लेखक : राम भरोस मीणा
(लेखक जाने माने पर्यावरणविद्, समाज विज्ञानी व प्रकृति प्रेमी हैं।)
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वर्षांत के पानी को संजोकर छोटी छोटी नालियों, धोरों को एक साथ लेकर ऊंचे पर्वत,पहाड़, पठार, टीलों, मैदानों से निकल कर सैकड़ों किलोमीटर नाग के समान लपेटे खाती हुई हर जीव जंतु, वनस्पति के पीने के पानी की पूर्ती करने वालीं सदा नीर नदीयां स्वयं अपना कंठ प्यास के मारे सुखा चुकी, इनके बहाव क्षेत्र में आने वाले नालों के अवशेष तक मीट चुके, उनका "इतिहास भी गायब" हो चूका, ऐसे अनेक उदाहरण वर्तमान में देखने को मिल जाते हैं, इसलिए नदी स्वयं प्यासी रहकर तालाबों, बांधों की भला प्यास कैसे बुझा सकती है।
नदियों के महत्व,उपयोगिता, उपभोग के साथ इनके त्याग बलिदान को मानव जब से भुलाने लगा, छेड़ छाड़ करने लगा इन्हें रोकने के प्रयास किए, उतने ही नदियों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ा, नालों की मौतें हुई, यही नहीं माह नदियों की सहायक नदियों के लिए खतरा बढ़ा, नदी अथवा नदियों के साथ जो अपराध हुए वो एक दिन, महिने या एक वर्ष का खेल नहीं बल्कि पुरे दो से तीन दशक में इनके साथ चलीं साजिश का परिणाम है।
नदियों के उद्गम से अंत तक आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बिना डिजाइनिंग, पानी की आपूर्ति, ठहराव, भूगर्भीय जल स्त्रोतों पर पड़ने वाले प्रभाव व बहाव क्षेत्र में पुर्व में बने जल संग्रह केन्द्रों के महत्व को बगेर ध्यान में रखें, समाज विज्ञानी, जल योद्धाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुभवों का इस्तेमाल किए बिना बनें अनुपयोगी जोहडों, एनिकटों, नाड़ियों, चेकडैमों, बांधों के परिणामस्वरूप राजस्थान में सों से दो हों साल पूर्व बने दो तिहाई बांधों में पानी आना बंद हो गया, वहीं यहां की दर्जनों नदीयां , सैकड़ों नालों का अस्तित्व खत्म हो चुका या कहें होने के कगार पर है जिन्हें आने वाली पीढ़ी पहचान नहीं कर सकेंगी साथ ही प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए बड़ा मुश्किल होगा जैसा गंगानगर, सीकर, जयपुर के साथ हुआ।
एलपीएस विकास संस्थान के प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद् राम भरोस मीणा ने नदी व बांधों के सूखे पन के मुख्य कारणो को अपने अनुभवों के तहत पाया की अलवर, जयपुर, दौसा, सीकर के साथ राजस्थान के अधिकत्म बांधों का सूखा रहने का मुख्य कारण नदियों के बहाव क्षेत्रों में पनप रहे अवरोध, अवैध खनन, फार्म हाउसों का निर्माण, सड़क निर्माण के समय छोटे छोटे नालों के बहाव में अवरोध, नदी पेटे में किया गया अनावश्यक निर्माण, बढ़ते अतिक्रमण के परिणामस्वरूप आज यहां के नब्बे प्रतिशत मीठे पानी के संग्रह स्थल सूखे है, जल स्तर पाताल लोक पहुंच गया, पीने योग्य शुद्ध पानी की कमी पैदा हो गई जो भविष्य के लिए ख़तरा है।
अतः स्थानीय नदियों, नालों के बहाव क्षेत्रों में पनप रहें अवरोधों, अतिक्रमणों को हटाया जाए, नदी क्षेत्रों को चिंहित किया जाए, आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ स्थानीय समाज विज्ञानीयो, जल योद्धाओं का नदी पुनर्जीवित करने में सहयोग लिया जाए जिससे नदियों के कंठ जल से तृप्त होने के साथ वे बांधों को पानी दे सकें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार है।)