लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
www.daylife.page
भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम को 12 अप्रेल को पता चला कि मार्च में भारत में खुदरा मंहगाई गत दो वर्ष के सबसे उंचे स्तर पर 6.95 फीसदी पंहुच गई है, रिजर्ब बैंक की तय की हुई अधिकतम 6 फीसदी की सीमा से लगातार तीन माह से चल रही है।
रोजमर्रा की अधिकांश जरूरी चीजों की कीमते लगातार तेजी से बढ रही है। 12 अप्रेल को पेट्रोल की प्रति लीटर कीमत मुम्बई में 120 रूपये से उपर थी, लगातार 10 फीसदी की वृद्धि हो रही है। रसोई गैस व डीजल की कीमत भी इसी प्रकार बढ रही है। रसोई गैस सिलेण्डर 950 रूपये का हो गया। सामानों के कच्चे माल मंहगे हो गये है, उत्पादन से लेकर ढुलाई तक सब कुछ मंहगा हो रहा है। थाली की चीजों से लेकर सभी उपभोक्ता वस्तुओं, कपड़े, जूते, चप्पले, साज सृंगार के सामान, दूध, चीनी, सब्जियां, फल, दाले, तेल की कीमते 220 रूपये प्रति लीटर तक, सब कुछ मंहगा हो गया है। रूपये की कीमत गिर रही है। सब्जियां 100-120 रूपये प्रतिकिलो, नींबू 300 रूपया किलो।
नौकरियां घट रही है, नई नौकरियां नहीं बन रही है। व्यापारिक फर्मो व औद्योगिक संस्थानों ने वेतन कम कर दिया है। दैनिक व ठेके के आधार पर मजदूरी दे रहे है। फैब्रीकेशन में काम में आने वाले नरम स्टील की कीमत दो साल में दोगुनी बढकर 80000 रूपये टन हो गई। स्टेनलेस स्टील, अन्य रसायन चैगुने मंहगे हो गये। ढुलाई चार गुना मंहगी हो गई। सब कुछ मंहगा, सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
तेल के बाद कोयला मंहगा व सप्लाई कम हो गई, बिजली उत्पादन कम व मंहगा हो गया। ऊर्जा और ईंधन की कीमतों में 36 प्रतिशत वृद्धि, यूक्रेन पर रूस का हमला मंहगाई का बहाना बन गया, हालात प्रतिदिन बिगड रहे है। वस्तुओं की मांग, मंहगाई, बेरोजगारी, कमाई कम होने से घट रही है, कमजोर हो रही है। उत्पादन भी घट रहा है।
नोटबंदी, जीएसटी, लम्बा लाकडाउन, एमएसएमई पर प्रतिबन्ध के कारण अर्थव्यवस्था पटरी से उतर रही है। रिजर्व बैंक ने 2022-23 के लिए वृद्धि का अपना पूर्वानुमान घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया है। हालात से रिजर्व बैंक पसोपेश में है, ब्याज दर वृद्धि करे तथा बेलगाम मंहगाई से आंखे मूंद ले। मुद्रास्फिति के बेलगाम होने से बढती कीमतों को थामना सरकार की सबसे बडी प्राथमिकता होनी चाहिए, मंहगाई पर काबू पाकर आम आदमी पर बोझ कम करने में कोई कसर न छोडे परन्तु सरकार को केवल कुछ उद्योगपतियों की चिन्ता रह गई है। सरकार का गेंहू निर्यात पर जोर है। मंहगाई बडी चिन्ता का विषय है, दक्षिणपंथी नीति-निर्माताओं को फोरन चैकस हो जाना चाहिए। पाकिस्तान व श्रीलंका में पैदा हुए हालात से सबक लेना चाहिए। आक्सीजन सरीखी चीजों के दामों में 75 प्रतिशत तक इजाफा हुआ है।
रूपया डालर के मुकाबले 76 रूपये चल रहा है। कमतर वृद्धि, उंची मंहगाई का दौर चल रहा है। कीमतें नहीं बढी तो पैकटों में सामान में कमी हो रही है, पैकेजिंग की लागत बढी है। पीतल व तांबा सोने की तरह बिक रहे है। मंहगाई से जर्जर अर्थव्यवस्था में वृद्धि को बढावा देने की खातिर सरकार व आरबीआई ने मुख्य नीतिगत दरों में बदलाव नहीं किया। चीन की नीतियों के चलते कच्चे माल की आपूर्ति में व्यवधान लगा है। खाद्य कीमतों पर नियंत्रण के लिए भारतीय खाद्य निगम के गेंहू चावल के भण्डारों का खुले बाजार में बिक्री की जा सकती है। उत्पादन शुल्क में कमी की जा सकती है। पेट्रोलियम पदार्थो पर लगाये गये सेस वापिस लिये जा सकते है। एमएसएमई आयकर में रियायते दें, जीएसटी में रियायत करें। ईंधन पर उत्पादन शुल्क में कटौती करें। एमएसपी में बढोतरी और उर्वरको की कीमतें कम कर किसानों पर बोझ कम करें। मुफ्त खाद्य योजनाओं और खाद्य सब्सिडी योजनाओं को आगे बढाये।
स्रकार को अब सेंटर राइट की नीतियां छोडकर सेंटर लेफ्ट नीतियों को अपना चाहिए। मात्र उद्योगपतियों व कारपोरेट सेक्टर को टैक्सों में छूट देने की बजाय आम आदमी को टैक्सों, लेवियो, सेस आदि में छूट देनी चाहिए। निजीकरण की पालिसी को छोडकर रोजगार वृद्धि करने वाले बडे उद्योगों व संस्थानों में नौकरियां व वेतन बढाना चाहिए जिससे देश में बढ रही असमानता पर रोक लगे। सरकार कितना ही प्रचार करे, भ्रष्टाचार, अनियमिततायें व पक्षपात बढ रहा है और देश के आम आदमी के कष्ट बढ रहे है। उज्जवला जैसी योजनाओं का लाभ बीपीएल महिलाओं की बजाय उच्च व मध्यम वर्ग को मिल रहा है। बीपीएल महिलायें गैस चूल्हा सिलेण्डर पृथक रखकर पुराना तरीका अपना रही है। लोग पूछने लगे है ‘‘कहा गया सबका साथ, सबका विकास व अब आयेंगे अच्छे दिन’’ के सरकार के स्लोगन्स। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)