पृथ्वी पर सजीव ही नहीं जल के बिना निर्जीव का अस्तित्व भी अकल्पनीय है

लेखक : प्रशांत सिन्हा

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

www.daylife.page 

ब्रह्मांड में उपस्थित पांच तत्व पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि और जल हैं। कहा भी गया है कि हमारा शरीर इन पांच तत्वों से मिलकर ही बना है और वह इन पांच तत्वों में ही विलीन हो जाता है। हमारे संपूर्ण शरीर की रचना में इनकी समान रुप से भूमिका होती है। इनमें जल एक ऐसा तत्व है जो कि प्राणी को मां के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु तक जरूरी है। जल से ही मां के गर्भ में प्राणी का पालन पोषण शुरू होता है और मृत्यु होने पर इसमें ही विलीन हो जाता है। सच तो यह भी है और मेरा मानना भी है कि पृथ्वी पर सजीव तो सजीव बल्कि निर्जीवों का अस्तित्व भी जल के बिना अकल्पनीय होगा।

पृथ्वी के लगभग तीन चौथाई भाग में जल किसी न किसी रुप में विद्यमान है। प्रचुर मात्रा में जल का उपलब्ध होना शुभ संकेत है। किंतु उसका बड़ा भाग ध्रुवों में जमीं बर्फ और समुद्र के खारा पानी के रुप में है। हालांकि इसमें से केवल एक फीसदी या इससे भी कम पानी पीने के लिए ही उपयुक्त है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि हम पानी की बचत करें एवं उसे दूषित होने से भी बचाएं ताकि भावी पीढ़ी के लिए पानी का संकट पैदा न हो । इसमें भी दो राय नहीं है कि " जल ही जीवन है "। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। असलियत यह भी है कि आज

भारत के कई शहर पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। देश के बत्तीस शहरों में से बाइस शहर ऐसे हैं जो पानी की भीषण किल्लत से गुजर रहे हैं। ग्यारह अरब से ज्यादा लोग वैश्विक तौर पर स्वच्छ पेय जल की पहुंच से दूर हैं। पांच में से एक व्यक्ति की पेय जल तक पहुंच ही नही है। बहुत लोग जहरीले पानी की वजह से त्वचा संबंधित बीमारियों से जूझ रहे हैं। तीस प्रतिशत लोग असाध्य रोगों की चपेट में हैं। 

गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी आदि देश की अधिकांश नदियों में कारखानों का प्रदूषित रसायन गिर रहा है। इससे वे प्रदूषित हो  हैं। कुछ वर्ष पहले के आंकड़े के अनुसार 275 नदियों के 302 प्रखंड, शहरी और औद्योगिक कचरे के कारण प्रदूषित हैं। नदियों के प्रदूषित होने से पशु पालन पर भी असर पड़ा है। दूषित पानी के चलते जानवर समय से पहले मरने लगे हैं। गांवों में तेजी से कैंसर, एलर्जी, पथरी, रसौली, ट्यूमर और अन्य त्वचा रोग पैर पसार रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहने वाली हिंडन, काली एवं कृष्णा नदी इसका जीता जागता उदाहरण है। दुख तो इस बात का है कि मानव ने  अपने स्वार्थों के वशीभूत होकर और भविष्य में होने वाले दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ होने के कारण जल को औद्यौगिक कचरे और मल मूत्र आदि से निरंतर प्रदूषित किया है और लाख चेतावनियों के बावजूद इस ओर से वह आंख मूंदे हुए हैं। यदि हम 

जल के उचित संरक्षण में कामयाब हो सके तो निश्चित है कि मानव जीवन और सभ्यता का भी संरक्षण कर पाने में समर्थ हो सकेंगे। समय की मांग है कि हम जल में मल- मूत्र , रसायन और जहरीले पदार्थ नही डालें । यही नहीं हमें जल को शुद्ध और स्वच्छ रखने के लिए भी नए उपाय ढूंढने चाहिए। विडम्बना तो यह है कि अभी तक दुनिया के वैज्ञानिक जल का कोई विकल्प भी नहीं खोज सके हैं।

इसमें संदेह नहीं है कि ‌साधारणतः जल मानव को भूगर्भीय और धरातलीय स्रोतों से प्राप्त होता है। भूगर्भीय जल कुओं और नलकूपों से भी मिलता है। झील, तालाब , नदियों का जल मानव ,जीव- जंतुओं और वनस्पति के उपयोग में भी आता है। असलियत में समुद्र में विभिन्न प्रदूषित नदियों का जल मिलने से वह भी भयंकर रुप से प्रदूषित हो रहा है। समुद्री जीव जंतु इस प्रदूषित जल के प्रभाव से ग्रसित हैं और आयेदिन वे मौत के मुंह में जाने को विवश हैं। उनकी संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है लेकिन इस ओर किसी का कोई ध्यान ही नहीं है।

‌स्पष्ट है कि हमारे पेय जल के स्रोत सीमित हैं। यह जानते हुए भी हम अपने क्षणिक लाभ के लिए इन स्रोतों को प्रदूषित कर खुद अपने लिए ही नहीं,अपनी भावी पीढी़ के लिए भी मुसीबत पैदा कर रहे हैं। प्रदूषित जल से मानव जाति के साथ- साथ जीव- जंतुओं और वनस्पति को भी भयंकर नुकसान हो रहा है। जरूरत है कि ‌जनसाधारण को जल प्रदूषण के स्रोतों और इससे होने वाली हानियों व जल प्रदूषण को रोकने के लिए बने कानूनों को प्रभावी बनाने के उपायों के बारे में प्रशिक्षित कर जल प्रदूषण के खतरे के प्रति चेतना जाग्रत की जाये। तभी क्षणिक ही सही, कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)