पूर्व सांसद लालचन्द कटारिया व वर्तमान विधायक निर्मल कुमावत ने भी की थी अभिशंषा
शैलेश माथुर की रिपोर्ट
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सांभरझील (जयपुर)। प्रदेश का सबसे पुराना उपखण्ड व उप जिला का दर्जा प्राप्त सांभर को जिला घोषित करवाने के लिये क्षेत्र की जनता को यूं तो करीब छह दशक से इंतजार बना हुआ है, लेकिन वर्ष 2012 में मीडिया पहल पर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष शेख शमीमुलहक, सचिव नरेन्द्र कुमार शर्मा व जिला बनाओ संघर्ष समिति के संयोजक रहे स्वर्गीय सत्यनारायण मिश्रा की तरफ से प्रतिवेदन को विस्तृत विवरण के साथ पुस्तक के रूप में संजोकर उस वक्त खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को प्रस्तुत कर उनसे पुरजोर तरीके से प्राथमिकता के आधार पर सांभर को जिला बनाये जाने का प्रबल पक्ष रखा था।
खुद मुख्यमंत्री गहलोत ने उस वक्त समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुये बार एसोसिएशन की ओर से गठित जिला बनाओ संघर्ष समिति में शामिल मौजूद पदाधिकारियों को इसके लिये भरोसा भी दिलाया गया था, लेकिन विगत दस साल से यह प्रतिवेदन शासन सचिवालय में विचाराधीन पड़ा हुआ है। यह लिखने योग्य है कि तत्कालीन जयपुर ग्रामीण सांसद लालचन्द कटारिया व वर्तमान विधायक निर्मल कुमावत की ओर से भी सांभर के पक्ष में इस आशय की लिखित अभिशंषा की गयी थी जो भी मूल ही प्रतिवेदन में आज भी शामिल है।
बता दें कि सांभर के हित के लिये सदैव ही अग्रणी रहे समाजसेवी व सांभर समाज जयपुर के पदाधिकारी रहे कैलाश शर्मा ने व्यक्तिश: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात करवाते हुये अनेक दफा उनसे भी जिला बनाने का अनुरोध कर चुके है, निवर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समक्ष भी उक्त बार एसासिएशन के पदाधिकारियों ने दोबारा से प्रतिवेदन में संकलित सभी तथ्यों को दाेबारा से पेश कर सरकार को स्मरण करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
काबिले गौर की भाजपा व कांग्रेस शासन में गठित जिला बनाओं समिति के अध्यक्ष रहे तत्कालीन आईएएस परमेशचन्द्र माथुर व जीएस संधु की ओर से भी सांभर के प्रति सकारात्तक टिप्पणी के साथ सरकार को अपनी रिपाेर्ट दे चुके है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक आधार बेहद ही कमजोर होने के कारण सरकार पर दबाव बनाने में असफल राजनेताओं की वजह से कहीं यह मामला खटायी में नहीं पड़ जाये, क्योंकि इसी बजट सत्र के बाद खुद मुख्यमंत्री गहलोत ने फिर से प्रदेश में नये जिले बनाये जाने के लिये कमेटी का गठन भी कर दिया है, ऐसे में जबकि सांभर जिले के लिये प्रमुख स्थान रखता है तो कहीं कमजोर पक्ष की वजह से क्षेत्र के लोगों को यह सौगात मिलने से वंचित नहीं रह जाये, इसके लिये वर्ष 2012 के प्रतिवेदन की प्रति सरकार को सौंपने व उन्हें स्मरण दिलाये जाने के लिये जागरूकता पैदा करना नितान्त आवश्यक है अन्यथा कहीं अब पछताये हौत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत वाली कहावत चरितार्थ नहीं हो जाये।