बढ़ते प्रदूषण को रोकना हम सबका उत्तरदायित्व

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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विश्व में सर्वत्र यह चर्चा हो रही हैं कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, समाजसेवी और राजनेता सभी लोग चिन्तित है। प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि जीवन रक्षक छतरी ओजोन में भी छिद्र हो गया है। ओजोन छतरी सूर्य की पराबैगनी किरणों को अवशोषत कर नीचे भेजती है। जब ओजो छतरी ही टूट जायेगी और सूर्य की किरणे पृथ्वी पर पड़ेगी तो पृथ्वी का तापमान बढ़ जायेगा, जिससे जीव-जन्तु नष्ट हो जायेंगे। ग्लेसियर पीघलने के कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ जायेगा और पूरी सृष्टि ही जलाप्लावित हो सकती है। अनेक प्रकार की बीमारियां फैलने का संकट रहेगा। लूले, लंगड़े, अपाहिज बच्चे जन्म ले सकते है। इसलिए प्रदूषण को रोकना सबका उत्तरदायित्व है। 

बड़े-बड़े शहरों में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक हो गया है कि जीवन दूभर हो गया है। औद्योगिक चिमनियों से निकलता हुआ धुआं वायु और आकाश मंडल को प्रदूषित कर रहा है। प्रदूषण के कारण पंचतत्व प्रदूषित हो रहे है। जब मूलतत्व ही प्रदूषित हो जायेगा तो उन तत्वों से बने हुए सभी पदार्थ ही प्रदूषित हो जायेंगे। प्रदूषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े सम्मेलन होते है। प्रदूषण को रोकने के लिए जो कार्य योजना बनाई जाती हैं उस पर सदस्य देश अमल नहीं करते। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि विकसित और विकासशील देशों में प्रदूषण में महान् अन्तर दिखाई दे रहा है। पर्यावरण के निर्माण में पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश वनस्पति, मानव तथा मानवेतर सभी प्राणियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिये केवल इतना समझना आवश्यक नहीं है कि प्रकृति हमारे लिये उपयोगी है। 

समझना यह है कि हम प्रकृति के एक अवयव हैं। जिस प्रकार हममें जीवन है उसी प्रकार प्रकृति के प्रत्येक कण-कण में जीवन है। मानव प्रकृति की उपेक्षा करके अपने अस्तित्त्व को नहीं बचा सकता। यदि उसे अपने अस्तित्त्व की रक्षा करना है तो जीवन के हर रूप को पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तक को सुरक्षित रखना होगा। इन पांचों तत्त्वों की सुरक्षा और संरक्षा मनुष्य पर निर्भर है। प्रकृति ने मानव को उपभोग के लिये एक अक्षय खजाना दिया है। यदि इसका सदुपयोग किया जाय तो यह समाप्त होने वाला नहीं है, किन्तु यदि इन तत्त्वों का दुरुपयोग किया जाएगा तो समाप्त भी हो जायेगा और मानव के अस्तित्त्व के लिये संकट भी उपस्थित हो जायेगा। इसलिये सुरक्षित पर्यावरण मानव के अस्तित्त्व के लिये आवश्यक है। 

मनुष्य प्रकृति से जितना ग्रहण करता है यदि उतना प्रकृति को दे तो मानव और प्रकृति के बीच में संतुलन बना रहेगा और प्रकृति भी हरी-भरी रहेगी और प्रकृति और मानव के बीच संतुलन बना रहेगा। पर्यावरण संरक्षण एक समसामयिक विषय है। पर्यावरण का संबंध सृष्टि से है। सृष्टि की परम्परा बहुत ही जटिल है। सृष्टि में जड़ और चेतन दो तत्व है। जड़ और चेतन में जब मानव के द्वारा विकृति उत्पन्न की जाती है तो वे तत्व अपने स्वाभाविक रूप से परिवर्तित हो जाते हैं। विकृत होने के बाद उनका स्वाभाविक स्वरूप बदल जाता है। पर्यावरण संरक्षण के लिये मानव को अपने विचारों में परिवर्तन लाना आवश्यक है। 

उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण मनुष्य अपने पुराने आदर्शों और परम्पराओं को भूलकर प्राकृतिक तत्त्वों का अन्धाधुन्ध दोहन कर रहा है। आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का उपयोग मानव के अनैतिक आचरण का परिणाम है। हम किसी भी तरह से पर्यावरण के घटकों के पदार्थों से छेड़खानी करते हैं तो उसके दुष्परिणाम भुगतने को तैयार रहना पड़ेगा। चाहे एक इन्द्रिय जीव हो या द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय जीव हो, यदि इनमें से किसी एक का भी विनाश होता है तो हमारी खाद्य शृंखला विघटित हो जायेगी, जिससे हमारा इकोसिस्टम बिगड़ जायेगा। एक उदाहरण से समझते हैं, जैसे मृत पशुओं को गिद्ध, चील आदि खाते हैं, जिससे हमारा पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता, लेकिन वर्तमान समय में देखते हैं कि गिद्ध, चील आदि नहीं दिखाई देते तब मृत पशुओं का क्या किया जाये? और इन मृत पशुओं से विभिन्न प्रकार के रोगादि फैल रहे हैं, वातावरण प्रदूषित हो रहा है। इसीलिए वातावरण को स्वच्छ रखना है तो हमें प्रत्येक प्रकार के जीवों की रक्षा करनी होगी। 

आज वर्तमान समय में मनुष्य समस्यों से सरावोर है। जब किसी वस्तु को आवश्यकता से अधिक, अथवा बेवजह दोहन किया जाता है तब समस्या होती है और प्रत्येक समस्या को उत्पन्न किसी और ने नहीं स्वयं मनुष्य ने की है। गांव से लेकर महानगारों में जल, पानी की विकट समस्या, बिजली, प्रकाश की समस्या, रसोई गैस की समस्या, साग-सब्जी, वनस्पति की समस्या, बाढ़ की समस्या, भूकम्प, सुनामी की समस्या इत्यादि-ये सभी समस्याएं मनुष्य द्वारा ही सृजित है और इनका समाधान भी मनुष्य कर सकता है। 

उदाहरण से स्पष्ट करना चाहता हूं, जैसे मनुष्य को आवश्यक है-नहाना, कपड़े धोना आदि मनुष्य को नहाने के लिए पानी चाहिए मान लो दो बाल्टी परन्तु यदि दो बाल्टी की जगह तीन, चार बाल्टी पानी गिराये तो इससे क्या होगा? पानी की कमी आयेगी। आज पर्यावरण असन्तुलित हो रहा है। इसके अनेक कारण है। नाभिकीय विस्फोट भी उन्हीं कारणों में से है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि नाभिकीय युद्ध हुआ तो विश्वस्थिति में भारी परिवर्तन आयेगा। सम्पूर्ण विश्व का परिदृश्य ही बदल जाएगा। पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ा और संसार के लिये मौत का निमन्त्रण आ गया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)