लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
पूर्व अध्यक्ष-विश्वविद्यालय महाराजा कालेज छात्र संघ
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प्रतिदिन समाचार पत्रों में राजस्थान विश्वविद्यालय, कोटा विश्वविद्यालय एवं अजमेर विश्वविद्यालय में प्रशासनिक अनियमिताओं, भ्रष्टाचार, अवैध नियुक्तियों, पर्चे आउट होने, प्रोफेसर व असिस्टेंट प्रोफेसरों द्वारा कोचिंग सेन्टर चलाने, पास बुक एवं महत्वपूर्ण व मुख्य प्रश्नों के नाम पर अपने चहेतों को परीक्षा पत्रों की जानकारी कराने, बगैर फेकल्टी उंची फीस लेकर कोर्सेस चलाने, अनाप शनाप एस.एफ.एस. कोर्स की फीस बढ़ाने आदि के समाचार सुर्खियों में आ रहे है। उनमें और अधिक बढ़ोतरी की संभावना है। इससे राज्य के उच्चस्तरीय शिक्षा केन्द्र विश्वविद्यालयों में अध्ययन अध्यापन की साख पूरी तरह गिर चुकी है।
एक समय था जब राजस्थान विश्वविद्यालय की साख थी। उच्चस्तर के विख्यात शिक्षाविद को उचाधिकार समितियों द्वारा कुलपति लगाया जाता था। सरकार की मनमर्जी नहीं चलती थी। राजस्थान विश्ववद्यालय के कुलपति प्रो. जी.एस.महाजनी, प्रो. जी.सी.चटर्जी, डा. मोहन सिंह मेहता, उदयपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के.एल.श्रीमाली, जोधपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वी.वी.जाॅन, पुलिस विश्वविद्यालय के कुलपति एम.एस. कुमावत एवं कोटा विश्वविद्यालय के कुलपति बी.एम.शर्मा, प्रिंसिपलों में धाकड़ प्रो. के.एल.वर्मा, डा. मथुरालाल शर्मा, डा. सोमनाथ गुप्ता, डा. आर.एस.कपूर जैसे शिक्षाविदों ने प्रान्त के इन विश्वविद्यालयों की कीर्ति व महत्व को बढ़ाया था।
राजस्थान विश्वविद्यालय की देश विदेश में ख्याति थी। अन्य देशों प्रदेशों के छात्र शिक्षा ग्रहण करने को आते थे। आज राजस्थान विश्वविद्यालय की स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि एमआरएचडी में 69 वीं रैंक मिली है। कई राज्यों ने नियुक्तियों की विज्ञप्तियों में यहां तक कहा है कि राजस्थान विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण छात्र एप्लाई नहीं करें। गिरते शैक्षिक स्तर के प्रमुख बिन्दुओं पर यदि गौर किया जाये तो यह कटु सत्य है कि कुलपति की नियुक्ति में राजनैतिक विचारधारा मुख्य कारण बन गया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित योग्यता नहीं रखते। यह भी कटु सत्य है कि जो अभ्यार्थी आरपीएससी में शिक्षक पद के लिए रिजेक्ट हो जाता है उसका यहां असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर चयन कर लिया जाता है।
सीनेट और सिंडिकेट के चुनाव नहीं होते और यदि होते है तो उनमें पूर्णतया राजनीति छा गई है। सत्ताधारी पार्टी के 2 एमएलए, राज्यपाल व कुलपति के एक-एक मनोनीत सदस्य, अपने राजनैतिक संरक्षकों के आदेशों की पालना में लगे रहते है। कुलपति के अनुभव संबंधी दस्तावेजों का सत्यापन नहीं होता। शिक्षक कक्षाओं में पढ़ाने नहीं जाते। वित्तीय अनियमितताओं को रोकने संबंधी नियमों का कड़ाई से पालन नहीं किया जाता। वर्षो से नीचे से पदोन्नत कार्मिकों को बदला नहीं जाता, उनको कक्षाओं को चलाने के अनधिकृत कार्यो में लगाकर अतिरिक्त पैसा दिया जाता है। अदालती आदेश के बावजूद छात्रों की तय 75 प्रतिशत उपस्थिति का पालन नहीं किया जाता। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देशों व मापदण्डों का पालन नहीं होता। उनको कचरे की टोकरी में फैंक दिया जाता है। उनकी अनुपालना नहीं हो पाती क्योंकि इसके लिए भ्रष्ट तरीके से नीचे से उपर, प्राध्यापक से कुलपति तक को व अफसरों को लगाया जाता है।
प्रदेश में विश्वविद्यालय में कुलपति स्क्रीनिंग कमेटी के मैम्बर को पूर्व में उजागर कर दिया जाता है। कुलपति पद के लिए किन-किन प्राध्यापकों ने प्रार्थना पत्र दिये है, वे भी उजागर होते रहते है। पूरी प्रक्रिया व स्थिति को उजागर कर दिया जाता है। स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा बनाये गये पैनल में अंतिम स्थान प्राप्त करने वाले व्यक्ति को बगैर कोई कारण बताये नियुक्ति मिलती है। अन्य मेरीटोरियस व्यक्तियों को रिजेक्ट कर दिया जाता है। उसकी भी कोई वजह नहीं बताई जाती।
राजस्थान विश्वविद्यालय के भूगोल विभागाध्यक्ष, बीकानेर के सरकारी महाविद्यालय के प्राचार्य, 3 प्रोफेसरों, कोचिंग संचालक, विश्वविद्यालय के सीक्रेसी विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों को एसआजी ने पेपर लीक प्रकरण में गिरफ्तार किया है। जिस विश्वविद्यालय में बगैर कुलपति व प्रिंसिपल के आदेश के पुलिस घुस नहीं सकती थी, उसके हालात यह है कि अदने से सिपाही को देखकर कुलपति व अधिकारी महत्वपूर्ण मीटिंगों व कार्यो को छोड़कर, अपनी सीट से उठकर बाहर आकर उसकी आवभगत करते है। घोषित परीक्षा परिणामों के अनुसंधान अभी जारी है। अनुमान है कि परीक्षाअें में बरती जा रही अनियमितताओं का और अधिक भण्डाफोड होगा। पेपर जिनमें नकल कराई गई है अथवा आउट कराये गये है, उन पेपर्स की परीक्षायें दुबारा कराई जावेंगी। विद्यार्थियों को मानसिक और बौद्धिक रूप से परेशान होना पड़ेगा। विश्वविद्यालय में प्रशासनिक व वित्तीय अनियमितओं के आरोप बढ़ेगें। जिन छात्रों को अन्यंत्र उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लेना है, उनका भविष्य दाव पर लग जायगा।
कोचिंग संचालकों की लिप्तता ने शिक्षक धर्म व परीक्षा विभाग की गोपनीयता को समाप्त कर दिया है। यह भण्डाफोड तो तब हुआ है जब कोटा विश्वविद्यालय में एसीडी के छापे पड़े और नियुक्तियों में अनियमिताएं सामने आई। कुलपति तक ने फर्जी प्रमाण पत्र देकर नियुक्तियों के लिए प्रमाण पत्र जारी किये है। राज्यपाल अपने प्रान्त का कुलाधिपति होता है। बाहर से आने वाले कुलाधिपति अपने साथ अपना पूरा स्टाफ ला रहे हैं। नये पद सृजित किये गये हैं और शिक्षक, सहायक कुलपति और रजिस्ट्रार तक बनाये गये हैं। सहायक रजिस्ट्रार, प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष बन रहे हैं।
एसएफएस कोर्स के नाम पर विश्वविद्यालय में लूट मची है। पंचवर्षीय लाॅ कालेज के छात्रों को पांच लाख रूपये फीस के देने होंगे ओर अगले वर्ष से 6 लाख रूपये देने होंगे। सीसीटी कोर्स में प्रशिक्षित प्राध्यापक नहीं है। जो परीक्षार्थी बैंक से ऋण लेकर प्रवेश ले रहे है, उनके लिए मुसिबतें खड़ी हो जायेंगी। सर्वाधिक पीड़ास्पद स्थिति तो यह है कि बगैर फैकल्टी, बगैर पढ़ाई, बगैर इम्तिहान लिये अनक्वालीफाईड टीचर्स छात्रों को उत्तीर्ण कर रहे हैं और लाखों रूपये अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं। यहां तक की इन कोर्सो के प्रिन्सिपल भी क्वालीफाईड नहीं है, विशेष की डिग्रियां नहीं है।
आखीर देश की भावी पीढ़ी के भविष्य से सीधे जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय व प्रश्न पर सरकार व सिविल सोसायटी को पहल करनी होगी और मौजूदा व्यवस्था में तत्काल सुधार लाना होगा। अन्यथा भावी पीढ़ी केवल डिग्रीधारी अशिक्षित युवकों की होगी। विश्वविद्यालय ज्ञान के संग्रहालय होते है यह सत्य है परन्तु सरकार में इसे महत्व नहीं दिया जा रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)