जयललिता की मृत्यु पर उठा फिर विवाद

लेखक : लोकपाल सेठी

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)

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लगभग 6 साल पहले जब तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और तब सत्तारूढ़ दल अन्नाद्रमुक की सुप्रीमो जयललिता की लम्बी बीमारी के बाद एक निजी  अस्पताल में मृत्यु  हो गई थी तो यह आरोप लगाया गया था कि उनका ठीक से उपचार नहीं हुआ। विशेषज्ञ डॉक्टरों की उनके उपचार में सलाह को अनदेखा किया गया जिसके चलते बीच उपचार में उनकी मृत्यु हो गई। 

जयललिता के अस्पताल में भर्ती होने के कारण उनकी अनुपस्थिति पार्टी के एक अन्य बड़े नेता ओ पनीरसेल्वम को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था। उस समय पार्टी में जयललिता के बाद सबसे कद्दावर नेता शशिकला थी। वे जयललिता के सबसे करीब मानी जाती थी तब यह  मान लिया गया था की वे जयललिता की राजनीतिक उत्तराधिकारी है। उनके बाद वे ही राज्य की मुख्यमंत्री होगी तथा उन्ही की तरह पार्टी की महासचिव होगी, जो पार्टी का सर्वोच्च पद है। 

उस समय जयललिता की बीमारी को गोपनीय रखा गया था तथा उनका ईलाज कर रहे डॉक्टरों के अलावा केवल कुछ गिने चुने नेता ही उनसे मिल सकते थे। इनमें से एक पनीरसेल्वम भी थे। शशिकला अस्पताल में जयललिता से कमरे के अगले कमरे में स्थाई रूप से रह रही थी। पर वह अपना अधिक समय जयललिता की देखभाल में ही लगाती थी। जयललिता को सितम्बर 2016 के आखरी हफ्ते में इस निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया गया था। उनका इलाज चार महीने तक चला। लेकिन वे स्वस्थ नहीं हो सकी तथा दिसम्बर में उनका अस्पताल में देहावसान हो गया। उनकी मृत्यु के बाद अगले मुख्यमंत्री का विवाद दो महीने चलता रहा। सब कोशिशों के बाद भी शशिकला मुख्यमंत्री नहीं बन पाई। पार्टी दो गुटों में बाँट गई थी। अभी पार्टी में झगडे चल ही रहे थे आय से अधिक सम्पति के मामले सर्वोच्च न्यायालय ने शशिकला की तीन साल के सजा बरकरार रखी। साथ यह भी कहा कि वे अगले तीन साल तक कोई चुनाव लड़ सकेंगी और न ही किसी सरकारी पद पर रह सकेंगी। 

इसके चलते गुटों में हुए समझौते के अनुसार पलानिस्वामी राज्य के अगले मुख्यमंत्री बने और पनीरसेल्वम उप मुख्यमंत्री के साथ पार्टी के महासचिव बना दिए गए। चूकि समय तक यह माँग जोर पकड़ चुकी थी कि जयललिता के ईलाज में हुई कथित अनदेखी, जिनके चलते उनके मृत्यु हो गई थी, की उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए। इसलिए सरकार ने बिना किसी विलम्ब के जाँच आयोग गठित कर दिया। इसके मुखिया अर्घमुरगमस्वामी  थे। इसआयोग ने 6 साल की लम्बी जाँच के बाद अक्टूबर के मध्य में अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी। 

इस रिपोर्ट का कुल मिलकर यह निष्कर्ष यह है कि जयललिता का ईलाज सही ढंग से  नहीं हो पाया। उनकी मेडिकल रिपोर्ट और सरकार के दस्तावेजों  में यह बात सामने आई कि जब कुछ विदेशी डॉक्टरों से सलाह ली गई थी तो उन्होंने उनके दिल का एक छोटा सा ऑपरेशन करने के सलाह दी गई थी   लेकिन निजी अस्पताल, जहाँ वे भर्ती थीं, के डॉक्टरों ने इस सलाह को अनदेखा करते हुए अपने ही तरीके से ईलाज जारी रखा जो अधिक प्रभावी नहीं हो पाया। इसी के चलते जयललिता के मृत्यु हो गई। रिपोर्ट में कहा गया है अगर इस सलाह को माना गया होता तो  वे शायद बच सकती थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि इस बारे में निर्णय लेने का अधिकार कुछ डॉक्टरों और सरकार के मुख्य सचिव सहित कुछ अन्य अधिकारियों तक ही सीमित था इसलिए इस बारे में उनकी भूमिका की संदेह के घेरे में आती है। परोक्ष रूप से शशिकला को भी इसमें जिम्मेदार ठहराया गया है क्योंकि सभी निर्णय उनकी सहमति के बाद ही लिए जाते थे। इस समय राज्य में द्रमुक की सरकार है। सरकार की ओर से कहा गया है कि रिपोर्ट का अध्यन करने के बाद ही आगे की कारवाही के बारे में निर्णय किया जायेंगा। 

अन्ना द्रमुक इस समय दोगुटों में बंटी हुई है। एक गुट के नेता पनीरसेल्वम है तथा दूसरे के पलानिस्वामी। दोनों गुट पार्टी पर अपने वर्चस्व स्थापित करने की लडाई में लगे है। चूँकि जब जयललिता का निधन हुआ उस समय पनीरसेल्वम राज्य के मुख्यमंत्री थे तथा जयललिता के ईलाज के लिए वे सीधे तौर पर जिम्मेदार थे इसलिए दूसरे गुट के नेता यह आरोप लगाये  रहे है कि जयललिता के मौत के लिए वे ही जिम्मेदार है। इसे गुटों के लडाई के चलते  पलानिस्वामी गुट के नेताओं के हाथ यह रिपोर्ट एक नया हथियार आ गया है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)