केरल में राजनीतिक हत्याओं का नया दौर

लेखक : लोकपाल सेठी

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)

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केरल में राजनीतिक हत्याएं कोई नई बात नहीं है। एक समय था जब सत्तारूढ़ कांग्रेस और वामपंथी दलों, विशेषकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता अपने अपने प्रतिद्वंदियों की हत्या सरेआम कर देते थे। ये कभी या कभी अधिक हुई लेकिन कभी रुकी नहीं। पुलिस ने हत्या का मामले दर्ज करती लेकिन बदलते राजनीतिक माहौल में जाँच की गति भी बदल जाती थी। फिर अदालतों में  सुनवाई की गति भी अक्सर धीमी रहती थी। बहुत कम मामलों ने  अपराध में लिप्त राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को सजा होती थी। 

लेकिन पिछले एक साल से राजनीतिक  हत्याओं का रूप बदल गया है। अब ये राजनीतिक-कम-साम्प्रदायिक हो गई है। जिसमें एक तरफ कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन है, दूसरी ओर हिंदूवादी संगठन। हिन्दू संगठनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख है। लगभग एक हफ्ता पूर्व राज्य में दो ऐसी राजनीतिक-कम- साम्प्रदायिक हत्याएं हुई, जिसे देखते हुए राज्य के पुलिस बल के बड़े अधिकारियों ने सारे राज्य में एक प्रकार का अलर्ट जारी कर दिया। जिला पुलिस  अधिकारियों को यह निदेश दिया गया कि वे अपने अपने इलाके में इन संगठनो के कार्यालयों के आस पास सुरक्षा के लिए पुलिस बल तैनात कर दें। जरूरत समझे जाने पर इलाके में इन संगठनों के प्रमुख नेताओं को सुरक्षा भी दे। 

कुछ वर्ष पूर्व जब स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) पर देश में प्रतिबन्ध लगा दिया तो इस कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन से जुड़े लोगों ने पीपल्स फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पी ऍफ़आई) नाम का नया संगठन बना लिया। फिर इसी संगठन ने अपने पोलीटिकल फ्रंट के रूप में एक नया राजनीतिक दल सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (एसडीपीई).  सिमी का गठन भी दक्षिण के एक अन्य राज्य कर्नाटक में  हुआ था तथा बरसों तक इसका मुख्य केंद्र तटीय मंगुलुर का मुस्लिम बहुल इलाका भटकल में रहा। 

इसी प्रकार जब सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो केरल में इसके कार्यकर्ताओं ने पीएएफआई और एसडीपीआई का गठन कर अपनी गतिविधियों जारी रखीं, यद्पि कमोबेश सभी राज्यों में इन दोनों संगठनो के इकाईयां मौजूद है पर सबसे अधिक दक्षिण के राज्यों में, विशेषकर केरल में ज्यादा सक्रिय है। दक्षिण के इन राज्यों में जब किसी हिंदूवादी संगठन के नेता की हत्या होती है तो सबसे पहले शक इन दोनों से जुड़े लोगो पर ही जाता है। उन्हें गरिफ्तार किया जाता है। पुलिस अक्सर अदालत में उनका अपराध सही साबित करने में सफल रहती है। दक्षिण में कर्नाटक एक ऐसा राज्य है जहाँ संघ, बीजेपी और इसके अन्य संगठन काफी मजबूत है। 

केरल में बीजेपी आगे नहीं बढ़ सकी लेकिन संघ और विश्व हिन्दू परिषद  काफी  मजबूत है। पिछले हफ्ते अलपुझा जिले में एसडीपीआई के जिला महसचिव के एस शान की दिन दिहाड़े हत्या कर दी गई। वे जब घर लौट रहे थे  तो एक कम आबादी वाले इलाके में  एक कार ने उनके स्कूटर को पीछे से टक्कर मारी। जब वे नीचे गिरे तो कर पर सवार लोगों ने चाकू जैसे हथियार से उनकी हत्या कर दी। अभी 12 घंटे बीते ही थे कि अगले दिन अलख सवेरे इस इलाके में बीजेपी के ओबीसी मोर्चे के अध्यक्ष रणजीत श्रीनिवास के घर पर कुछ हथियार बंद लोगों ने उनपर उस समय हमला कर दिया जब वे सुबह की सैर पर जाने की तैयारी कर रहे रहे। उनकी हत्या उनके परिवार के सदस्यों के सामने ही की गई। दोनों और से मारे गए नेता यहाँ से एक दूसरे के के खिलाफ चुनाव लड़ चुके थे। शान ने 2016  का विधान सभा का चुनाव लड़ा था और हार गए थे। श्रीनिवास ने असफल रूप से 2016 का विधान सभा चुनाव लड़ा था। 

पुलिस का कहना है कि दोनों हत्याएं पूरी तरह योजना बना कर की गयीं थी। दोनों हत्याओं  में कम से कम एक एक दर्ज़न लोग शामिल थे। हत्याएं किये जाने से पूर्व  दोनों और के लोंगों की अपने अपने संगठनों के नेताओं के साथ लम्बी लम्बी बैठकें हुई थी। हत्याओं से जुड़े  होने के शक लगभग 50 लोंगो को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई। इसीके बाद दोनों ओर के 12-12 लोगों को गरिफ्तार किया गया है। अब पुलिस उनके खिलाफ अपराध के सबूत जुटाने में लगी है। 

पुलिस का कहना है कि हत्याओं के इस ताज़ा क्रम के पीछे  इस साल फरवरी में संघ के कार्यकर्त्ता नंदू कृष्णन की हत्या है। उस समय राज्य में  विधान सभा चुनावों का प्रचार जोरों पर था। वे इसमें बहुत सक्रिय थे इसलिए पीऍफ़आई के लोगों ने उनकी हत्या कर दी। इसी का बदला लेने की लिए शान की हत्या की गई। इसी प्रकार शान की हत्या के बदले के रूप में पी ऍफ़ आई के लोंगों ने श्रीनिवास को मौत के घाट उतार दिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)