लेखक : लोकपाल सेठी
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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कर्नाटक में जब 2018 के विधान सभा चुनाव हो रहे थे तब राज्य में सिद्धारामिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जब भी किसी चुनाव सभा को संबोधित करते थे तो एक बात जरूर दोहराते थे कि शासन में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सिद्धारामिया सरकार को 10 प्रतिशत वाली सरकार कहते थे। उनका कहना था की सरकार में कोई काम रिश्वत दिए बिना नहीं हो सकता।
चुनावों के बाद राज्य में अल्प समय के लिए बीजेपी सरकार बनी। बाद में कांग्रेस - जनता दल (स) की मिली जुली सरकार बनी। उन्हीं दिनों राज्य के सरकारी काम के ठेकेदारों के संगठन के एक नेता प्रधान मंत्री को एक पत्र लिख कर राज्य में भ्रष्टाचार के बारे में विस्तार से बताया था। उस नेता ने लिखा था की राज्य किसी सरकारी योजना का ठेका कम से कम 40 प्रतिशत रिश्वत दिए बिना नहीं मिल सकता। इस रिश्वत में हिस्सेदारी का उल्लेख करते हुए उस ठेकेदार ने लिखा था। इस 40 प्रतिशत में 10 प्रतिशत सीधा मुख्यमंत्री को जाता है। 15 प्रतिशत हिस्सा स्थानीय विधायक को मिलता है ताकि वह परियोजना के बारे में विधान सभा अथवा आन्दोलन के जरिये बाधा नहीं पहुचाये। बाकी 15 प्रतिशत राशि अधिकारियों को रिश्वत देने के काम में आती है ताकि समय पर कार्य आदेश मिल सके और बिल बिना किस्सी विलम्ब के पास हो सके।
जब 2019 दल बदल के आधार पर फिर बीजेपी सरकार बनी और येदियुरिअप्पा मुख्यमंत्री बने तो इसी तरह की रिश्वत के आरोप लगते रहे। एक आरोप तो उन पर 700 करोड़ रूपये की रिश्वत का भी लगा था। पिछले साल के मध्य में जब येद्दियुरिअप्पा को हटा कर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री की कमान दी गई तो ठेकेदारों के संगठन के उसी नेता ने प्रधानमंत्री को एक और पत्र लिख कर अपने 40 प्रतिशत के आरोप को फिर दोहराया था। लेकिन बोम्मई ने इस आरोप को ख़ारिज कर दिया था तथा दावा किया था राज्य में रिश्वत के यह प्रथा बंद हो चुकी है।
पिछले दिनों एक ठेकेदार ने इसी 40 प्रतिशत से त्रस्त होकर होटल के एक कमरे में आत्म हत्या कर ली। लेकिन आत्म करने से पूर्व उस ठेकेदार ने व्हाटस एप के जरिये एक सन्देश भेज कर यह आरोप लगाया कि वे राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री के एस ईश्वरप्पा के चलते आत्महत्या कर रहे है। संतोष पाटिल नाम का यह ठेकेदार बीजेपी का कार्यकर्ता था। इसी के चलते उसे एक सरकारीयोजना का ठेका मिला था। लेकिन योजना का काम पूरा होने के महीनों बाद उसे ठेके के कार्य का भुगतान नहीं मिला। उसने आरोप लगाया था की ठेके की राशि के भुगतान के लिए मंत्री उनसे 40 प्रतिशत की रिश्वत मांग रहे है, जो वे देने की स्थिति में नहीं था। जैसे की स्वाभाविक था विरोधी कांग्रेस नेताओं ने तुरंत मंत्री की इस्तीफे की मांग की। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि वे जाँच के बाद मंत्री के भविष्य पर फैसला लेंगे।
जैसे कि उम्मीद थी ईश्वरप्पा ने इस आरोप को परले सिरे से ख़ारिज कर इस्तीफ़ा देने से इंकार कर दिया। दो दिन तक मंत्री महोदय के इस्तीफे पर संशय बना रहा और सारा मामला पार्टी आला कमान तक गया और वहीं से ईश्वारप्पा को अपने पद से इस्तीफ़ा देने का स्पष्ट निदेश दिया गया। लेकिन इसके बाद भी राज्य में 40 प्रतिशत रिश्वत की बहस जारी है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री तथा कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे एच डी देवगौड़ा ने इस बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सरकारी ठेकों के लिए रिश्वत देने की बात की बात कोई नई नहीं है। यह दशकों से चली आ रही है तथा इससे सामान्य माना जाने लगा है।
इस प्रकरण में के बात और सामने आई है कि संबंधित विभाग के मंत्री थोड़ी राशि के ठेके, जो बिना टेंडर के होते हैं अकसर ठेकेदारों को ऐसे काम जुबानी दे देते है और यह मान लिया जाता है कि औपचारिकतायें बाद में पूरी कर ली जाएँगी। इस बात को राज्य में लम्बे समय तक मंत्री रहे रमेश जार्कीहोली ने उजागर किया है। आत्महत्या करने वाले ठेकेदार संतोष पाटिल के मामले में भी ऐसे हुआ था। उन्होंने मंत्री महोदय की मौखिक आदेश पर इस 4 करोड़ रूपये की परियोजना पर काम शुरू करके समय पर पूरा कर दिया था जबकि इस परियोजना को आवंटित होने तथा कार्य आदेश की औपचारिकतायें अभी पूरी नहीं हुई थी। समझा जाता है की इन औपचारिक्तायों पूरा करने के लिए ही मंत्री जी 40 प्रतिशत रिश्वत माँग रहे थे जिसमें अन्यों की हिस्सेदारी भी शामिल थी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)