गरीबों की थाली, मध्यम वर्ग की जेब खाली

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

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भारत सरकार ने अगले 25 साल की आर्थिक रूपरेखा बनाई है। कोरोना महामारी के कारण आई महामंदी ने बेरोजगारों, बेघरों की संख्या में भारी वृद्धि की है। लघु कारोबारों को धराशाही कर दिया है। ऐसे में लम्बे दौर का इंतजार करने की अपेक्षा अल्प अवधि में इन समस्याओं के संबंध में कदम बढाकर हल निकालने की कोशीश की जानी आवश्यक है। अर्थशास्त्री जान मेनार्ड कीन्स एवं कीन्स के सुझावों तथा सीएमआईई (सेंटर फार मानीटरिंग इंडियन इकानामी) की रिपोर्ट 2018 से 2021 की मंदी, 7.2 प्रतिशत बेरोजगारी, थोक व खुदरा मंहगाई 6.9 प्रतिशत, राजकोषीय घाटे, ईंधन व ऊर्जा की कीमतों में 20 प्रतिशत वृद्धि जिनकी वजह से अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत सिकुडन आई है व सबसे बुरी मार गरीबों व मध्यम वर्ग को झेलनी पड़ी है, को ध्यान में रखकर आयोजन व प्लानिंग आवश्यक है।

सरकार ने पांच साल में 60 लाख रोजगार बढना, इन्फ्रास्ट्रकचर के किये जा रहे है प्रयास व प्राधान को ध्यान में रखकर किया है। घाटे के बजट की स्थिति में प्रावधान व खर्च में अन्तर रहता है। इस अविध कार्य मांगने वाली जनसंख्या में भी वृद्धि होगी। सरकार को उम्मीद है, निजीकरण की योजना से सरकार को पैसा मिलेगा। सरकार का कथन है कि टैक्स नहीं बढ़ाया गया, यही बड़ी राहत है। सरकार ने ग्रामीण मनरेगा के प्रावधान को 25 प्रतिशत घटाया है, शहरी मनरेगा योजना लागू नहीं की। इन्फ्रास्टक्चर विकास के बहुआयामी असर पर भरोसा किया है।

बेरोजगारी और मंहगाई से आम जनता मुश्किल में है। सेवा क्षेत्र विकास की बात की जा रही है परन्तु उसका रोजगार में योगदान कम है। कृषि क्षेत्र जिसमें लगभग 65 प्रतिशत आबादी जुड़ी हुई है, उसका आधुनिकरण नहीं हुआ, भारतीय अर्थव्यवस्था में अंशदान 50 प्रतिशत से गिरते हुए 15 से 20 प्रतिशत के बीच आ गया। प्रत्येक प्रकार के करों व शुल्कों के बावजूद अच्छी चिकित्सा व शिक्षा की सुविधा अधिकांश आबादी को नहीं है। कोरानाकाल में बड़े पैमाने पर नौकरियां गई, वेतन कम हुए।

दूसरी ओर इस काल में 11 फीसदी करोड़पति बढ़े, सात करोड़ से अधिक नेटवर्थ वाले परिवारों की संख्या बढ़कर 4.58 लाख हो गई। 2020 में 102 अरबपति थे, 2021 में 142 हो गये, बच्चों को शिक्षा के लिए विदेश भेजना जिनकी प्राथमिकता है। तीन बड़े शहर मुंबई, कलकत्ता, दिल्ली में ही 50 हजार के लगभग परिवार रहते हैं। 2026 तक ऐसे अमीर परिवार वर्तमान नीतियों के अनुसार 30 प्रतिशत बढ़ेंगे और संख्या 6 लाख हो जायेगी। इनमें 12 फीसदी सुपररीच है। 25 प्रतिशत अमीर हर 3 माह में कारें बदल देते है। देश के बैंकों में विलफुल डीफाल्टर्स में 2.19 लाख करोड़ फंसे है। सरकार ने कारपोरेट सेक्टर को टैक्स में रियायतें दी है, बजट में इनकी तरक्की पर ही जोर है। पहली बार गरीब, निम्न मध्यम व मध्यम वर्ग की आमदनी घटी है। अमीर ज्यादा अमीर और गरीब ज्यादा गरीब हो रहा है। इस सरकार के कार्यकाल में गैर बराबरी बढ़ी है। 84 प्रतिशत भारतीयों की आय में गत तीन वर्षो में गिरावट आई है।

2004 तक कुल आबादी में गरीबी रेखा के नीचे के लोगों का अनुपात घट रहा था। 1994 से 2004 के बीच भी संख्या 1.8 करोड़ कम हुई, 2004-05 से 2011-12 के बीच 14 करोड़ लोग गरीबी रेखा से उपर आये, अनुपात घटकर 22 फीसदी रह गया। हर साल 75 लाख नई नौकरियां दी गई, मजदूरी की मंहगाई की तुलना में ज्यादा रही। 2012 के बाद 2019 तक गरीबों की संख्या डेढ करोड़ बढ़ गई, इसका सबसे बड़ा कारण गलत आर्थिक नीतियां रही। सबसे बड़ी गलती नोटबंदी, जीएसटी गलत तरीके से लागू की गई। कारपोरेट टैक्स की दरों में कटौती, वोट के लिए इंकम टैक्स में बड़ों को छूट। एक संकट (कोविड) का अलग-अलग वर्ग पर विपरीत असर, दो महिने तक दुनिया में सख्त अनियोजित लोकडाउन जब सिर्फ 600 मामले थे। कोविड के कारण दुनिया की विकास दर शून्य से 3 फीसदी आई लेकिन भारत में 2020-2021 में विकास दर 7.3 फीसदी पर पंहुच गई। पैकेज में भी खामियां थी, वह भी 2 सालों में केवल चार फीसदी, शिक्षा पर व्यय 6 प्रतिशत के स्थान पर 3 प्रतिशत के ईर्द गिर्द रहा है। विश्व असमानता रिपोर्ट के अनुसार निचले 50 फीसदी लोगों की औसत आय पिछले साल घटी। सीएमआईई के अनुसार रोजगार देने के आंकडे सही नहीं है।

सरकार बेरोजगारी बढ़ने और गैर बराबरी बढ़ना स्वीकार नहीं कर रही। अपने आंकडे जारी नहीं कर रही है। बेरोजगारी से आत्महत्यायें बढ़ी है। हकीकत यह है कि देष््रा की अर्थव्यवस्था पांच वर्षो से सुस्त है, बेरोजगारी चार दशकों के चरम पर है, 2.1 करोड़ नौकरियां घट गई, मध्यम व निम्न वर्ग की कमाई घट रही है, मंहगाई लगातार बनी हुई है। उच्च मध्यम वर्ग व अमीर वर्ग की आय बढ़ रही है, असमानता बढ़ रही है। मंहगाई, समायोजित करें तो कृषि क्षेत्र में भी नियोजन आवंटन घटा है। सबसे तेज बढ़ने वाली इकोनोमी के स्थान पर हम सबसे तेज गिरने वाली इकोनोमी में से है। गरीबों की थाली खाली है, मध्यम वर्ग की जेब खाली है, मध्यम वर्ग पिस रहा है। भारत में दुनिया के 25 प्रतिशत कुपोषित लोग है, 60 प्रतिशत पोषक आहार का खर्च वहन नहीं कर सकते।

2022 में प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी करने, 2 करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष देने की बात कही थी। महामारी में सबसे ज्यादा प्रभावित सबसे ज्यादा कमजोर वर्ग हुआ। निजीकरण एवं एस्टेट मनिटाइजेशन का भी रोजगार पर विपरीत असर पडेगा। आर्थिक सर्वेक्षण बजट से स्पष्ट है कि मंहगाई, बेरोजगारी, कृषि, एमएसएमई और कल्याणकारी योजनाओं की अनदेखी कारपोरेट को तवज्जो रहेगी। आम लोगों के लिए मंहगाई ज्यादा रहेगी और आमदनी कम। असमानता बढ़ेगी, अर्थव्यवस्था में अपेक्षित सुधार नहीं होगा, पटरी पर नहीं लौटेगी। 3.2 करोड़ लोग मध्यम वर्ग से गरीब वर्ग में आ चुके है।

राजस्व बढ़ाने के लिए सरकार को अमीरों पर कारपोरेट सेक्टर्स टैक्स, आयकर संपत्ति कर, सरचार्ज बढ़ाना चाहिए। कृषि व एमएसएमई रिवाइवल के लिए कारगर कदम उठाने चाहिए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)