लेखिका : रश्मि चौधरी
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किंतु वासना और क्रोध के समय अपने ऊपर से हमारा नियंत्रण हट जाता है अर्थात उस समय हमारे मन और चेतना पर एक आवरण सा पड़ जाता है और उस समय हम अंतर्निहित अच्छी भावनाओ को समंझ और देख ही नहीं पाते है।
वस्तुतः यही क्रोध वासना लिप्सा लोभ इत्यादि ही वो भावनाएं है जो हमे दुसरो के प्रति ईर्ष्या द्वेष इत्यादि से भर देती है और फिर शुरू होता है दूसरों से तुलना करना दुसरो को जज़ करना और नतीजा ...कुढ़न डिप्रेशन एकाकीपन और रोगों को न्योता। ऐसी स्थिति में हमारी चेतना भी लुप्तप्राय सी हो जाती है और यही सब जाग्रति की राह में अवरोध बनता है।
यदि हम कभी दूसरों के प्रति कुछ बुरा करना तो दूर बल्कि अगर कुछ बुरा सोचे भी और हमे लगे कि कोई हमे अंदर से रोक रहा है... कि नही नही..... ये गलत है तो हमें समझना चाहिए कि हम जागृति की ओर बढ़ रहे है। (लेखिएक अक अपना अध्ययन एवं के निजी विचार हैं)