लेखक : रामभरोस मीणा
(लेखक जाने माने पर्यावरण कार्यकर्ता व समाज विज्ञानी है)
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मीठे पानी की किल्लत के साथ बढ़ती मांग पूर्ति को देखते आज विश्व स्तर पर देखा जाए तो पाया जाता है कि जो मीठे पानी के प्राकृतिक भण्डार थे वो खत्म होने की अंतिम स्थिति में दिखाई दे रहें, जिससे आगे आने वाले समय में पीने योग्य शुद्ध मीठे पानी की आवश्यकता की पूर्ति होना बड़ा मुश्किल है।नीति आयोग के 2018 के अनुमान के अनुसार 60 करोड़ लोग भारत में शुद्ध पेयजल की गंभीर कमी महसूस कर रहे हैं साथ ही प्रत्येक वर्ष 2 लाख लोग शुद्ध पेयजल प्राप्त नहीं होने के कारण गंदे पानी पीने से अकाल मौत हो रही। इतने ही लोग हर वर्ष पानी से संबंधित विभिन्न प्रकार की बीमारी से ग्रस्त होकर मोत के मुंह में झुझ रहें हैं।
दिनों दिन बढ़ती जा रही मीठे पानी की मांग को देखते हुए आगे आने वाले समय में पानी की आवश्यकता की पूर्ति होना बहुत बड़ा मुश्किल है, एक अनुमान के अनुसार 2030 तक भारत में पानी की मांग दोगुनी होने की संभावना से नकारा नहीं जा सकता, जबकि पीने योग्य पानी के 30 से 35 % भण्डार ही शेष बचे जो सबसे बड़ी समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। पानी की इस समस्या से निजात पाने के लिए सरकार, समाज व व्यक्ति विशेष को अपना कल ध्यान में रखते हुए वर्षा जल संग्रह केंद्रों की स्थापना करना बहुत जरूरी है।
गंदे नालों में किचड़ के साथ बहता अमृत हमारे किसी काम का नहीं,उसे हमें संजोकर रखना आवश्यक है, आज पुरे देश में 1 प्रतिशत वर्षा जल का संग्रहण अभी सही से नहीं हो पा रहा। अकेले राजस्थान में बढ़ते जल संकट को ध्यान में रखते हुए यदि देखा जाए तो यहां की जनसंख्या 2021 में अनुमानित 8 करोड़ के लगभग मानी गई जबकि यहां वर्षा जल संग्रह 0.5 % से कम है । वहीं यहां पानी का संकट बढ़ता जा रहा है।
एल पी एस विकास संस्थान के निदेशक व प्रकृति प्रेमी राम भरोस मीणा ने कहा कि बिगड़ते मौसम चक्र, ग्लोबल वार्मिंग, विपरीत होते पारिस्थितिकी तंत्र, प्रति व्यक्ति पानी के अनावश्यक बढ़ते खर्च को मध्य नजर रखते हुए देखा जाए तो शुद्ध पेयजल जो मीठा पानी मानवीय आवश्यकताओं के लिए होता वह राजस्थान की धरा पर 25 से 35% के बीच ही रह पाया जो आगे आने वाले समय में मात्र 7 से 8 वर्षों तक संपूर्ण जनसंख्या के पीने के पानी की पूर्ति कर सकता है, पानी की बढ़ती गंभीर समस्या को मध्य नजर रखते हुए हमें अमृत जल संग्रह केंद्रों की स्थापना करना बहुत जरूरी है, राजस्थान में 50 लाख छतें ऐसी है जहां प्रत्येक छत से प्रतिवर्ष 72 क्युबिक मीटर मीठा पानी एकत्रित किया जा सकता है।
यदि सभी छतों से इकट्ठा किये पानी को देखा जाए तो प्रत्येक वर्ष 36 लाख क्युबिक मीटर पानी इकट्ठा किया जा सकता है। पानी के इस प्रकार के संग्रह से ग्राउंड वाटर जहां एक तरफ सुरक्षित बचेगा वहीं उसका संग्रह भी बढ़ेगा जो आने वाली पीढ़ियां के लिए सुरक्षित रहेगा। पानी के इस संग्रह के साथ इसके उपयोग पर भी हमें ध्यान देते हुए अधिक से अधिक बचाने की कोशिश के साथ वर्षा जल संग्रह केंद्रों का निर्माण कर अपना भविष्य सुरक्षित करने की और कार्य करना आवश्यक है जिससे अपना भविष्य बच सकें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं लेखक के अपने निजी विचार है)