कर्नाटक में छोटे दल बिगाड रहे है बड़ों का खेल

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं 

www.daylife.page 

कर्नाटक विधानसभा के चुनावों के लिए मतदान लगभग दो सप्ताह के बाद होना है। राज्य के दोनों बड़े राजनीतिक दल-सत्तारूढ़ बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस-सदन में स्पष्ट बहुमत पाने की लड़ाई लड़ रहे है। लेकिन चुनावी मैदान में उतरे लगभग आधा दर्जन छोटे दल इन दोनों दलों का खेल बिगाड़ने में लगे हुए है। उधर राष्ट्रीय दल का दर्ज़ा पाने के बाद आम आदमी पार्टी ने भी विधानसभा की सभी 224 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए है।

सबसे पहले बात करते है जनता दल (स) की, जो राज्य का तीसरा सबसे बड़ा दल है। केंद्र में प्रधानमंत्री बनाए से पहले एचडी देवगौड़ा इसी पार्टी के प्रमुख होने के चलते राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद यह पार्टी कभी भी अपने बलबूते पर सत्ता में नहीं आई। कभी इस पार्टी के राज्य प्रमुख एच डी कुमारस्वामी, जो देवेगौडा के पुत्र है, ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई तो कभी कांग्रेस के साथ। पिछले कुछ चुनावो से यह पार्टी 40 से 50 सीटें जीतती रही है।  सीटें कम होने के बावजूद कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बनने के लिए राजनीतिक सौदेबाज़ी करने में सफल रहे और मुख्यमंत्री बने। एक समय वे बीजेपी का साथ पा कर मुख्यमंत्री बने तो दूसरी बार कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। लेकिन वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा  नहीं कर पाए। 

2013 और 2018 के बीच, जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, जनता दल(स) सदन में प्रमुख विपक्षी दल था। 2013 में इसे 40 से अधिक सीटने मिलीं जब कि 2018 में ये घट कर 37 रह गई। हालाँकि कुमारस्वामी दावा कर रहे  है की इस बार राज्य सरकार उनकी पार्टी की ही बनेगी लेकिन चुनावी विशेषज्ञ मान कर चल रहे हैं कि इस बार  भी इसे लगभग तीन दर्ज़न के आस पास सीटें मिलेंगी। चूँकि विधानसभा की सदस्य संख्या 224 है इसलिए ऐसी स्थिति में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों के लिए  स्पष्ट बहुमत पाना काफी कठिन होगा। ऐसी स्थिति में जनता दल (स) एक बार फिर किंग मेकर की भूमिका उभरकर सामने आयेगा। 

पिछले विधान सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने सीमित सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसके लगभग सभी उम्मीदवारों की जमानत जप्त हो गई थी। इसके बाद दिल्ली में फिर सत्ता में आने और पंजाब में अपने सरकार बनाने के बाद पार्टी नेतृत्व को पूरा विश्वास है की यह दल कर्नाटक जैसे राज्य में भी अपनी उपस्थिति दिखा सकता है, जैसा कि गोवा और गुजरात के चुनावों में हुआ था। कांग्रेस और बीजेपी के नेता इस बात का आंकलन करने में लगे है कि आम आदमी के चुनाव में आने से उनका कितना नुकसान हो सकता है। 

शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दिल्ली में तो कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी मोर्चा बनाने में जुटी है लेकिन कर्नाटक में, जहाँ कांग्रेस के सत्ता में आने के संभावना दिख रही है, पार्टी ने 45 उम्मीदवार खड़े करने का निर्णय किया है। इसके उम्मीदवार जीतते है या नहीं लेकिन यह जरूर है मैदान में इस पार्टी के उम्मीदवार होने से कांग्रेस को कुछ जगह नुकसान हो सकता है। 

राज्य में खनन माफिया के रूप में जाने जाने वाले जनार्दन रेड्डी कभी बीजेपी के बड़े नेता थे। वे मंत्री भी थे, लेकिन खदानों से निर्यात घोटले के चलते उन्हें  जेल में भी जाना पड़ा। इस दौरान वे पार्टी से निकाल जरूर दिए गए लेकिन पार्टी के नेताओ के करीबी बने रहे। लेकिन उनकी पार्टी में वापसी नहीं हो सकी।  उनके भाई अभी बीजेपी में है और विधायक है। पार्टी में लौटने के लम्बे इंतजार के चलते इस बार उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली है। उनकी पार्टी कल्याण  राज्य प्रगति पार्टी  ने आंध्रप्रदेश की सीमा से सटते तेलगु भाषी इलाकों में 50 उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा की है। उनके पास धन की कमी नहीं है इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया सकता कि उनकी पार्टी कुछ न कुछ सीटें जरूर जीत सकती है। यह बीजेपी को सीधा नुकसान होगा। राजनीतिक हलकों में यह कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी को बहुमत से कुछ सीटें मिलती है तो ऐसी स्थिति में जनार्दन रेड्डी संकट मोचक बन कर सामने आयेगे। 

केंद्र सरकार ने कुछ समय पूर्व केरल में केन्द्रित मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन पोपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। लेकिन इसके राजनीतिक घटक सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया। यह दल कांग्रेस के नज़दीक माना जाता है। 2018 के विधान सभा चुनावों में  इसने कांग्रेस के साथ मिलकर तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन कहीं जीत नहीं पाई। इस बार यह अपने बल पर 100 स्थानों पर चुनाव लड़ रही हैं। राज्य में मुस्लिम आबादी लगभग 13 प्रतिशत है। यह पार्टी कहीं से जीतेगी या नहीं यह कहना कठिन है, लेकिन कांग्रेस के मुस्लिम वोटों में सेंध लगा इसकी जीत को प्रभावित कर सकती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)