लेखक : लोकपाल सेठी
लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
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तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, जिन्हें आम तौर पर के.सी.आर. के नाम से संबोधित किया जाता है, पिछले साल के मध्य से राष्ट्रीय राजनीति में पैर ज़माने की कोशिश कर रहे हैं। कभी उनकी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति बीजेपी नीत राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन का हिस्सा थी। लेकिन 1914 में प्रदेश में सत्ता में आने के कुछ समय बाद ही वे इससे अलग हो गए। दूसरी बार सत्ता में आने के बाद उनको लगा कि अब समय आ गया है कि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में भी भूमिका निभानी चाहिए। पिछले साल के मध्य से गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस दलों को एक साथ लाकर एक तीसरा विकल्प बनाने का कोशिश कर रहे थे। लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। कोई भी क्षेत्रीय दल उनके नेतृत्व को स्वीकार करने के तैयार नहीं था। केवल पूर्व प्रधानमंत्री तथा जनता दल (स) के सुप्रीमो एचडी देवेगौडा ने उनका साथ देने की सहमती जताई।
कुछ माह पूर्व उन्होंने देवेगौडा से मिलने के बाद उन्होंने सबसे पहला काम अपने क्षेत्रीय दल तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम भारत राष्ट्र समिति करने का निर्णय ताकि कम से कम यह राष्ट्रीय पार्टी लेगे। जब पार्टी का नाम बदलने की तैयारियां चल रही थी तो और पार्टी का सम्मेलन हुआ तो उसमें कर्नाटक पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, जो देवेगौडा के पुत्र हैं, अपनी पार्टी के कई विधायकों के साथ उसे शामिल हुए। उससे से संकेतमिला कि कम से कम एक पार्टी तो उनके साथ आने के तैयार है।
इस साल देश में नौ विधानसभायों के चुनाव होने वाले है। इसमें तेलगाना भी शामिल है जहाँ इस साल के अंत में चुनाव होने वाले है। लेकिन इससे पहले फ़रवरी मार्च में तेलंगाना से लगते कर्नाटक में विधानसभ चुनाव होने है। इस राज्य में वर्तमान में बीजेपी की सरकार है। दूसरा बड़ा राजनीतिक दल कांग्रेस है जो फिर सत्ता में आने की कोशिश कर रहा है। जनता दल (स) तीसरा बड़ा है। 2018 में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। बड़ा दल होने के कारण बीजेपी ने सरकार बनाई जो ढाई दिन चली. फिर कांग्रेस और जनता दल (स) के गठबंधन की सरकार बनी और मुख्यमंत्री का पद कुमार स्वामी को मिला। लेकिन यह सरकार लगभग एक साल चली और बीजेपी दल बदल करवा कर फिर सत्ता में आ गई।
अब जो संकेत मिल रहे है उसके अनुसारकर्नाटक में विधान सभा चुनावों में भारत राष्ट्र समिति खुद तो चुनाव नहीं लड़ेगी लेकिन कर्नाटक में उनके समर्थक जनता दल (स) को जितवाने के लिए काम करेंगे। दोनों राज्यों की सीमा लम्बी है. तेलंगाना से सटते कर्नाटक के इलाकों को कल्याण कर्नाटक कहा जाता है। यहाँ तेलगु भाषी लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। कर्नाटक विधानसभा की कुल 225 सीटों में से 41 सीटें ऐसी हैजहाँ उम्मीदवारों के भाग्य का निर्णय तेलगु भाषी मतदाता करते है।
पिछले दिनों में भारत राष्ट्र समिति और जनता दल (स) के नेताओं के बीच वार्ता के कई दौर चले है जिसमें ऐसी रणनीति बनाया गई जिससे तेलगु भाषी मतदाता जनता दल (स) की उम्मीदवारों को मत दे। केसीआर ने अपने दो नज़दीकी नेताओं को समन्वय के लिए नियुक्त किया है। इनमें से से एक जहिराबाद से उनकी पार्टी के सांसद बी बी पाटिल है और दूसरे नारायणखेड से पार्टी विधायक राजेन्द्र रेड्डी हैं। पाटिल लिंगायत समुदाय से आते है। यह समुदाय कर्नाटक में सबसे प्रभावी जातीय समुदाय है। यह समुदाय है तो 16 प्रतिशत लेकिन इसका प्रभाव संख्या बल से कहीं अधिक है।
वर्तमान में यह समुदाय खुले तौर पर बीजेपी के साथ है। बीजेपी के बड़े नेता तथा राज्य के चार बार मुख्यमंत्री रहे येद्दियुरप्पा इसी समुदाय से आते है। राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री बोम्मई भी इसी समुदाय से है। जनता दल (स) को लगता है कि पाटिल का साथ मिलने से उनकी पार्टी को तेलगु भाषी इलाकों में भारी लाभ मिल सकता है। राजेन्द्र रेड्डी हैं तो तेलगु भाषी और तेलंगाना के है। लेकिन एक बड़े व्यवसायी के रूप में कर्नाटक में उनका बड़ा व्यापार है। वे कर्नाटक में कई मेडिकल कॉलेज भी चलाते है। कर्नाटक के तेलगु भाषी लोंगो में उनकी पैठ बताई जाती है। इन सबके चलते जनता दल (स) को चुनावों में बड़ा लाभ मिल सकता।
अगर वास्तव में जनता दल (स) विधान सभा चुनावों में केसीआर के दल की वज़ह से कुछ अधिक सीटें पाने में सफल हो जाता है तो अगले साल में होने वाले लोकसभा चुनावों में कर्नाटक की सीटों के बीच दोनों दलों में कोई समझौता हो सकता है। ऐसी स्थिति में अगर भारत राष्ट्र समिति तेलंगाना से बाहर लोकसभा की एकाध सीट जीतने में सफल होती है तो इसका विस्तार की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)