निजीकरण व विनिवेश
लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं)
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निश्चित रूप से मुद्रास्फीती की दर निरंतर बढ रही है। पैट्रोल व डीजल, रसोई गैस के दाम बढे हैं। महंगाई 8 साल के पीक 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई है। रोजगार के नाम पर लोगों को भरमाया जा रहा है। वायदों व दावों पर भाजपा शासन चला रही है।
आज महंगाई यानि मुद्रास्फीती की बात पर चर्चा नहीं होती। यूपीए के समय जो महंगाई बढी उसने कई गुना गत महिनों में बढी है। यूपीए के समय मुद्रास्फीती की दर तीन से चार प्रतिशत तक सीमित थी। मगर अब 8 प्रतिशत होने जा रही है। रोजगार व किसानों के हितों के लेकर भाजपा के वायदों का क्या हुआ। बजट से लेकर विदेश व्यापार नीति कहीं भी किसान नहीं है।
खाद्य सामग्री की कीमतों में वृद्धि से कोविड पूर्वक मुकाबले 26.30 करोड लोग और गरीब हो गये। 147 रू. प्रतिदिन से कम कमाई वाले लोगों की संख्या 86 करोड हो गई है। हर 33 घंटे में 1 लाख लोग अत्यधिक गरीबी से बर्बादी के करीब पहुुंच रहे है। 2021 में 12.5 करोड नौकरियां चली गई। फुड सेक्टर से महंगाई का फायदा खाद्य व उर्जा क्षेत्र के अरबपतियों ने उठाया। आम उपभोक्ता बाजार में हर वस्तु के दाम बढ रहे हैे। श्रमिक के कम वेतन व बदतर परिस्थितियों में मेहनत कर रहे हैे। दशकों से अमीरों ने धांधली की जो बिसात बिछाई थी अब उसका फायदा उठा रहे हैं। बाजार में धन की कमी साफ दिखाई दे रही है। किसानों की हालत बदतर हो गई है।
राजग सरकार विकसित देशों को जिस निर्यात सब्सिडी में कटोती के लिए मना रही है और ढिंढोरा पीट रही है दरअसल यह प्रत्यक्ष सब्सिडी है। विकसित देश पर्यावरण, मशीनरी आयात, और अन्य तरीकों से अपने किसानों को सब्सिडी दे रही है। विदेश व्यापार नीति में रणनीति सामने आ गयी है।
जिस मुद्दों को लेकर यूपीए सरकार विकसित देषों से लड रहा था उसे राजग ने फट मान लिया, जबकि दावा है किसानों के हितैषि है। आयात मुक्त कर देने से फल, सब्जिया, डेयरी, उत्पाद भारतीय बाजार में आयेंगे तब हमारा गरीब किसान क्या करेगा। पंजाब व हरियाणा को छोडकर और किसी प्रदेश में किसानों की माली हालत अच्छी नहीं है। गरीब किसानों को बीजों की जरूरत है, सब्सिडी की जरूरत है। आयात मुक्त नीतियों से इन किसानों पर क्या प्रभाव पडेगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।
जिस तरह की नीतियों वर्तमान सरकार लागू कर रही है। उससे होटल उद्योग में विदेशी कम्पनियां बडी तादाद में आयेंगी। इसके अलावा यह कदम देश के पूरे कारोबारी ढांचे स्वरूप के लिए घातक है। यह सरकार निर्यात बढाने का सोच रही है। मगर साथ ही आयात के नये द्वार खोल रही है। मुक्त व्यापार के दौर में आयात को किस तरह रोका जा सकेगा।
विदेशी निवेश एक संतुलित दायरे में आना चाहिए। बीमा सेवा में पूर्व में 26 प्रतिषत की अनुमति थी अब सरकार ने उसे बढाकर 75 प्रतिशत कर दिया। इसी तरह दूरसंचार के क्षेत्र में विदेशी निवेष बढाना तर्क संगत नहीं है। आवास ऋण में कमी, कृषि क्षेत्र के ऋणों पर ब्याज दरें घटी, राजग सरकार इसको उल्ट रही है। आवास ऋणों के ब्याज में बढोतरी कर दी है।
वैष्वीकरण और उदारीकण ने विनिवेष पर जबरदस्त दबाव बनाया है। एक समय योजनाबद्ध तरीके से विकास मुमकिन रहा है लेकिन आज पूंजीवाद के दबदबे ने मजबूर कर दिया है कि वे अपनी जरूरत को पहचान कर बाजार की मांग अनुरूप नीतियां बनाये। सरकार विरोध के बावजूद विनिवेश पर जोर दे रही है और नवरत्न कही जाने वाली कम्पनियों में भी निवेश करने में नहीं हिचक रही।
विनिवेश केवल आर्थिक कार्यक्रम नहीं है। आज विनिवेश के राजनीतिक, सामाजिक, वैचारिक व वैधानिक आयामों की अनदेखी की जा रही है। मालिकाना हक का विस्तार एक राजनीतिक मसला है। यहां एक बडी आबादी मध्यम वर्ग की है। सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबन्धन में सरकारी, अधिकारी मजदूर वर्ग शामिल है। निजी निवेशकों के साथ आम जनता की भागीदारी नहीं होती है। यदि सुधार व विनिवेश से शक्ति संतुलन गडबडाता है तो सामाजिक आर्थिक स्थिति गडबडाती है परन्तु सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है। यह मसला बाजार व निजीकरण से संबंधित हैै। आम आदमी के लिए नुकसानदायक है। निजीकरण विनिवेश का ही एक वृहद रूप है। आज बजटीय आवश्यकताओं के लिए विनिवेष पैसा लाने का तरीका बन गया परन्तु विनिवेश में अन्धानुकरण देश के लिए नुकसानदायक है।
अर्थव्यवस्था दावों और नीतियों के सहारे नहीं चलती है। मौजूदा समय में किसी भी बाजार को देख लीजिए साफ पता चल जाएगा कि सरकार का नियंत्रण कहीं नहीं है बाजार की शक्तियां हावी है। अमीर, अमीर हो रहा है। भारत के अमीरों ने 23 साल में उतना नहीं कमाया जितना 24 महिनों में। सरकार उत्पादन, निर्यात व्यापार को बढाकर रोजगार के अवसर सृजित करें ।
मुद्रास्फिति की दर बढ रही है इसके लिए सरकार व उसकी नीतियां दोषी है। क्यों नहीं सरकार बढते दामों पर नियंत्रण के लिए उपाय करती। केवल यूक्रेन युद्ध व पूर्व में कोरोना का बहानों से काम नहीं चलेगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)