मातृ दिवस, 8 मई पर विशेष
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आज मातृ दिवस है। वैसे यथार्थ में मातृ दिवस को किसी दिवस विशेष में बांधा नहीं जा सकता। देखा जाये तो जीवन में हरेक दिन ही मां का स्मृति दिवस होता है। और यह भी कटु सत्य है कि मां की ममता को किसी दिवस विशेष में सीमित भी नहीं किया जा सकता। वह तो असीमित और अमूल्य है जिसकी कोई सीमा ही नहीं है। वह तो सीमा से परे है। वह तो एक अनुभूति है जो अवर्णनीय है, अकल्पनीय है। दरअसल मां जिसके साथ एक अनूठे, अबूझे और अविस्मरणीय विशिष्ठ बंधन की अनुभूति होती है। वह बंधन है जो कभी समाप्त नहीं होता और जिसकी तुलना संसार की किसी भी वस्तु या जीव से नहीं की जा सकती।
सच कहा जाये तो समस्त संसार और समूची प्रकृति मां के इर्द-गिर्द ही घूमती प्रतीत होती है, जो सिर्फ और सिर्फ देती है, लेना तो उसने कभी जाना ही नहीं। यह भी सच है कि उस मां को जिसने यह अमूल्य जीवन दिया, उसे कुछ दिया ही नहीं जा सकता। वह मां बालक के लिए समूचा ब्रह्माण्ड है। वह मां जो बालक के जन्म से पहले गर्भ के अंदर, और फिर जन्म के बाद बालक को प्यार देती है, वह किसी और दूसरे सम्बंध में कदापि संभव ही नहीं है। यथार्थ में वह बच्चे के लिए प्रेम, बुद्धि, ज्ञान और विश्वास की जीवंत प्रेरणा होती है। सही मायने में वह व्यक्ति की चरित्र निर्मात्री है जो सदैव सत्य के मार्ग का अवलम्बन की प्रेरणा देती है।
मां धैर्य, साहस,शक्ति और सहनशीलता की वह देवी है जो गर्भ के अंदर, जन्म देने के बाद गर्भ के बाहर और जीवन भर स्वयं कष्ट सहकर संतति को कष्ट की कल्पना भी नहीं कर सकती, इसलिए वह महान है। कहते हैं कि ईश्वर किसी एक के साथ रह नहीं सकता, इसलिए ही उसने मां को बनाया। मां तो व्यक्ति की प्रथम शिक्षिका होती है जो व्यक्ति के चरित्र निर्माण के दायित्व का बखूबी निर्वहन करती है। फिर मेरी मां तो वास्तविक जीवन में भी शिक्षिका थीं। उनका नाम भी सरस्वती देवी था और मुझे इस बात का गर्व है कि मैं स्वयं सरस्वती पुत्र हूं।
उन्होंने जो मुझे पारिवारिक, व्यावहारिक और सामाजिक ज्ञान का बोध और संस्कारों का भान कराया, अभी तक उस दायित्व का निर्वहन मैं निर्बाध रूप से कर रहा हूं। मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूं कि आज मैं जो कुछ भी हूं और समाज ने मुझे जो अपार स्नेह, आदर, प्रेम और मान-सम्मान दिया है, वह सब मां के अगाध प्रेम, कृपा और आशीर्वाद का ही प्रतिफल है, परिणाम है। सनातन परंपरा में यदि पुनर्जन्म का विधान है, मान्यता है और यदि यह सत्य है तो मैं यह चाहूंगा कि अगले जन्म में भी मुझे उन्हीं की गोद मिले, छत्र छाया मिले, यही मेरी आशा-आकांक्षा और अभिलाषा है। मातृ दिवस के इस पुनीत पावन पर्व पर पूज्या मां को आदर और श्रृद्धा सहित शत शत नमन एवं भावभीनी आदरांजलि.... (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
(लेखक जानेमाने पर्यावरणविद एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)