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जयपुर। समय की मार दर्द भी देती है तो कभी सुख भी देती है। ऐसी ही है 12 साल की लवली की कहानी। कुछ साल पहले तक लवली की जिंदगी में सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था, पिछले 4 साल से वह रीढ़ की हड्डी की गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। करीब 1 साल से रायबरेली निवासी लवली को चलने फिरने में काफी दिक्कत होने लगी।
8 सदस्यीय परिवार में लवली के पिता मोतीलाल जी गार्ड का काम करते हैं। इसलिए पैसे के अभाव में इलाज कराने में सक्षम नहीं थे। इस दर्दनाक दौर में कहीं से उम्मीद की किरण के रुप में नारायण सेवा संस्थान सामने आया। डॉ. चिरायु पामेचा द्वारा लवली की सर्जरी श्रीराम स्पाइन अस्पताल उदयपुर में संस्थान के माध्यम से की गई, जिसका खर्च संस्थान ने वहन किया।
नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल कहते है कि हमारी भूमिका बस इतनी है कि हम दिव्यांगों को मजबूत बनाएं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। आज का युवा अपने देश की किस्मत बदलने की काबिलियत रखता हैं। इसलिए दिव्यांगों को भी समान अवसर देना आवश्यक है ताकि परिवार, समाज और देश का कल्याण हो सके।
जब डॉक्टर इलाज करने से मना कर दे तो मरीज क्या करेगा? ऐसी ही दूसरी कहानी है पंजाब के रहने वाले 13 साल के राजकुमार की, जो रीढ़ की गंभीर बीमारी से जूझ रहा था। पिछले एक साल से फाजिल्का के राजकुमार को चलने में परेशानी होने लगी थी और उसकी गर्दन भी टेढ़ी हो गई थी। राजकुमार के पिता देवीलाल जी एक स्कूल में ड्राइवर का काम करते हैं, जिन्होंने अपने बच्चे को कई जगह दिखाया लेकिन डॉक्टर ने इलाज के लिए मना कर दिया कि राजकुमार का इलाज संभव नहीं है।
संस्थान ने उदयपुर के श्री राम स्पाइन अस्पताल में राजकुमार का चेकअप करवाया, जहां डॉ. चिरायु ने सर्जरी की सलाह दी। लेकिन 3 लाख रुपये की कमी के कारण इलाज संभव नहीं था, जिसमें उन्हें संस्थान के माध्यम से उम्मीद मिली। राजकुमार की सर्जरी उदयपुर के अस्पताल में की गई, जिसका खर्च संस्थान ने वहन किया।
डॉ. चिरायु पामेचा ने बताया कि राजकुमार और लवली कम उम्र के कारण शारीरिक रूप से कमजोर थे। इसलिए उनकी देखभाल करना, सर्जरी करवाना और फिर उनके ठीक होने का इंतजार करना सभी प्रक्रिया का हिस्सा है। इस कारण से हमारी टीम के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह दिव्यांग बच्चों की प्रगति की निगरानी करे।