विपक्ष विहीन लोकतंत्र...!

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस.अधिकारी हैं)

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नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की अपार सफलता से कहा जा रहा है और प्रतीत हो रहा है कि उनकी सरकार से भारतीय जनमानस संतुष्ट रहा। जबकि खेती व किसानों की स्थिति, बेरोजगारी, बढ़ती गरीबी, मंहगाई व असमानता, आर्थिक नीतियों में मोदी सरकार विफल रही है। बेरोजगारी 45 साल के रिकार्ड दर 9 प्रतिशत रही। कृषि विकास दर निम्नतम पायदान पर 1.9 प्रतिशत के साथ रही। विगत 15 वर्षो में आर्थिक विकास की स्थिति का निम्नतम प्रदर्शन पर रहा है। भारतीय जनमानस इन विफलताओं को देख रहा है। महसूस कर रहा है परन्तु जब वह विकल्प के रूप में दूसरी ओर देखता है तो उसे जातिवाद, व्यक्तिवाद, परिवारवाद से ग्रसित नेतृत्व विहीन अस्थिरता व राजनैतिक स्थितियां दिखाई दे रही है। विपक्ष के संगठन बिखरे हुए हैंे। भाजपा आरएसएएस के सहारे मजबूत संगठन खड़ा कर चुकी है प्रचार प्रसार में सुदृढ़ व अग्रणी होने के साथ-साथ मीडिया को अपने कब्जे में कर चुकी है और राष्ट्रवाद व हिन्दुत्व, देश की सुरक्षा, पड़ौसी राष्ट्रो से ही राष्ट्र के भीतर के खतरे दिखाकर नीतियों से असंतुष्टि के बावजूद विकल्पहीनता की स्थिति नागरिकों के मन मस्तिष्क में पैदा कर रही है। 

विश्व में बह रही दक्षिणपंथी और राष्ट्रवाद के उभार की हवा, नई पीढ़ी में उभर रहे बदलाव का ज्वार, खेती-किसानी की स्थिति, बेरोजगारी, असमानता, मंहगाई बढ़ा रही नीतियां, व्यक्तिगत चेहरे की राजनीति के उभार का दौर भारतीय जनमानस में असन्तुष्टि पैदा कर रहा है परन्तु मीडिया, सोसियल मीडिया द्वारा उसने सभी विरोधी पार्टियों को मैदान से बाहर खडा कर दिया है। 

मनमोहन सिंह सरकार पर लगे दाग, चतुराई के साथ लोकपाल आन्दोलन, गांधीवाद का चौला पहने आरएसएस से जुड़े व प्रभावित बाबाओं को, बटा, बिखरा विपक्ष नहीं पहचान सका। विपक्ष का नेतृत्व कर रही कांग्रेस सबको साथ नहीं ले सकी, राफेल व अन्य बड़े मुद्दों नोटबंदी, जीएसटी, भेदभाव की राजनीति, संवैधानिक संस्थाओं के दुरूपयोग, सीएजी की अतिरंजित रिपोर्ट, मंहगाई, बेरोजगारी, बेकारी, गरीबी को प्रमुख मुद्दा नहीं बना सकी, विफल रही। विपक्ष को एकजुट नहीं कर पाई जिससे लोकतंत्र के लिए खतरनाक परिणाम उपस्थित हो रहे है। 

नरेन्द्र मोदी ने मनमोहन सिंह सरकार के भ्रष्टाचार, मंदी, आर्थिक विफलताओं को चुनावों में प्रमुखता दी, भविष्य के भारत का सपना दिखाया। कांग्रेस केवल नोटबंदी, जीएसटी, किये गये वायदो की विफलता को मुद्दा बना सकी। उसने लोकतंत्र, समाजवाद, राष्ट्रीय एकता, समानता पर होने वाले गम्भीर हमलों से जनता को नहीं जगाया। विपक्ष एक सुनहरे सपने नहीं रख पाया। कांग्रेस का घोषणा पत्र अत्यन्त देरी से आया व जनता तक नहीं पंहुचा। उसका प्रभाव जनमानस पर नहीं पड़ा। भारतीय जनता पार्टी ने सहयोगी संगठनों को पूरी तबज्जो व प्राथमिकता दी, सीटों के बंटवारे में महत्व दिया। कांग्रेस ने सहयोगी संगठनों को पूरी तरह साथ नहीं लिया। अपने आपको बिग ब्रदर समझकर व्यवहार किया। गठबंधन टूटते गये। चुनाव से एकदम पहले बने गठबंधन का मतदाताओं पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ा। भाजपा क्षमता से अधिक सीटें देकर गठबंधन करती रही। अपनी सीटों को सुरक्षित कर लिया। काँग्रेस अनेक राज्यों बंगाल, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े राज्यों में मजबूत व सक्रिय गठजोड़ करने में विफल रही। भाजपा ने 40 राजनैतिक दलों से गठबंधन किया, उनके प्रभावशाली सीटों पर उन्हें महत्व दिया, सारे दलों को एक साथ खड़े कर सकी। 

राहुल गांधी के साथ परिवार के निजी स्वार्थ से जुड़े चेहरे थे, सत्ता के लालायित, पार्टी सिद्धांतों से दूर। परिवारवाद, जातिवाद, एनडीए पार्टियों में भी था परन्तु नकारात्मक माहौल यूपीए पर पड़ा। युवा मतदाता मूलभूत मुद्दों को भूलकर परिवारवाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार के आरोपों में फंस गया। सोषियल मीडिया की प्रमुख भूमिका रही। संगठित प्रयास व प्रसार से राहुल गाँधी के व्यक्तित्व को नीचे गिराकर प्रचारित किया। 

विपक्ष को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी की विफलताओं, मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी, असमानता के बढ़ते परेशान होकर जनता विकल्प के रूप में बिखरे व छितरे लोगों व पार्टियों को सत्ता सौंप देगी। संघर्ष करने वाला नेता एकजुट, एक निश्चय, एक एजेन्डे व स्पष्ट नीतियों से संघर्षशील चेहरे के साथ सामने आये जो जनमानस की पसंद हो। जनता के मुद्दों पर लड़ते हुए स्पष्ट नीतियों के साथ संघर्षशील एकजुट चेहरा दिखाना होगा। वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व व यूपीए संगठन के नेता संघर्ष, एकरूपता, दृढता की संस्कृति से दूर है। कांग्रेस सहित विपक्ष विफल रहेगा, चाहे जैसी भी राजनैतिक परेशानी हो, विपक्ष का मजबूत चेहरा स्पष्ट नहीं दिखाई दिया तो मोदी को लाभ मिलेगा। उनकी भाषण कला, तोडफोड व संगठन की नीति, प्रचार माध्यमों पर कब्जा उनकी मदद करेगी। सत्ता पक्ष की विफलता होने से बचा ले जायेगा। विपक्षहीन लोकतंत्र भारत में बना रहेगा। 

विचारधारा की दृष्टि से भाजपा हिन्दुत्व के साथ दक्षिणपंथी अर्थव्यवस्था पर चल रही है। कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता, सीमित उदार अर्थव्यवस्था और गतिशीलता तथा समाजवादी विचारो वाले समाजवादी व कम्युनिस्ट समय रहते मंथन कर क्षेत्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय हितों की गारंटी के साथ, टकराव, अनिश्चतता, असंतोष को मिटाकर, सौदेबाजी, तात्कालिक हितों को छोड़कर भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के लिए एकजुट खड़ी हो सकती है। भाजपा सरकार के बेहद अलोकप्रिय कदमों व इरादों को जनता के समक्ष प्रस्तुत कर सकती है, सब कुछ इस पर निर्भर करता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)