लिव इन रिलेशनशिप में रहना क्या सही है

लेखक : संजय जैन बड़जात्या

कामां (भरतपुर), राष्ट्रीय सांस्कृतिक मंत्री, जैन पत्रकार महासंघ

www.daylife.page  

हाल ही में श्रृद्धा वाकर की मौत ने पूरे देश को हिला दिया है और एक बार फिर से यह सवाल खड़ा हो गया है कि आज के युवा जोड़ों का प्रेम के नाम पर अपने मां बाप की मर्जी के खिलाफ लिव इन रिलेशनशिप में रहना क्या सही है। 

युवा होते इन बच्चों के लिये प्यार का मतलब सिर्फ मौज मस्ती और वासना है और जैसे ही इस रिश्ते से इन्हें बोरियत होती है ये लोग ऐसे रिश्तों को तोड़ने में दो मिनट नहीं लगाते।

 श्रृद्धा के मामले में भी यही हुआ सिर्फ शारीरिक आकर्षण के चलते वह अपने साथ कॉल सेंटर में कार्य करने वाले दूसरे मजहब के लड़के आफताब की तरफ आकर्षित हुई और अपने माता पिता की परवाह किये बिना कि उन पर उसके इस कदम से क्या बीतेगी वह आफताब के साथ रहने लगी।

 किसी भी माता पिता की तरह श्रृद्धा के माता पिता भी यही चाहते थे कि श्रृद्धा उनकी पसंद के लड़के से शादी करे लेकिन श्रृद्धा के ये शब्द कि ' मैं पच्चीस बरस की हो चुकी हूं और अपना निर्णय ले सकती हूं' ने मां बाप के  विश्वास और भरोसे को पूरी तरह तोड़ दिया।

जब बच्चे शादी जैसे मामलों में अपने मां पिता के फैसलों पर सवाल उठाने लगें तो यह भविष्य के लिए खतरे की घंटी ही है।

आजकल बच्चों को लगता है कि वो ज्यादा पढे लिखे हैं और नये जमाने के हैं तो उन्हें निर्णय लेना आता है लेकिन उनकी यह सोच गलत साबित हो रही है  क्योंकि विजातीय होने वाली शादियां बमुश्किल ही सफल हो रही हैं और लिव इन रिलेशनशिप में रहना तो शादी के पवित्र रिश्ते पर ग्रहण लगा रहा है। यह रिश्ता दो दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात बनकर रह गया है।

ऐसी शादियां करने और साथ रहने का परिणाम आज सबके सामने है। चंद दिनों के प्यार से मन उठने के बाद सिरफिरे लड़के अपनी इन प्रेमिकाओं को छोड़ देते हैं या कत्ल कर देते हैं।

लेकिन अब सोचने का विषय है जब स्वयं निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो चुकी थी तो फिर इतना गलत निर्णय कैसे लिया गया, क्या पढ़ने लिखने से किसी भी बेटी को अपने मां बाप के फैसले पर सवाल उठाने का अधिकार मिल जाता है।

श्रद्धा के टुकड़ों ने कई सवाल टुकड़ों में उछाल दिए हैं उन सवालों के जवाब मिलना बहुत जरूरी है। भविष्य में कोई और श्रद्धा किसी आफताब का शिकार ना हो उसके लिए भी सतर्क रहना बहुत जरूरी है। कई सारे आफताब एक साथ दरिंदगी करने के लिए घूम रहे हैं लेकिन समझदार श्रद्धा उनके विश्वास में क्यों फंस रही है ?अपने मां-बाप के विश्वास का हनन करके क्या श्रद्धा नई श्रद्धा की ओर अग्रसर होकर अपने जीवन को सुरक्षित बचा पाई? हर बेटी को यह समझना होगा कि उसके मां-बाप कभी भी उसके लिए गलत निर्णय नहीं ले सकते हैं। मर्यादाओं संस्कारों और माता पिता के विश्वास का खंडन करके टुकड़ों में विभाजित कर दिया और उसका परिणाम टुकड़ों में ही मिला।


विश्वास नहीं था यह श्रद्धा का

प्रभाव था फूहड़ सभ्यता का

संस्कारो का यदि बीज डला होता

शिकार न होती किसी आफताब का


वर्तमान परिस्थितियों में माता पिता अपनी जीवन की व्यस्तता में या यूं कहें की आधुनिक दौड़ में स्वयं को शामिल करते हुए अपनी औलाद को उचित संस्कार नहीं दे पाते हैं। कुछ परिस्थितियां भी इस प्रकार से उलझ जाती हैं की सुलझ ही नही पाते हैं। 

आवश्यकता है वर्तमान में एक मुहिम चलाने की, अपनी बेटियों को समझाने की। एक छोटा सा प्रयास अगली श्रद्धा को रोक सकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार है)