार के नीतिगत फैसलों में यह संभव तो नहीं है लेकिन इसके अलावा अब दूसरा कोई विकल्प भी शेष नहीं बचा है।