एक विनम्र, बेबाक, निर्भीक और साहसी पत्रकार का अवसान : ज्ञानेन्द्र रावत
वेद प्रताप वैदिक  

www.daylife.page 

देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका के लिए विख्यात, विनम्रता और सहजता के धनी, अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए ख्यात वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, मूर्धन्य साहित्यकार, संपादक एवं वैदेशिक मामलों के जानकार डा० वेदप्रताप जी वैदिक अब नहीं  रहे। उनका आज सुबह गुरुग्राम स्थित आवास पर बाथरूम में फिसलने से चोटिल हो जाने से निधन हो गया। उनको तुरंत अस्पताल भी ले जाया गया लेकिन वहां डाक्टरों ने उनको मृत घोषित कर दिया। उनका यकायक चले जाना हिन्दी पत्रकारिता ही नहीं, हिन्दी साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है। उनकी कमी सदा खलेगी। 

1944 में इंदौर में जन्मे वैदिक जी को हिन्दी का प्रबल पक्षधर माना जाता है। अपने हिन्दी प्रेम के चलते मात्र 13 वर्ष की आयु में सत्याग्रह में वह जेल गये। उनको अपने शोध कार्य के दौरान अमेरिका में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी, लंदन स्थित प्राच्य विद्या संस्थान, मास्को की विज्ञान अकादमी और काबुल यूनिवर्सिटी में भी अध्ययन का अवसर मिला। उन्होंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय शोध हिन्दी में ही किया। राजनीति में पी एच डी करने के बाद वह देश-विदेश के शोध संस्थानों और यूनिवर्सिटीज में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। 

वह निर्भीकता, सच्चाई और राष्ट्र भक्ति की भावना से ओतप्रोत थे। उद्दाम साहस और राष्ट्र भक्ति की भावना के बलबूते वह बड़े से बड़े व्यक्ति के सामने अपनी बात कह देते थे। यह गुण उनमें आर्य समाज और स्वामी दयानंद के प्रभाव को दर्शाता है। उन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन में देश के कई नामी-गिरामी मीडिया प्रतिष्ठानों में काम किया। वहां उन्होंने शीर्ष पदों पर भी काम किया। पीटीआई के तो वह प्रमुख रहे लेकिन वह जहां भी रहे, सभी जगह वे मिलने वालों से ऐसे मिलते थे जैसे उनका कोई अपना घर-परिवार का मिल रहा हो। खासियत यह कि इस दौरान वह मिलने आने वाले से घर-परिवार की कुशल क्षेम पूछना कभी नहीं भूलते थे। 

वैदिक जी के देश के राजनीतिक दलों के नेताओं से भी मधुर संबंध थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी से उनके सम्बंधों से सभी भलीभांति परिचित हैं। देश के राजनीतिक नेताओं और प्रतिष्ठित लोगों से उनके मित्रवत संबंध थे। या यों कहा जाये कि सभी दलों में उनकी गहरी पैठ थी और सभी उनका काफी सम्मान करते थे। कांग्रेस शासन काल में तो उन्हें पीटीआई का निदेशक बनाया गया था। लेकिन गांधी की हत्या के लिए वह कांग्रेस को ही जिम्मेदार मानते थे। असलियत में वह दलीय भावना से बहुत ऊपर उठे हुए थे। यही नहीं विदेशी राष्ट्रों के प्रमुखों से भी उनके सम्बन्ध खासकर मुस्लिम देशों के राष्ट्राध्यक्षों से काफी चर्चा के विषय रहे हैं।

आतंकी हाफ़िज सईद के साक्षात्कार ने उन्हें देश-विदेश में काफी ख्याति दिलाई, वहीं वह विवादों में भी रहे। वह बात दीगर है कि उसका उन्होंने बड़ी निर्भीकता से जबाव भी दिया। सही मायने में उन जैसा राजनीतिक विश्लेषक विरले ही होते हैं। बीते बरस अगस्त क्रांति दिवस 9 अगस्त के अवसर पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित समारोह में मेरी उनसे आखिरी भेंट थी जब वह लोकनायक जय प्रकाश अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र  के आजादी के भूले बिसरे नायकों की याद में किये कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे। उस दौरान मेरे व्याख्यान के बाद उन्होंने मेरी काफी प्रशंसा की थी। वह क्षण आज भी बार-बार स्मृति पटल पर तैर जाता है, उसे भूल ही नहीं पा रहा कि आज वह हमारे बीच नहीं हैं। अब तो उनकी स्मृति ही शेष है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं पर्यावरणविद हैं।