भारत छोड़ो आन्दोलन पर विशेष : डॉ. सत्यनारायण सिंह

 09 अगस्त पर विशेष

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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जापान के महायुद्ध में भाग लेने के बाद गांधीजी को अहसास होने लगा भारतवासियों की सुरक्षा की अंग्रेज सरकार को कोई चिन्ता नहीं है। भारत से धनशक्ति और जनशक्ति मिले उनकी केवल यही इच्छा थी। मालदीप व बर्मा में हजारों भारतीयों का कोई सहारा नहीं बना, भारत आने के रास्ते में कईयों की मौत हो रही थी। अंग्रेज हिन्दु मुसलमानों के बीच दीवार खड़ी कर रहे थे, कुछ मुसलमान अपने को एक स्वतंत्र देश में देखने लगे थे। हिन्दु मुसलमानो के बीच विभेद तीव्र होने लगा था गांधी भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने के लिए विवश हो गए। यद्यपि 1920-22 के असहयोग आन्दोलन के समय दोनों के बीच एकता दिखाई दी थी। असहयोग आन्दोलन हिंसा के कारण गांधी ने बन्द कर दिया, परन्तु इस बार भारत छोड़ो आन्दोलन हिंसा के कारण बंद नहीं होगा यह महत्वपूर्ण फैसला लिया गया। 

गांधीजी ने सत्याग्रह और सत्याग्रहियों को कभी धार्मिक लक्ष्य रखकर व्यवहार नहीं किया था खिलाफत आन्दोलन के समय गांधीजी मुसलमानों के बहुत करीब व्यक्ति थे। मुस्लिम नेता मोहम्मद अली ने कहा था “प्रोफेट के बाद गांधीजी के निर्देश को मानना अपना कर्तव्य समझता हूं”। अजमल खां, डॉ अंसारी की मृत्यु के बाद मुसलमान जनता गांधी जी से दूर हो रही थी। मुस्लिम लीग को उकसाया जा रहा था।  मौलाना आजाद व सीमांत गांधी का इतना प्रभाव नहीं था। गांधी ने हिन्दुधर्म धारण किया था परन्तु व धर्म निरपेक्ष थे। हिन्दु उन पर आरोप लगाते बापू का मुसलमानों के प्रति ज्यादा झुकाव है। चर्चिल ने कहा था ”ब्रिटिश साम्राज्य को विखन्डित करने के लिए मैं प्रधानमंत्री नहीं बना हूं। 

वर्घा में सात दिन विचार विमर्श के बाद भातर छोड़ो आन्दोलन जोर सोर से करने का फैसला हुआ। देश के जड़ शरीर में जीवन्यास डालने की जिम्मेदारी गांधी जी ने अपने कन्धों पर ली। देश को एक रखने के लिए गांधी ने घोषणा की अगर ब्रिटिश राज कांग्रेस की संप्रभुता सत्ता प्रदान करने के लिए अनिच्छुक है तो वह मुस्लिम लीग को हाथो सत्ता सौंपकर चला जाए। जिन्ना ने इसका स्वागत किया, स्वीकार किया परन्तु भारत छोड़ो आन्दोलन को समर्थन नहीं मिला।

1942 अगस्त सात को कांग्रेस अधिवेशन मे प्रस्ताव को स्वीकृति दी। गांधी जी ने सरकारी नौकर, छात्र, सैनिक, मुसलमान सभी को आन्दोलन में आव्हावन किया। करो या मरो का आहवान किया। 8 अगस्त की रात को लम्बा भाषण दिया हिन्दु-मुसलमानों को हर प्रकार से समझाया एक होने की अपील की। उन्होंने कहा “मुझे पर विश्वास नहीं करोंगे तो निश्चित हिन्दु और मुसलमानों के बीच अंतहीन संघर्ष चलता रहेगा”। ऐसे संघर्ष को देखने के लिए मैं जिन्दा नहीं रहूंगा। स्वाधीनता पाने के लिए दोनो को मिलकर लड़ाई लड़नी होगी। मैं तुरंन्त स्वतंत्रता चाहता हूं आज की रात चाहता हूं। सूर्योदय से पूर्व हमें स्वाधीनता मिले। साम्प्रदायिक सद्भाव की प्रतिष्ठा तक स्वाधीनता इंतजार नहीं कर सकती”। 

उन्होंने कहा ”यह स्वाधीनता सिर्फ कांग्रेस की नहीं चालीस करोड़ भारतियों की होगी। इस देश के लाखों मुसलमान हिन्दुओं से पैदा हुए है भारत के अलावा उनका दूसरा कौन सा देश है? मेरा बड़ा लड़का मुसलमान हुआ वह कहां रहेगा। निःसंदेह भारत सारे भारतीय मुसलमानों का देश है। देश को स्वतंत्रत करने के लिए हर मुसलमान को लड़ना चाहिए। कांग्रेस में हिस्सा लेकर उस पर अधिकार कर इसे चलाये“। 

उन्होंने पत्रकारों से कहा “राजा महाराजा जमींदारो से बोले आप जीवन का भोग करे पर त्याग भी करें। मै यह नहीं कह सकता कि पूरी तरह निर्धन हो जाये, पर आज भी क्यों विदेशियों के दास बनकर कर रहे, आप अपने लोगों के सेवक बने”। सरकारी नौकरी चाहे न छोड़े पर सरकार के पास अपने जीवन को बन्धक क्यों रखें। सेना के बारे में उन्होंने कहा “भाईयो पर गोली चलाने के अन्याय भरे आदेशों को वह नहीं माने”। 

सुबह पांच बजे पुलिस ने आकर गिरफ्तार कर लिया। गांधी जी ने कहा अहिंसा की चरम सीमा तक जाने के लिए अब सभी स्वतंत्र है। हड़ताल और दूसरी अहिंसा नीति से देश को अचल कर दो। सत्याग्रही की कामना करें और उसका सामना करें। जब लोग मरने को तैयार हो जायेंगे, तब देश की जीएगा। आखरी तीन शब्द करो या मरो। अहिंसा का हर सिपाही कागज में ”करो या मरो“ लिखकर अपनी पोशाक पर चिपकाले सारे बड़े नेता भी गिरफ्तार कर लिये गये। निर्णय हुआ कस्तूरबा सभा को सम्बोधित करेंगी परन्तु उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया। 

नेताओं की अनुपस्थिति मे अरूण आसफ अली ने झन्डा फहराया। गांधीजी ने 74 साल की उम्र में 21 दिन का व्रत रखा। गिरफ्तारी के दौरान कस्तूरबा महादेव देसाई का निधन हो गया। अनशन के बाद गांधीजी गम्भीर रूप से बीमार हो गये। कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी होने लगी तो जमशेदपुर में हजारों मजदूरों ने प्रतिवाद स्वरूप काम बंद कर दिया। विश्व विद्यालय के छात्र कॉलेज नहीं गयें। पुलिस की गोली से 64 लोगों की मौत हुई, 114 आह्त हुए। मैसूर में पुलिस गोली से 60 लोगों की जान गई। पटियाला में राष्ट्रीय ध्वज फहराते 100 छात्र शहीद हुए। कलकत्ता में लगातार गौलियों की बौछार की गई। 

सरकारी गणना के अनुसार 9 अगस्त से 30 नवम्बर तक 1000 लोगों की मौत हुई 3275 लोग आह्त हुए। एक लाख लोग जेल में भर्ती थे। लोगों ने रेल्वे लाइन उखाड़ी, पुल तौड़ा पोस्ट आफिस पर हमले किये टेलीग्राम के खम्भों को गिराया। इसके लिए गांधी व कांग्रेस पर इल्जाम लगाया। अंग्रेज सरकार अब नीचे स्तर तक गिर चुकी थी। गांधी व कस्तूरबा ही नहीं सभी बंदियो को मानसिक अत्याचार किया गया। भारत छोड़ो आन्दोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने हर संभव प्रयास किया पर यह आवाज धीमी पउ़ने के बजाए तेज हुई। 9 अगस्त को तिरंगा झन्डा फहराने पर अनेक शहरो में युवक युवती शहीद हुए। ब्रिटिश सरकार हिल गयी। जबकी इस बार हिंसा काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से कोई नहीं था। अंग्रेज सरकार ने आरोप लगाया ब्रिटिश सरकार के आपातकाल में गांधी आन्दोलन क्यों कर रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने हर संभव प्रयास किया आन्दोलन को दबाने का परन्तु यह आवाज धीमे पड़ने के बदले पांच साल बाद और तेज होकर एशिया छोड़ो की आवाज में बदल गई। 

गांधी की मृत्यु पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा था ”स्वर्गिक आग को वहन करने वाले वह महात्मा करोड़ों लोगों के दिलों में वास कर रहे है और कई युगो तक करेंगे।“ सदियां गुजर जाने के बाद भी लोग पृथ्वी पर विचरण करने वाले समर्पित इस व्यक्ति की बात को याद करेंगे। पाश्च्यात विद्वानों ने महात्मा बुद्ध, सुकरात, यीशु मसीह से गांधी को जोड़ा। विश्व कवि ने कहा आगामी युगो के लिए महात्मा ने जिस तरह से अपने को एक दृष्टांत के रूप में गढ़ा उसके लिए लिए मानव जाति उन्हें हमेशा याद करेगी।

गांधी ने राजनीतिक जीवन में जिस तरह गांधी सत्य निष्ठ व अहिंसा नीति के पालन में अटल रहें उनसे पहले ऐसा कोई राजनेता पृथ्वी पर नहीं हुआ। बापू का राजनीतिक जीवन उनके व्यक्तित्व का एक पहलू है। गांधी एक विवर्तनशील व्यक्ति थे। एक तरफ सरल व्यक्ति लगते थे परन्तु दूसरी और बहुत जटिल थे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)