27 मई पुण्यतिथि पर
लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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पं. जवाहरलाल नेहरू ने स्वर्गवास से पूर्व युवको के लिए एक सन्देश लिखा था जो उनकी मृत्यु के चार दिन बाद 31 मई 1964 को समाचार पत्रो में छपा था। नेहरू ने कहा था ‘‘तरक्कियों के शानदान जमाने के बाद आज दुनिया एक बहुत बड़ी दुर्घटना के किनारे खडी है, ऐसा लगता है आज मशीनों का शौर, प्रोपेगन्डा के नये तरीके और विज्ञापन आदमी को सोचने नहीं देते। अब तक हम लोगों ने मिलकर एक नया सवेरा देखने के लिए काम किया था पर बदकिस्मती से अभी तक अंधेरी रात जारी है और पता नहीं वह कब तक जारी रहेगी। राष्ट्रीय संघर्ष की अगली लड़ाई जारी है पर वह सबेरा एक दिन आयेगा। पंक्ति के हम जैसे बहुत से लोग शायद उस सवेरे को देखने के लिए ना बचें, पर जरूर आयेगा। तब तक उसका रास्ता रोशन बनाये रखने के लिए हमें हमारी मशाल जलाये रखनी है और मैं जानता हूं कि कितने ऐसे असंख्य बाजू मेरे थकते हुए हाथों से उस मशाल को ले जाने के लिए तैयार हैं मुझे उम्मीद है वह अपने आपको इस विरासत के लायक बनायेंगे। देश के सब जागृत युवक मिलकर शायद बहुत कुछ कर सके।’’ ‘‘माईल्स टूगो विफोर आई सिलीप।’’
दुनिया में बड़े राष्ट्रो की बढ़ती एडमी ताकत की अहमियत और परमाणु हथियार विकसित करने की जरूरत समझते हुए उन्होंने 1948 में ही अपनी अध्यक्षता में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की। परमाणु वैज्ञानिक डा. होमी जहांगीर भाभा को परमाणु संबंधी सारी सुविधायें व अधिकार सौंप दिये। दोनों की आपसी समझ ही परमाणु नीति थी, वे केवल नेहरू को सीधे रिपोर्ट करते थे। पं. नेहरू ने भाभा से कहा था ‘‘प्रोफेसर भाभा आप तो फिजिक्स पर गौर करें, अन्तर्राष्ट्रीय रिश्ते मुझ पर छोड़ दीजिये। हमें पहले परमाणु क्षमता हासिल करके खुद को साबित करना होगा और फिर हम गांधी, अहिंसा और परमाणु हथियारों के मुक्त दुनिया की बात करें।
पं. नेहरू के कार्यकाल 1947 से 1964 तक संसद में खुली बहस होती थी और उसके बाद निर्णय लिये जाते थे। भारतीय गणतंत्र की स्वर्णकाल पं. नेहरू का शासन काल रहा। भांखडा नांगल व बडे बांध, आणविक ऊर्जा केन्द्र, पुराणिक शोध केन्द्र स्थापित हुए तो साहित्य, कला जैसी अकादमियों का निर्माण भी हुआ। नेहरू ने गंगा का विवरण एक कवि की तरह किया है ‘‘मैंने सुबह की रोशनी में गंगा को मुस्कराते, उठलते, कूदते देखा है। शाम के साये में उदास काली चादर ओढे हुए, भेद भरी, जाडो में सिमटी सी अतिस्ता बहती सुन्दर धारा और बरसात में दौड़ती हुए, समुद्र की तरह चैड़ा सीना लिए और संसार को बरबाद करने की शक्ति लिए देखा है। वही गंगा मेरे लिए निशानी है, भारत की प्राचीनता की, यादगार की जो बहती आई वर्तमान तक और बहती जा रही है भविष्य के महासागर की ओर।’’
शायर कौफी आजमी ने आदरांजली में लिखा है ‘‘मेरे आवाज सुनो, प्यार का राज सुनो, मैंने एक फूल जो सीने पे सजा रखा था, उसके परदे में तुम्हें दिल में लगा रखा था। थक गया हूं मै। मुझे सो लेने दो, रोते क्यों है, सो के भी जागते रहो, क्यों सजायी है यह चन्दन की चिता मेरे लिए, मैं कोई जिस्म नहीं की जला दोगोंगे मुझे। हर कदम पर नए मोड का का आगाज सुनो। दुलिया में जहां तुम खाओगे ठोकर वहीं पाओगे मुझे।’’
बनते, गढ़ते, मोहते और प्रेरित करते नेहरू बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी, दार्शनिक, इतिहासकार, राजनयिक, कानेनविद और भारत के शिल्पकार व स्वप्नदृष्टा थे। उनकी नीतियां भारत के दूरगामी विकास के बीज हैं। देश के बुनियादी ढांचे ने उसी का आकार लिया है। भारत की नई पीढ़ी को नेहरू या जिन सिद्धांतों को लेकर लड़े, उसके बारे में कुछ भी नहीं बताया जा रहा है। इन्दिरा गांधी के शौर्य, बलिदान, राजीव गांधी के द्वारा कम्प्यूटर युग की शुरूआत को भी आपातकाल व भष्ट्राचार के आरोपो से ढक रहे है।
जय प्रकाश चैकसे लिखते है ‘‘आज वर्तमान के हुक्मरान नेहरू के योगदान को नकारते हुए उनकी बनाई हुई संस्थाओं को नष्ट करने में लगे हैं। हुक्मरान नेहरू स्मृति को मिटाते-मिटाते खुद मिट जायेंगे और अगर सफल भी हो गये तो नेहरू की लिखी ‘‘डिस्कवरी आफ इंडिया’’ सामूहिक जीवन के पाट्यक्रम की तरह शामिल इस ग्रंथ को नष्ट नहीं कर पायेंगे।’’ उनके व्यक्तित्व का अहम पहलू देखिये, उन्होंने विद्वता के लिए अपने गले का हार निराला के चरणों में डाल दिया था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)