शक्ति और साहस की प्रतीक श्रीमती इंदिरा गांधी : डॉ. सत्यनारायण सिंह

19 नवम्बर जन्मतिथि पर

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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श्रीमती इंदिरा गांधी विश्व की उंगलियों पर गिनी जाने वाली महामानवीयों में से है। उनकी वैचारिक निष्ठा, कार्य पद्धति तथा उद्देश्य प्राप्ति की अद्वितीय असाधारण बुद्धि, वर्तमान परिधि से बाहर भविष्य में भी प्रज्वलित होती रहेगी। यह सत्य है कि इन्दिरा जी अपने महान पिता की छत्रछाया में पली व बड़ी हुई परन्तु वे अपनी निर्मल कार्यक्षमता, अटूट आस्था और प्राणवान लगन, कठोर परिश्रम के कारण ही राजनीतिज्ञ व सफल प्रशासक कहलाने में समर्थ हुई। उनका व्यक्तित्व विविधता में एकता को प्रतिपादित करने वाली भारतीय संस्कृति के अनुरूप है। 

इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में देश ने पाकिस्तान को युद्ध में न सिर्फ धूल चटाई बल्कि उसके एक हिस्से का, बांगलादेश के नाम से दुनिया के नक्शे पर, एक नया राष्ट्र निर्माण किया। निर्णायक स्तर पर मजबूत व दृढ़ निश्चयी नेतृत्व के लिए देशवासी इंन्दिरा जी को याद करते है। विश्व की महान नेता श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था ‘‘प्रगति, विकास, सफलता कोई दैवी या ईश्वरीय वरदान नहीं है जो सहज ही मिल जाती है, इसके लिए कठोर परिश्रम, पुरूषार्थ, अटूट विश्वास, धैर्य, साहस व निर्भिकता की आवश्यकता होती है।’’ 

श्रीमती इन्दिरा गांधी के कार्य करने की रीति नीति ऐसी थी जिसने गरीबों, शोषितों, पीड़ितों को, राहत, सन्तोष व प्रेरणा दी तथा उन्हें गरीबी के चंगुल से निकालकर स्वतंत्रता, लोकतंत्र व परिवर्तन का एहसास कराये। उन्होंने पाकिस्तान को सबक सिखाकर बंगला देश का निर्माण ही नहीं कराया, अलगाववाद के विरूद्ध भी कठोर कदम उठाये व नौकरशाहों व अन्य जिम्मेदार पदों पर आसीन लोगों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया। उनके विरोधियों ने कहा था कि इन्दिरा देश को तानाशाही की ओर धकेल रही है। आपातकाल के पश्चात् लोगों को यकीन नहीं था कि अब आम चुनाव दोबारा हो सकेंगे, परन्तु लोकतंत्र में आस्था व विश्वास रखकर उन्होंने शीघ्र ही आपातकाल हटाकर बगैर किसी विरोधी जनान्दोलन स्वयं चुनाव करायें और हारने के तुरंत पश्चात प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया। जनता पार्टी नेताओं ने उन्हें गिरफ्तार कराकर जेल भेजा। उन्होंने जेल के सीमेंट के कठोर चबूतरे पर आराम से रात व्यतीत की।

इन्दिरा गांधी ने भारतीय जनमानस को ’’दूरदृष्टि, कठोर परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति और कठोर अनुशासन के सूत्र प्रदान किये।’’ इन्दिरा गांधी ने आर्थिक नीतियों को सबल बनाया। देश में हरित क्र्रान्ति उनके शासन में हुई, अणु शक्ति का विकास हुआ, राजाओं की प्रिवीपर्स व विशेष सुविधायें समाप्त की, बैंकों व बीमा कम्पनियों व व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण हुआ था। बीस सूत्री कार्यक्रम के द्वारा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। दैनिक हिन्दुतान के सम्पादकीय के अनुसार ‘‘महात्मा गांधी ने भारत की एक प्रतिमा संसार के मंच पर प्रतिष्ठित की, लाल बहादुर ने राजनीतिक प्रतिमा स्थापित की, इन्दिरा जी ने सशक्त एवं समर्थ भारत की प्रतिमा स्थापित की। शक्ति और साहस इन्दिरा गांधी की विशेषता थी।’’

अलगाववाद को सख्ती से कुचल देने वाली इस महिला को, विश्व सख्सियतों की परिवर्तन योजनाओं के अनुसार, विरोधी दलों के संयुक्त प्रयास से, 1977 में पराजीत होना पडा व हटना पड़ा। परन्तु कुछ ही दिनों में संघर्षो की अनुभवी इन्दिरा गांधी ने चुनौती स्वीकार की व संघर्ष प्रारम्भ कर दिया। उन्हें विश्वास था कि देश की जनता उन्हें वेहद प्यार करती है, विश्वास करती है। जनता को चिर प्रतीक्षित आर्थिक एवं सामाजिक सुधारों की आवश्यकता थी अतः जनता ने दुनिया के इतिहास में प्रथम बार कुछ ही वर्षो में उन्हें भारी बहुमत से सत्तासीन कर दिया।

1966 में मास्को यात्रा के समय उन्होंने कहा था ‘‘आर्थिक स्वतंत्रता के बगैर राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है। गरीब व सम्पन्न देशों के बीच खाई बढ़ती जा रही है।’’ वे अफसरशाही, जातिवाद, सांप्रदायिकता के विरूद्ध थी और स्पष्ट कहा था कि ‘‘अफसरशाही मनोवृति विकास में रूकावट पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। जातिवाद का समाज में ही नहीं सरकार में भी बोलबाला है जिसे मिटाना आवश्यक है। धर्म निरपेक्ष शब्द में यह अभिप्रेत नहीं है कि हम धर्म विरोधी है। इसका अर्थ है शासन की दृष्टि में देश के सभी धर्मो के प्रति समान आदर है। प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी धर्म का क्यों न हो, समानाधिकार प्राप्त हो। स्वयं सरकार का कोई धर्म नहीं है।’’

इन्दिरा गांधी ने एक साक्षात्कार में कहा था ‘‘मैं अपने जीवन में खतरों से खेलती आई हूं, मुझे नश्वर शरीर की तनिक भी परवाह नहीं, मैं बिस्तर पर घुट-घुटकर प्राण नहीं त्यागना चाहती, मैं देश की आन-बान और शान के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर देना पसन्द करूंगी।’’ लोग उन्हें ‘‘लौह महिला’’, निर्णय लेने में साहसी व अनुशासन की पाबन्द कहते थे। स्वर्गीया अमृता प्रीतम ने कहा था ‘‘उनके लिए कभी भी मैं का प्रश्न नहीं था वरन मेरे लोगों का प्रश्न था।’’ उनके शब्द हमेशा याद आते है ‘‘चिंता मत करों केवल अपना कर्तव्य करों। आन्तरिक जाग्रति और दीप्ति का ऐसा मिलन जो इन्दिरा जी में देखा गया बहुत कम दिखाई देता है।’’ इन्दिरा गांधी ने सत्ता में रहते हुए अथवा सत्ता से वंचित हो जाने पर भी सदैव अपनी आत्मा की पुकार को सुना एवं ऐसे साहसिक निर्णय लिये जिनकी अन्य मिसाल विश्व के इतिहास में कहीं नहीं मिलती। 

वे दूरदर्शी थी। उनके द्वारा प्रारम्भ किये गये पांच सूत्री कार्यक्रम, जनसंख्या वृद्धि में रोक, वृक्षारोपण, गन्दी बस्ती उन्मूलन, दहेज प्रथा का उन्मूलन व रक्तदान का महत्व की आवश्यकता आज सभी महसूस करते हैं। विभिन्न प्रान्तों में राजनीतिक कार्यकताओं व अफसरों ने उन्हें लागू करने में सख्ती की जिससे उन्हें जन समर्थन नहीं मिला व विरोध हुआ परन्तु उसके कट्टर विरोधी भी इन कार्यक्रमों की आवश्यकता व महत्व को आज भी महसूस करते हैं। उन्होंने 1 जुलाई को राष्ट्र के नाम एक प्रसारण में कहा था कि ’’कृपा करके जादुई हल और नाटकीय परिणामों की आशा नहीं करें, केवल एक ही जादू है जो गरीबी को दूर कर सकता है और वह है स्पष्ट दूर दृष्टि के साथ-साथ कड़ा परिश्रम, दृढ़ इच्छा और कठोर अनुशासन।’’

इन्दिरा गांधी की राजनीति में प्रगतिशीलता, क्रियाशीलता और प्राचीन भारतीय आध्यात्म का सामंजस्य था। उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा पर बल देते हुए कहा था कि ‘‘साम्प्रदायिकता व जातिवाद की विचारधारायें बीती हुई दुनिया की विचारधारायें हैं जिसकी आज की दुनिया में कोई जगह नहीं है।’’

लंदन के भारत महोत्सव के अवसर पर ब्रिटेन के प्रमुख अखबार ‘‘आब्जर्वर’’ ने श्रीमती गांधी पर लिखे एक विशेष लेख में लिखा था ‘‘श्रीमती गांधी एक करिश्मा है, अपने इसी करिश्में के बल पर वह अपने देश पर शासन करती है। अपने देश के अपार जनसमूह को उंचे व विशाल मंच पर से जब वे सम्बोधित करती है तो देश के किसानों और मजदूरों के लिए उनके मुंह से सहानुभूति के शब्द निकलते हैं। महज उन्हें भरोसा दिलाने के लिए कि उनका भी कोई हमदर्द है। अपनी सहज मुस्कराहट और आंखों की चमक से वह अपनी बातचीत में लोगों का मत जीत लेती है। यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का प्रतीक है कि अन्दर की धनी पीड़ा उनके चेहरे पर नहीं आती। श्रीमती गांधी ने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे हैं, सौभाग्य व दुर्भाग्य की घड़ियां देखी हैं। परन्तु हर संकट से वह एक नई स्फूर्ति और नए संकल्प के साथ निकलती है।’’

1977 का आम चुनाव का निर्णय श्रीमती इन्दिरा गांधी की बुनियादी नीतियों के विरूद्ध नहीं था, विपक्षी मोर्चा द्वारा आपातकाल के संबंध में फैलाया गया भय, आतंक, तनाव, अफवाहों व गलतफहमियों के वातावरण का नतीजा था। विपक्षी मोर्चे ने कहा था श्रीमती गांधी तानाशाह बनना चाहती है, लोकतंत्र को समाप्त करना चाहती है। कुछ नीतियों के क्रियान्वयन में सख्ती व अधिकारों का दुरूपयोग हुआ जिसने विरोधी मोर्चे व मंच द्वारा व्यापक अराजकता फैलाने के इरादों को ढक दिया। 1980 में भारतीय जनमानस ने दिखा दिया कि कुशल प्रशासन के लिए एक दृढ और अनुशासन प्रिय व्यक्ति ज्यादा उपयुक्त होता है बजाय अपने स्वार्थो के लिए एकत्रित भीड़ व लक्ष्यविहीन नेतृत्व। सच्चाई यह है कि व्यापक अधिकारों से युक्त एक सशक्त केन्द्रीय उद्देश्यपूर्ण सरकार ही भारत की जनता को जाति, धर्म, अशिक्षा, गरीबी, असमानता के गर्त से निकालकर लोकतंत्र को सफल बना सकती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)