कर्नाटक में चुनावी यात्राओं का दौर शुरू

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक

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हालांकि दक्षिण के इस राज्य में विधानसभा चुनाव चुनाव अभी लगभग तीन महीने दूर हैं लेकिन राज्य में चुनावी माहौल अभी से बन गया है। चूँकि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद आचार सहिंता लागू हो जायेगी और तत्काल प्रभाव से कई तरह की पाबंदियां लग जाएँगी इसलिए राज्य के तीन बड़े दलों-  बीजेपी, कांग्रेस और जनता दल (एस) के नेता घोषणा से पूर्व ही मतदाताओं तक पंहुच जाना चाहते है।

वास्तव राज्य में चुनावी आगाज़ पिछले साल नवम्बर में ही हो गया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगलुरु हवाई अड्डे के दूसरे और नए भाग का उद्घाटन किया था। इसी दिन उन्होंने हवाई अड्डे के सामने 400 साल पुराने शहर बंगलुरु की स्थापना करने वाले केम्पेगौडा की 110 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया था। उसी दिन उन्होंने एक बड़ी सभा को भी संबोधित किया था।

पिछले विधान सभा चुनावों में 224 सदस्य वाली विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं ला था लेकिन 103 सीटें जीत कर बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई थी। कांग्रेस को कुल 89 सीटें मिली थीं। जनता दल (एस) 26 सीटों के साथ तीसरा बड़ा दल था। सबसे बड़े दल के रूप में राज्यपाल   ने   बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। पार्टी के नेता येद्दियुरप्पा ने सत्ता की कमान संभाली। लेकिन यह सरकार केवल ढाई दिन ही चली क्योंकि येद्दिउरप्पा सदन में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए। इसके बाद कांग्रेस और जनता दल (एस) के मिली जुली सरकार बनी। हालाँकि जनता दल(एस) के पास कम सदस्य थे फिर भी कांग्रेस पार्टी जनता दल(एस) के नेता एच डी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री का पद देने के लिए मान गयी। आपसी मतभेदों के चलते यह साझा सरकार एक साल से अधिक नहीं चल पाई। इन दोनों दलों के लगभग डेढ़ दर्जन विधायकों ने पाला बदला और बीजेपी के साथ हो गए। फिर येद्दियुरप्पा नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी। बीजेपी ने दो साल बाद नेतृत्व में बदलाव कर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाने के फैसला किया।

पहले बात शरू करते है बीजेपी की। केंद्रीय सहित पार्टी के सभी बड़े नेताओं को पूरा भरोसा है कि राज्य में उनकी सरकार के काम-काज के चलते उसका फिर सत्ता में आना लगभग निश्चित है। इन नेताओं ने अपनी योजना के अनुसार कार्य करते हुए राज्य भर में अलग-अलग स्थानों से विजय संकल्प यात्राएं  आरंभ करने फैसला किया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जेपी नड्डा ने पहली ऐसी यात्रा को खुद झंडी दिखाई तथा एक बड़ी सभा को संबोंधित किया। चुनावों की  अधिसूचना जारी होने से पूर्व पार्टी सारे राज्य में यात्राओं का दौर पूरा कर लेना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना ध्यान इस राज्य में लगाये हुए है। वे   इसी महीने दो बार आ चुके है तथा उनका एक बार फिर आने के कार्यक्रम है।

उधर कांग्रेस नेताओं का आंकलन है कि राज्य में बीजेपी सरकार विरोधी माहौल के चलते सत्ता में बदलाव होना लभभग तय सा ही है। राज्य एक बड़े और प्रमुख राजनीतिक होने के नाते केवल कांग्रेस पार्टी ही राज्य में फिर सत्ता में आने की स्थिति में है। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड्गे भी  कर्नाटक से आते है। राहुल गाँधी की भारत छोड़ो यात्रा राज्य में लगभग 20 दिन रही थी। इस प्रकार कांग्रेस बीजेपी को बड़ी चुनौती दे रही है। राज्य पार्टी के अध्यक्ष डी के शिवकुमार एक प्रभावी नेता है।  राज्य में पिछली कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री सिद्धारामिया भी एक लोकप्रिय नेता है। पार्टी ने मकर संक्राति के बाद राज्य में प्रजाध्वनि के नाम से राज्य की यात्रा करने निर्णय किया। शुरू में यह कहा गया कि पार्टी के ये तीनों बड़े नेता संयुक्त रूप से यात्रा करेंगे। लेकिन मतभेदों के चलते यह नहीं हो सका। डी. के शिवकुमार और सिद्धारामिया दोनों ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार है। इसलिए दोनों ने अलग-अलग होकर यात्रायें करने का निर्णय किया। उधर खडगे अभी राज्य की राजनीति में सीधे तौर पर नहीं आ रहे है लेकिन यह किसी से छिपा नहीं की वे भी मुख्यमंत्री पद के  दावेदार है।

जनता दल (स) के नेता कुमारस्वामी ने भी पंचरतन के नाम से राज्य के यात्रा आरंभ कर दी है। उनको लगता है भले ही उनकी पार्टी तीसरे नंबर की हो लेकिन  पिछले चुनाव की भांति इन चुनावों में वह बड़ी भूमिका निभाएगी। इस पार्टी के नेताओं का अनुमान है कि इस बार भी किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा और पार्टी किंगमेकर की भूमिका में उभरेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)