पद्मश्री आचार्य श्री चंदना मां चाहती हैं जिनालय और देवालय के साथ विद्यालय भी

शख़्सियत  : पद्मश्री आचार्य श्री चंदना मां




लेखक : स्वाती जैन (पत्रकार)

हैदराबाद (भारत)

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हाल ही में इन्हें पद्मश्री मिला है। ये देश की पहली जैन साध्वी हैं जिन्हें समाज द्वारा प्रतिष्ठित आचार्य पद से सम्मानित किया गया है।

ममता और करूणा की मूरत छियासी वर्ष की इन  मां को उनकी संघस्थ शिष्याएं प्यार से ताई मां कहकर बुलाती हैं तो आम श्रद्धालु इन मां को साक्षात् सरस्वती का अवतार कहते हैं।

ये हैं देश - विदेश में शिक्षा के क्षेत्र में विख्यात संस्था वीरायतन की संस्थापक आचार्य श्री चंदना महाराज। इनका यह परिचय ही काफी नहीं है। भगवान महावीर के संदेशों विश्व मैत्री और हर प्राणी मात्र के प्रति दया को हर धर्म और संप्रदाय के आम आदमी तक पहुंचाकर जैन धर्म को जन- जन का धर्म बना रही हैं।

आचार्य श्री चंदना मां से मुझे भी आधा घंटे तक बात करने का सौभाग्य मिला और हर विषय पर खुलकर चर्चा हुई और मेरी शंकाओं के समाधान भी मिले।एक राष्ट्र ,एक देश व एक धर्म की सोच को लेकर आगे बढ़ रही पूजनीय माताजी पिछले तरेपन वर्षों से इस दिशा में कार्य कर रही हैं और देश भर में अब तक इनकी संस्था वीरायतन के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में दो लाख से भी अधिक बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं। अखंड मानव जाति की अवधारणा को साकार करती है वीरायतन संस्था। यहां की जो खास बात है वो है यहां पढ़ने आने वाले बच्चों को देशभक्त और संस्कारी नागरिक बनाया जाना। बच्चों को कैसी जिंदगी जीनी चाहिए इसका मार्गदर्शन दिया जाना। यहां आने वाला हर बच्चा  धर्म, जाति , पंथ, अमीरी और गरीबी से परे रहकर बिना किसी भेदभाव के एक साथ शिक्षा ग्रहण करता है और गरीब बच्चों को यहां निशुल्क शिक्षा दी जाती है। 

इस संस्था के स्कूलों में शुद्ध शाकाहारी भोजन दिया जाता है और अनुशासन इतना कि वहां का माली और सफाई कर्मी भी कोई ग़लत कार्य नहीं कर सकता। 

भगवान महावीर के संदेशों अहिंसा और प्रेम का प्रचार करने के लिये वीरायतन की स्थापना 1970 में भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव पर की गयी। इसके माध्यम से देश के अलग - अलग हिस्सों राजस्थान, गुजरात ,बिहार ,महाराष्ट्र में बीएड, ग्रेजुएशन, मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग,फार्मेसी के ग्यारह कॉलेज व प्राइमरी और सेकेंडरी के अनेक स्कूल चल रहे हैं तो वहीं विदेशों में भी अमेरिका, यूके, अफ्रीका, सिंगापुर, नेपाल में भी इसके केंद्र हैं।

आचार्य श्री चंदना जी कहती हैं कि वह हमेशा ही एक ऐसे परिसर का निर्माण करना चाहती थी जहां जिनालय और देवालय के साथ विद्यालय और चिकित्सालय भी हों। जहां आत्मकल्याण के साथ - साथ शिक्षा और सेवा की भावना विकसित की जाये।

वीरायतन संस्था के अनेक नेत्रालय,डेंटल हॉस्पिटल ,डायग्नोसिस सेंटर हैं जिनके माध्यम से अनेक रोगियों का इलाज किया जा रहा है। संन्यास लेने से लेकर समाज सेवा तक के इस सफर पर वह कहती हैं कि नन्ही सी उम्र से ही इनमें सेवा की भावना थी। कई बार इन्हें लगता कि घर में रहकर ये समाज के लिये बहुत कुछ नहीं कर पायेंगी इसलिये चौदह साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया। 

भगवान महावीर को पढ़ने के बाद इन्हें महसूस हुआ कि जो हम शिक्षा और सेवा का उपदेश देते हैं वो हम स्वयं क्यों नहीं करते हैं ?  

बस तभी से इन्होंने उपाध्याय अमरमुनि जी के साथ 1970 में लोगों के लिये काम करने की शुरुआत की और भगवान महावीर की जन्मस्थली बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया।

बिहार राजगिरी में स्थित वीरायतन नेत्र ज्योति सेवा मंदिरम से 45 लाख लोगों की आंखों की चिकित्सा की जा चुकी है और साढ़े तीन लाख लोगों के आंखों का ऑपरेशन हो चुका है व तीर्थंकर महावीर के जीवन पर आधारित ब्राहमी कला म्यूज़ियम को पैंसठ लाख लोगों ने भ्रमण किया है। यह सब भी एक रिकॉर्ड है।

कोविड़ के दौरान भी पूजनीय माताजी द्वारा दस हजार परिवारों को भोजन की व्यवस्था करवायी गयी व शिक्षा के क्षेत्र में और भी विस्तार किये गये हैं। वीरायतन संस्था के माध्यम से माताजी सभी को यह संदेश देना चाहती हैं कि जैसे वीरायतन में धर्म और पंथ को लेकर कभी किसी के बीच कोई भेद नहीं हुआ वैसे ही देश के हर नागरिक को अपना मत और संप्रदाय भूलकर देश के लिए एक होने और संगठित होने की जरूरत है। छियासी साल की इस उम्र में भी आचार्य श्री चंदना मां अपने कार्यों से चंदन की तरह महक रही हैं।