किसान हित या कोरपोरेटाइजेशन

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह 

लेखक रिटायर्ड आई ए.एस. अधिकारी हैं

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भाजपा सरकार के कृष्ण पक्ष के चार प्रमुख आयाम है, पहला नोटबंदी, दूसरा जीसएटी, तीसरा लम्बा सख्त लोकडाउन से उपजी आर्थिक मंदी व बेरोजगारी, चौथा निजीकरण। भारत कृषि प्रधान देश है, इसकी आत्मा गांवों में बसती हैं देश के शासक इस हकीकत से वाकिफ है परन्तु नजरन्दाज कर रहे है। कृषि पर से सरकार का फोकस हटता जा रहा है, निर्यात में कृषि उत्पादों का हिस्सा घट रहा है, कृषि पर लोगों की निर्भरता कम हो रही है, लघु व कुटीर उद्योग, पशुपालन व डेयरी व्यवसाय में गिरावट से शहरों की तरफ पलायन बढ़ रहा है। अन्य सभी सेक्टरों में रियायतें बढ़ी है, उसमें भारत में कृषि ब्याज दुनिया के सभी देशों से ज्यादा है। इन्हीं कारणों से अमीर-गरीब, शहरी व ग्रामीण इलाकों के बीच की खाई बढ़ रही है। ग्रामीण इलाकों में शहरों के मुकाबलें उपभोक्ता खर्च 87 फीसदी ज्यादा है। 

उदार अर्थव्यवस्था की नीतियां किसानों के हित के विपरीत सिद्ध हो रही है। कामर्सियल बैंको को बचाने के लिए हजारों करोड़ रूपया खर्च किया, को-आपरेटिव क्रेडिट बैकों की पुनः सरंचना के लिए कुछ नहीं कर रही है। उनको केन्द्रिय नियंत्रण में लेने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। खेत तक टैक्नोलॉजी पहुंचाने की नीति भी स्पष्ट नहीं है। क्रियान्वयन पूरी ईमानदारी से नहीं हो रहा है। कृषि में निवेश व उत्पादन सिकुड़ता जा रहा है, खेतिहर क्षेत्र की बदहाली व दुर्गति ग्रामीण भारत का स्थायी भाव बन गया है। किसानों को बढे़ हुए समर्थन मूल्य देने से इंकार, पैट्रोलियम पदार्था की आसमान छूती कीमते, कौशल विकास की और धकेल दिया है। रोजगार, निवेश, मुद्रास्फिति वगैरा के मोर्चे पर असफलता मिली है।

अनाज की खरीद और गौदामों में उन्हें बेहतर ढंग से रखने की नीति व क्रियान्वयन ठीक नहीं है। अब तो सरकार अनाज खरीद की नीति व अनाज संग्रहण की नीति को ही खत्म करने जा रही है। न्यूनतम मूल्य घोषणा में देरी होने से किसान बाजार मे कम कीमत पर उपज बेचने को मजबूर हो जाता है। सरकार कारपोरेट जगह को लाभान्वित करने व मजबूत करने को किसानों के हितों का त्याग कर रही है। कोरोना लोकडाउन के दौरान भारत सरकार ने बगैर मंत्रणा व विस्तृत विचार विर्मश कानूनों में संशोधन कर आर्डीनेन्स निकालकर कृषि पदार्था की खरीद-बिक्री संग्रहण, विपणन, आवाजाही, उत्पादन आदि के सम्बन्ध में नई कानूनी व्यवस्था कर दी व कारपोरेटाइजेशन की ओर धकेल दिया। फार्मर्स प्रोडयूस ट्रेड एण्ड कामर्स आरडीनैन्स, फार्मर्स एमपावरमेन्ट व प्रोटेक्शन एग्रीममेन्टस ऑफ प्राइस, एश्योरेन्स एण्ड फार्म सर्विसेज, आवश्यक वस्तु अधिनियम संशोधन जारी कर संसद में स्वीकृत करा लिया। स्टाकलिमिट, अनाज का मूवमेन्ट व निर्यात पर प्रतिबन्ध नही रहेगा। कोरोना संकट के प्रारम्भ में धान का समर्थन मूल्य 2.9 प्रतिशत बढ़ाया जबकि खाद्यान्न में मंहगाई दर 8.4 प्रतिशत रही। देश में दालों का सेवन सबसे ज्यादा किया जा रहा है वर्तमान आयात नीति के अनुसार एमएसपी से कम मूल्य पर इन्हें बेचा जा रहा है जिसका नीति निर्माण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पडे़गा।

नवीन संशोधनों के अनुसार अनाज खरीद बिक्रि और देश भर में आवाजाही पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होगा, संगठित कारोबार यानि कारपोरेटाइजेशन होगा, न्यूनतम समर्थन मूल्य, या लाभकारी मूल्य की गांरटी केवल कागजी रहेगी। कृषि मार्केटिंग के बजाय ट्रेड शब्द का इस्तेमाल किया गया है निजी क्षेत्र इस कारोबार में उतरेगा। कारपोरेट फार्मिग व लैण्ड लीजिंग तेजी से बढ़ेगी। सहकारी संगठन, मार्केटिंग संगठन व व्यवस्था की ताकत समाप्त हो जायगी। मार्केटिंग में किसानों व उनकी संस्थाओं का ध्यान नहीं होकर नौकरशाही व राजनीति का दखल बढ़ जाएगा। अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भरता कि बुनियाद बनाने की बजाय बड़ी कम्पनियों पर आधारित हो जाएगी। 

देश के 60 फिसदी लोग खेती पर आश्रित है 86 प्रतिशत लघु व सीमान्त कृषक है शिक्षा से वंचित है। दो तिहाई से अधिक के पास असिंचित छोटे भू-भाग है। कृषि की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी 50 प्रतिशत हैं। आज किसानों के पास भण्डारण व्यवस्था नहीं है अब भण्डारण सीमा का लाभ व्यापारियों को मिलेगा। किसान से अनाज लेकर वे भण्डारण करेगें, देश व विदेश में बेचेंगे। बेहतर मूल्य का लाभ व्यापारियों को मिलेगा। छोटे किसानों को वर्तमान कृषि मंडी व न्यूनतम मूल्य व्यवस्था से हाथ धोना पडे़गा। छोटे किसानों कि तकलीफे बढे़गी। 

आत्मनिर्भर भारत, उन्नत कृषि व डेयरी उत्पादन, अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान फूकने का नारा कारगर नहीं होगा। वर्तमान व्यवस्था कृषि उत्पाद मंडी के माध्यम से उत्पादों को बेचने की व्यवस्था व अनिवार्यता खत्म हो जायगी। किसान के बेहतर दाम नहीं मिलेगा। निजी कंपनियां स्पांसर का कार्य करेगी। अपेक्षित रोजगार का सृजन नहीं होगा। 

आर्थिक विश्लेषण अर्थव्यवस्था की कमजोर स्थिति बता रहे है, हम उसकी परवाह नहीं कर रहे है भारतीय अर्थव्यवस्था कई देशकों से ऐसी बुरी स्थिति में नहीं रही अगर हम शीघ्र नहीं सुधारेंगे तो अगली पीढ़ी बुरी तरह प्रभावित होगी। किसान तीनों कृषि आध्यादेशों के खिलाफ आंदोलित है। सरकार कारपोरेट की तरह फैसले ले रही है। वर्तमान सोशियल इकोनामिक व्यवस्था को समाप्त कर रही है। पूर्व में किसान नेता देश चलाते थे अथवा उनको विश्वास में लेकर निर्णय लिया जाता था। अब कारपोरेट जगत के हित में सीधा निर्णय बगैर संसदीय चर्चा के लिए जा रहे है। बिचौलियों व शोषण से मुक्ति के स्थान पर उनकी पकड़ मजबूत होगी। जमीनें छिनेगी किसान बेदखल होगें। कर्जमुक्ति के स्थान पर कृषि भूमि जाने का खतरा बन जाएगा। 

किसान हित या कारपोरेटाइजेशन यह प्रश्न, सामने आ गया है। किसानों के उत्पादों को संगठित क्षेत्र के अर्न्तगत लाने से बड़े कारपोरेट समूहों के उतरने का रास्ता खुल गया जो राष्ट्रहित के विपरीत होगा। मानवीय संकट के रूप में बड़ी कीमत चुकानी होगी। सप्लाई चेन में बाधा होगी, ऑनलाइन फ्राड बढे़गे। शहरी गरीब व ग्रामीण में असमानता बढे़गी। किसानो को अपनी जमीनों से हाथ धोना पडे़गा। सुस्थिर विकास का सपना, मानव कल्याण की भावना, भावी पीढ़ी का स्वपनिल विकास, पर्यावरण संरक्षण व प्राकृतिक साधनों का विद्रोहन विकास व संरक्षण यानि भावी मानव के हितों की रक्षा पर विपरीत प्रभाव पडे़गा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)