विफलता की आपदा : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं)

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2014 में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पर घोटाले, घपलों और प्रशासनिक निष्क्रियता के गंभीर आरोपो के बीच व नरेन्द्र मोदी की दिलचस्प भाषण शैली, जुमलो व लुभावने वायदो से चुनावों में ऐतिहासिक जीत हासिल की व गठजोड सरकार के 25 साल बाद एक पार्टी भाजपा को बहुमत हासिल हुआ। वायदे पूरे नहीं हुए परन्तु विपक्ष कमजोर रहा और 2019 में प्रधानमंत्री मोदी व उनकी पार्टी फिल चुनी गई। वायदे पूरे नहीं होने के बावजूद लोग मानते रहे मोदी काम करने वाला शख्स है। वादों के मुताबिक सुशासन करके दिखायेगे। नोटबंदी, जीएसटी, निजीकरण नीति, सरकारी असफलताओं के बावजूद उन्हें बहुमत मिला।

प्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार अरूण शौली के अनुसार कोविड महामारी के शुरूआती संकेतो की अनदेखी, प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ की कमी, स्वास्थ्य तंत्र के अभाव, टेस्टिंग और ट्रेसिंग की नाकामी, जरूरी दवाओं की कमी, आक्सीजन आपूर्ति व्यवस्था का ढहना, टेक्नोलोजी की मदद में नाकामी, वेक्सीन की कमी, सुपर स्प्रेडर आयोजनों को रोकने में संस्थाओं की ही ला-हवाली, इन सभी पहलुओं ने मिलकर लापरवाही, उदासीनता की त्रासद पटकथा लिख दी। जीनोम सिक्वेसिंग ग्रुप का गठन 2020 में हुआ। 2021 में 80000 नमूनों की सिक्वेसिंग की बजाय मात्र 3500 ही कर सके। आरटीपीसीआर टेस्ट के मामले में ढिलाई हुई। 2020 और 2021 के बीच सिर्फ 249 नई प्रयोगशाला ही जोड़ी गई। टेस्ट नतीजे आने में चार से पांच दिन लगते रहे, 12 घंटे में नहीं मिल जाने से, टेस्ट नतीजों में देरी से इलाज में देरी हुई।

विदेशों से आवागमन पर समय पर पाबन्दी व नियंत्रण नहीं किया। कोरोना फैलाव को धार्मिक, साम्प्रदायिक षडयंत्र बताया गया। बगैर योजना तैयारी लम्बा लाकडाउन से अर्थव्यवस्था ढप्प कर दी। प्रवासी मजदूर दर-दर भटकते रहे, नौकरियां व रोजगार बंद हो गये। उत्पादन गिर गया, मंदी छा गई, कीमते बढ़ गई। मृतको के दाह संस्कार का इन्तजाम भी नहीं हुआ। वल्र्ड हैल्थ आरगेनाईजेशन के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा मौते 47 लाख से ज्यादा भारत में हुई। सरकार बुनियादी सबक भुला बैठी, मेडीकल आक्सीजन ज्यादा जरूरी है या वेंटिलेटर, वैश्विक निविदा जारी की, फिर उसे रद्द कर दिया। आक्सीजन उपलब्ध नहीं हुआ, ज्यादा संक्रमण वाले राज्यों में आक्सीजन के बिना लाखों ने जान गंवाई। दुनिया में टीका उत्पादन में अव्वल देश टीकाकरण में नाकाम रहा। मुफ्त लगाना है या कीमत लेकर, इस पर उलझन चलती रही। सुप्रिम कोर्ट को इन्टरफीयर करना पड़ा। हमें वायरस के प्रकोप की रोकथाम के लिए आपात कदम उठाने चाहिए थे।

पहली लहर की कमी पर स्वास्थ्य ढांचे को तौड़ दिया गया, अतिरिक्त स्वास्थ्य सुविधायें बंद कर दी। अच्छा राजकाज मुहैया कराना नैतिक जिम्मेदारी है। सरकार नैतिक सबक भूल गई, किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। इस बीच राजनैतिक चुनावी फायदो के लिए बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां, सभायें, यात्रायें, कुम्भ व अन्य बड़े धार्मिक आयोजन हुए। सरकार के सभी उच्च मंत्रियों ने खुलकर कोविड चेतावनियों की अवहेलना कर जनता को पेरे संकट में डाल दिया। राजनैतिक नेतृत्व ने जब लापरवाही कर जनता को अपने रहमो-करम पर छोड़ दिया तो अफसरशाही को लकवा मार गया। कानून पास कर सर्वशक्ति प्राप्त करने के बाद सामूहिक नेतृत्व व सहकारी संघवाद को भुलाकर जबाबदेही राज्य सरकारों पर डाल दी गई। जिन्हें हमने सेवा के लिए बड़े-बड़े वायदो के आधार पर चुना वे पूर्णतया असफल हो गये।

हमने संवैधानिक संस्थाओं को खत्म कर दिया या कमजोर कर दिया। अनुत्पादक खर्चे हो रहे है, हर क्षेत्र में गिरावट आ रही है। सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र में भी पूरी तरह गिरावट आ गई। साम्प्रदायिकता का जहर फैल गया क्योंकि बहुसंख्यकवाद व हिन्दुत्व पर जोर देकर अल्पसंख्यक कल्याण को तुष्टिकरण की संज्ञा दी जा रही है। उत्पादन घट गया है, देश में मंदी और मंहगाई छाई हुई है। खाने-पीने की चीजे, अनाज, दाल, तेल, शक्कर, सब्जियां, फल, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमते आसमान छू रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है, नौकरियां व रोजगार नहीं है। लघु कुटीर ग्राम उद्योग बंद हो गये है। असमानता बढ़ रही है, अमीर-अमीर व गरीब-गरीब हो रहा है। राज्यों में बेरोजगारी दर 29 प्रतिशत तक पंहुच गई है। अब बैंक ऋण मंहगे होने से विकास दर व आमदनी घटेगी।

संसाधनों का सबसे बड़ा संग्रह सत्ता के पास है। गवर्नेस की मशीन (सरकार) चाहिए थी परन्तु सरकार चुनावी मशीन में तब्दील हो गई, विपक्ष कमजोर है, लोकतांत्रिक संस्थायें मौन है। सियासत की विराट मशीन तब ही चल सकती है जब सत्ता में हर स्तर पर नियंत्रण बनाया जाये। पड़ौसी देशों की हालत, उनकी आर्थिक तबाही, मंहगाई, बेरोजगारी के हालात से उपजी राजनैतिक अस्थिरता व उत्पात हम देख रहे है। हमें उनसे सबक लेना चाहिए। (लेखक का अध्ययन, अपना नज़रिया और अपने निजी विचार हैं)