किसान हितकारी हो भूमि अधिग्रहण कानून

23 दिसम्बर किसान दिवस पर विशेष 

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं

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शहरीकरण और श्रमबल प्रावधानों में परिवर्तन पहले की अपेक्षा अधिक तेजी से हो रहे है। हमारे देश की जनसंख्या सन् 2016-17 में 1 अरब 28 करोड़ से अधिक होने का अनुमान है। कृषि का तेजी से विकास अभी भी गरीबी उन्मूलन और आर्थिक प्रगति की कुंजी है। भारत में शहरीकरण की प्रक्रिया में छोटे कस्बों की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सन् 2020 तक ग्रामीण जनसंख्या का अंश 68 प्रतिशत और सन् 2025 तक 64 प्रतिशत तक रहेगा। इस प्रकार सन् 2020 तक 1 अरब 27 करोड़ 30 लाख की कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या 73 करोड़ 80 लाख रहेगी। इसमें ग्रामीण श्रमिकों का प्रतिशत 45.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। दूसरी ओर कृषि योग्य जमीन कम होती जा रही है। भूमि सुधार कानून अब भी प्रासंगिक है क्योंकि आगे आने वाले दशकों में अनाज की मांग 13 प्रतिशत अधिक होगी।

कृषि जोतों की संख्या बढ़ रही है। देशभर में छोटे किसानों का प्रतिशत लगभग 83.5 है। अधिकांश छोटे किसान गरीबी रेखा से नीचे आते है और सामाजिक रूप से वंचित समूहों में है। 70.5 प्रतिशत लघु जोतों पर अनाज की खेती होती है। सिंचित खेती कम है। गैर कृषि क्षेत्र में छोटी जोतों के लिए विकल्प की आवश्यकता है। छोटे किसानों की उपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में असंतोष बढ़ सकता है। इसलिए छोटे किसानों की जमीन की जोत बढ़ाई जाना आवश्यक है। देश के व्यापक हित में खेती की पैदावार बढ़ाने में निजी निवेश द्वारा महत्वपूर्ण योगदान आवश्यक है क्योंकि 65 करोड़ आबादी के देश की अर्थ व्यवस्था में कृषि का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। रोजी रोटी मिलने के अलावा अनेक उद्योगों को कच्चा माल मिलता है। भारतीय अर्थ व्यवस्था का सतत आधार में विकास की गति बनाये रखने के लिए कृषि क्षेत्र द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जरूरी है। 

पंड़ित जवाहर लाल नेहरू ने कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता एवं उपादेयता प्रदान करते हुए कहा था कि ‘‘दूसरी हर चीज इंतजार कर सकती है परन्तु इस देश में कृषि नहीं।’’ औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, सड़क निर्माण से तालाब आदि जलस्रोतों को मिटा दिये जाने के कारण अथवा भूजल का अत्यधिक दोहन किये जाने के कारण जलस्तर काफी नीचे चला गया है। असिंचित भूमि बढ़ती जा रही है। देश में 19.6 प्रतिशत शुष्क क्षेत्र, 37 प्रतिशत अर्द्ध शुष्क क्षेत्र है। भूमिहीन तथा सीमांत लघु किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। ग्रामों में अनाज की कमी व गरीबी के कारण देश में लगभग 47 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार है। काश्तकारी कानून के तहत किसानों को टेनेंट कहा गया है मालिक राज्य सरकार है। ब्रिटिश शासनकाल अथवा राजाओं के शासनकाल से ‘‘पब्लिक परपज’’ के नाम पर सिंचित एवं उपजाऊ कृषि भूमि अवाप्त होती रही। उद्योगों व निजी कंपनियों के लिए भूमि अवाप्ति भी ‘‘पब्लिक परपज’’ मानी जाती रही है। 

कृषि भूमि अधिग्रहण 1894 जो किसानों के हितों के विरूद्ध था, उसके विरूद्ध आवाजें उठती रही है। सन् 2013 में केन्द्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना के लिए उचित मुआवजे द्वारा पारदर्शिता और अधिकारिता अधिनियम संसद में पास कराया उसमें पुनर्वास व पुनर्स्थापना अनिवार्य रखा गया, विस्थापित परिवारों के लिए आधारभूत सुविधाएं सड़क, विकास योजनाएं, पेयजल, चरागाह व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करना आवश्यक रखा गया। निजी व सार्वजनिक भागीदारी की योजनाओं के लिए 70 प्रतिशत परिवारों की पूर्ण सहमती व ग्राम सभा व पंचायत की अनुमति आवश्यक मानी गयी। केवल राष्ट्रीय सुरक्षा व प्राकृतिक हादसे के तहत बगैर सहमति व अनुमति अवाप्ति हो सकती है। 

मुआवजा ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का 4 गुणा रखा गया। इस प्रकार सन् 2013 में स्वीकृत बिल में 80 प्रतिशत निजी प्रोजेक्ट, पीपीपी के लिए 70 प्रतिशत लोगों की सहमती जरूरी हुई। प्रोजेक्ट का सोसियल इम्पेक्ट देखना भी आवश्यक समझा गया। खेतिहर जमीनें लेने पर रोक रखी गई। अधिग्रहण के खिलाफ कोर्ट जाने का हक रखा गया और जमीन यदि 5 साल तक इस्तेमाल नहीं हो तो उसे वापस करने के प्रावधान रखे गये। स्पष्टतया यह स्वीकार किया गया कि शहरीकरण और औद्योगिकीकरण आवश्यक है परन्तु कृषि को प्रभावित कर किसानों के विनाश के आधार पर नहीं।

इस देश के लिए किसान का हित और विकास अत्यन्त आवश्यक है परन्तु विकास दर में वृद्धि के नाम पर जो नया भूमि अधिग्रहण कानून 2014 बना उसमें सहभागिता, पुनर्वास व पुनर्स्थापना के प्रावधानों को हटा दिया, केवल मुआवजा देने का विकल्प मान लिया। इस कानून का किसान नेता, संवैधानिक विशेषज्ञ एवं न्यायिक विशेषज्ञों ने किसानों के लिए अन्यायपूर्ण बताया और 1894 के कानून की तरह मानवाधिकारों के विरूद्ध बताया। हितकारी व्यक्ति कौन है जिसकेे लिए अवाप्ति की जा रही, उसकी परिभाषा अत्यन्त सीमित रख गई।

केन्द्र सरकार अध्यादेश 2014 लेकर आई और 2013 के कानून में संशोधन किया जिसमें रक्षा उत्पादन, ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर, ओद्योगिक कोरिडोर के लिए सहमती जरूरी नहीं रखी गई। सोसियल इम्पेक्ट का प्रावधान खत्म कर दिया गया। सरकार अब खेतिहर जमीन भी ले सकेगी। किसानों के कोर्ट जाने के अधिकार छीन लिये गये और प्रोजेक्ट अवधि यदि लंबी हो और जमीन इस्तेमाल नहीं हुई हो तो उसे वापस नहीं लिया जा सकेगा। 

महात्मा गांधी के शब्दों में ‘‘भारत के ग्रामों में देश की आत्मा बसती है।’’ विकास दर भी आवश्यक परन्तु साथ ही आवश्यकता है कृषि विकास को प्राथमिकता देने की। किसान हितकारी और विकास के समन्वय के अधिग्रहण ही इस देश के हित में होगा अन्यथा किसानों की उपजाऊ जमीन चली जायेगी और उनके बच्चे मजदूरी के लिए शहरों में घूमते रहेंगे। कृषि का विकास भी रूक जायेगा जो देश के हित में नहीं होगा। हमें कृषि के पतन पर मूक दर्शक नहीं बने रहना। समग्र आर्थिक विकास का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक हम अपनी जनसंख्या के 60 प्रतिशत लोगों के आर्थिक स्वास्थ्य और उततरजीविता पर ध्यान नहीं देते। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)