लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
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आजादी की लड़ाई में अकेली महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली, 135 वर्ष पूर्व स्थापित कांग्रेस उतार चढाव के बावजूद लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और लोक कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता के साथ राष्ट्रीय दल के रूप में खड़ी है। देश की आजादी के लिए जितने बलिदान, उत्पीडन, पीड़ायें कांग्रेस ने सही उतना अन्य किसी राजनैतिक दल ने नहीं सहे। आजादी के बाद कांग्रेस ने लोकतंत्र की जड़े मजबूत की। देश की एकता, समाजवाद, सर्वधर्म सम्भाव, सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए दृढतापूर्वक विकास किया, वह देश का स्वर्णिम इतिहास है।
कांग्रेस को वर्तमान परिस्थितियों पर आत्मावलोकन कर, हार का विश्लेषण करते हुए केन्द्रीय व प्रादेशिक स्तरों पर संगठनो का पुर्नगठन करना चाहिए, संगठन का कैडर तैयार करना चाहिए, सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना पर जोर देकर, जन समस्याओं को हल करने की पहल करें। नेता व कार्यकर्ता के भेदभाव व मतभेद भुलाकर, एकजुटता से कांग्रेस को मजबूत करने के बारे कार्य योजना बनाये। सम्पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ निजी महत्वाकांक्षायें छोड़कर जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करें व कार्य करें। भाजपा पूरी शक्ति के साथ, कांग्रेस मुक्त भारत की घोषणा को पूरा करने के लिए कार्य योजना बनाकर सभी हथकंडे अपना रही है और केन्द्र व अनेक राज्यों की सत्ता से बाहर कर चुकी है।
कांग्रेस हाईकमाण्ड को क्षेत्रीय लोकप्रिय नेताओं को मजबूती प्रदान करनी चाहिए। कांग्रेस में सभी प्रदेशों में शक्तिशाली नेतृत्व को मजबूती देने व पनपाने की कोशीश की जानी चाहिए। विभिन्न प्रदेशों के राजनीतिक राजकुमारों को, सत्ता के लोभी लोगों को विशेषकर अन्य पार्टीयों से आये नेताओं को अपनी स्थिति का भान कराकर ही उपयुक्त जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
कांग्रेस की अपनी कमियां, विकृत स्वरूप व गिरावट परिलक्षित हो रही है। कांग्रेस में भी जांत-पात की बीमारी घर कर रही है, अग्रिम संगठनों में लोग सिर्फ इसलिए आते है कि उनके चुनावों में टिकट का रास्ता साफ हो जाये। उम्र पार कर चुके नेताओं को युवकों का, छात्र जीवन त्याग चुके लोगों को छात्रों का नेता बना दिया जाता है। पार्टी नेतृत्व का सवाल हो या विधायक दल के नेता का चुनाव मसला, दिल्ली से तय होता है। गुटबाजी, आंतरिक कलह बना रहता है।
कांग्रेस में पूरे देश में ऐसा कोई नौजवान नेता दिखाई नहीं देता जो राहुल की तरह भारत में घूम-घूम कर कांग्रेस की स्थिति को मजबूत करता है, मामूली कार्यकर्ता की तरह गांव-गांव घूमता है। वह बुद्धिमान है, जिज्ञासु है, संयत है, विनम्र व गरिमामय है। अन्य युवा नेताओं को वंश व परिवार अथवा पिता की कमाई की बजाय अपनी कमाई पर ध्यान देना चाहिए। युवा नेतृत्व के नाम पर राजकुमारों को, जनता पहचानती है। यदि भारत में लोकतंत्र वंशवाद आधारित होता तो लालबहादुर शास्त्री, नरसिंहा राव व सबसे प्रमुख महात्मा गांधी के पुत्र देश के नेता बन जाते। यह कहना धूर्तता है कि इन्दिरा गांधी व राजीव गांधी माता-पिता की वजह से प्रधानमंत्री बने। जब इन्दिरा गांधी बनी तब नेहरू व राजीव गांधी बने तब इन्दिरा गांधी जीवित नहीं थी।
भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति के तहत समाचार पत्रों, इलेक्ट्रोनिक मीडिया चैनलों का उपयोग किया, अनेक वरिष्ठ पत्रकारों की सेवाओं का उपयोग किया, मीडियाकर्मियों को राज्यसभा में अपने प्रमुख प्रवक्ता के रूप में पहुंचाया। वर्तमान में देश प्रदेश में अनेक पत्रकार व मीडियाकर्मी है जिनकी प्रतिबद्धता संघ परिवार, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता पार्टी से जाहिर है। कांग्रेस का राष्ट्रीय संगठन या प्रदेश संगठन, मीडिया से जुड़े लोगों को एवं विचारधारा से जुड़े प्रबुद्ध लोगों को जोड़ने में सफल नहीं हुआ है, जिससे कांग्रेस को अपनी बात आम लोगों तक पहुंचाने में कठिनाई हो रही है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुलेआम इस स्थिति को स्वीकार कर चुके है। सरकार की जनहित की खबरों को छपाने के लिए कहना पड़ता है।
मार्च 1954 में, जयपुर में सरदार पटेल ने कांग्रेसजनों को नसीहत व सीख देते हुए कहा था ‘‘जो लोग कांग्रेस में काम करने वाले है उनसे में चन्द बातें कहना कहना चाहता हूं क्योंकि मैं खुद कांग्रेस का सेवक हूं। कांग्रेस के सिपाही की हैसियत से बहुत साल तक मैंने काम किया है, मैं अभी तक एक सिपाही हूं, लोग जबरदस्ती मुझे सरदार कहते है। मैं अदब से कहना चाहता हूं, हमारी इज्जत या प्रतिष्ठा किस-किस चीज में है। हम दावा करते है कि हमारी जगह आगे होनी चाहिए, हम समझते है हमने बहुत कुर्बानी की है लेकिन जो नई कुर्बानी चाहिए वह न करों तो पिछली कुर्बानी व्यर्थ हो जाती है। हम में जो आपसी नम्रता होनी चाहिए उसका अभाव है। सेवक बनने का जिसका दावा है वह अगर नम्रता छोड़ दे और अभिमान का अंश पैदा हो जाये तो वह सेवा किस तरह करेगा। सत्ता लेने के लिए कोशिश करना हमारा काम नहीं, सत्ता हम पर ठूंसी जाय तब वह ओर बात है, सत्ता खींचने के लिए हम अपनी पूरी शक्ति नहीं लगाये।’’
छोटी-छोटी चीजों का आग्रह करने वाले कांग्रेस को नहीं पहचानते, ऐसी बातें वही करते है जिन्होंने कांग्रेस में सच्चा काम नहीं किया। जो सिपाही है उसे गिरने का कोई डर नहीं, वह अपनी मर्यादा रखे, जो अधिकारी बनता है उसको रात-दिन जाग्रह रहना चाहिए। हम अधिकार के पद की इच्छा न करें, मोह न करें, लालच न करें, इस तरह काम न करें तो अधिकार के योग्य नहीं है। यदि सच्चा कार्य करना है तो निःस्वार्थ सेवा की प्रतिज्ञा करें, मान-अपमान पद का त्याग करें। आज हमें अपनी कमजोरियों से लड़ना है, जिन व्यक्तियों ने त्याग किया वे स्वेच्छा से निर्णयों का पालन करें, हम सत्ता के मान का ख्याल रखे, जबाबदारियों को पूर्ण करें। हमें प्रजा धर्म सिखाना है, अब परीक्षा का समय आ गया है, हमें गांधी के मार्ग पर चलना है, उनके पास न कोई राज गद्दी थी न उनके पास शमशेर थी, न उनके पास धन था लेकिन उनके त्याग और चरित्र की जो प्रतिष्ठा थी वह किसी के पास नहीं है।
कहा जाता है कांग्रेस कितनी भी लड़े-भिडे संकट के समय यह एक हो जाती है। कांग्रेस को आंतरिक गुटबाजी से उपर उठना होगा, अनुशासनहीनता को सहन नहीं करना होगा, दो पावर सेन्टरर्स नहीं बनाने होंगे। नेता बनाने व टिकट देने के पहले व्यक्ति की पृष्ठभूमि, विचारधारा, जन समर्थन, उसके कृतित्व व व्यक्तित्व को देखना होगा। जातिवाद, क्षेत्रवाद, व्यक्तिवाद, वंशवाद को महत्व देना समाप्त करना होगा, बगैर जनसेवा सत्ता संभलाने की प्रवृत्ति को महत्व देना समाप्त करना होगा।
राजस्थान में कांग्रेस के बहुसंख्यक विधायकों ने फिलहाल यह मिथक तौड दिया कि भाजपा और उसके साम, दाम, दण्ड और भेद की सियासत को परास्त नहीं किया जा सकता। भाजपा के मंसूबे पूरे नहीं हो सकें, संगठन ने मजबूती दिखाई, अन्य छोटी राजनैतिक पार्टियों ने भी कांग्रेस का साथ दिया, परन्तु कांग्रेस के पास तो केवल एक अशोक गहलोत है। अन्य प्रदेशों में भी उसे अशोक गहलोत जैसे क्षत्रपों की आवश्यकता है। उनके दम पर पार्टी पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरी है। गहलोत ने खरीद फरोख्त की सियासत को करारा झटका दिया है, संगठन नेतृत्व की शानदार बानगी पेश की है। मोदी सरकार की ओर से आयकर, सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय जैसे हथकंडों का इस्तेमाल कांग्रेसजनों पर किया गया। उल्टे भाजपा की स्थिति और हास्यास्पद हो गई।
कई बार ऐसा महसूस होता है कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए भाजपा की आवश्यकता नहीं है। वह सेल्फ गोल करने की आदी हो गयी है, स्वयं अपने को कमजोर करने, स्वयं की कब्र खोदने में ही कांग्रेस नेताओं को आनन्द आता है। कमीटमेंट व अनुशासन नाम की कोई चीज उसके नेताओं के पास नहीं हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)