कोल माइनिंग प्रोजेक्ट वाली याचिकाएं छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने खारिज की

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किया

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रायपुर।  छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने खनन के लिए आवंटित की गई कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल), के लिए 1957 के अधिनियम के तहत राज्य के सूरजपुर और सरगुजा जिलों में फैले परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। 

इस कोल माइनिंग प्रोजेक्ट के लिए, कोयला खदान क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 के प्रावधानों के तहत भूमि का अधिग्रहण किया गया है।अदालत ने अपने आदेश में कहा, अदालत का दरवाजा खटखटाने में भारी देरी के अलावा, इन याचिकाओं में कोई योग्यता नहीं है, याचिकाएं खारिज करने योग्य हैं और तदनुसार, इसे खारिज कर दिया जाता है। मामले की सुनवाई एचसी के मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार गोस्वामी और न्यायमूर्ति राजेंद्र चौहान सिंह सामंत की खंडपीठ ने की।

तारा, जनार्दनपुर (सूरजपुर जिला) और फतेहपुर, घाटबारा, हरिहरपुर, साल्ही (सरगुजा जिला) गांव के निवासियों द्वारा एक्ट ऑफ़ द रिस्पॉन्डेंट (आरआरवीयूएनएल) के तहत परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली पांच याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान, आरआरवीयूएनएल और परसा केंटे कोलियरीज लिमिटेड के वरिष्ठ वकील डॉ एन के शुक्ला ने जाहिर किया कि अन्य गतिविधियों के बीच बुनियादी ढांचे और ओवरबर्डन (ओबी) डंप क्षेत्र के सहायक उपयोग के लिए गैर-कोयला वाली भूमि की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि, सीबी (कोयला बियरिंग) अधिनियम के तहत भूमि का अधिग्रहण 2013 के अधिनियम की चौथी अनुसूची के साथ पठित धारा 105 (मुआवजे, पुनर्वास और पुनर्वास से संबंधित) के मद्देनजर 2013 के अधिनियम द्वारा नियंत्रित या अधिक्रमित नहीं है। शुक्ला ने ये भी कहा, हालांकि, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (कठिनाइयों को दूर करना) आदेश, 2015 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार की घोषणा के मद्देनजर, 2013 के अधिनियम के प्रावधान सीबी अधिनियम पर लागू होंगे। (प्रेसनोट)