पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान
www.daylife.page
प्राकृतिक चिकित्सा वस्तुतः तत्व चिकित्सा है, जिसका शाब्दिक अर्थ है षट् तत्वों द्वारा त्रितापों (आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आधिदैहिक) का निदान एवं चिकित्सा। शारीरिक रोग भी इसी में सम्मिलित कर लिये जाते है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत महत्व, आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी तत्त्वों की मदद से सभी प्रकार की विकृतियों एवं रोगों का उपचार किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा महज रोगों के इलाज की पद्धति नहीं है बल्कि यह जीवन यापन करने की, केवल जीवनयापन ही नहीं दीर्घायु, स्वस्थ एवं आनन्दमय जीवन बिताने की एक कला है। प्राणी प्रकृति के करीब रहकर, प्रकृति के निर्दिष्ट नियमों पर निरन्तर चलकर कभी अस्वस्थ नहीं हो सकता।
जंगली पशु-पक्षियों का शरीर बड़ा ही सुन्दर, सुगठित तथा मोहक बना रहता है, आखिर क्यों? इस प्रश्न का सहज उत्तर है कि वे हमसे कहीं ज्यादा प्रकृति के नजदीक रहते हैं। वे भूमि पर सोते है, प्राकृतिक शीतल जल पीते हैं, खुले आकाश में शुद्ध हवा में सांस लेते हैं, पर्याप्त सूर्य प्रकाश ग्रहण करते हैं, खाद्य-पदार्थों के रूप में फल-फूल, पत्ते, घास जैसे प्रकृतिप्रदत्त पदार्थों को ही ग्रहण करते हैं, परिणाम यह होता है कि वे कभी अस्वस्थ नहीं होते। जब कभी उनके स्वास्थ्य में कोई गड़बड़ी उत्पन्न होती है तो प्रकृति ही वैद्य बनकर, चिकित्सक बनकर उनको रोगमुक्त करती है। इसके ठीक विपरीत थोड़ा सा भी अस्वस्थ होने पर, जो कि सर्वथा संभव होता है क्योंकि हम प्राकृतिक शक्तियों की न तो परवाह करते हैं न ही उनका सहयोग लेते हैं, तत्काल तीव्रतम औषधियों का उपयोग करने के लिए तत्पर होने लगते हैं।
ये औषधियां और आसवारिष्ट, जो कि नितान्त कृत्रिम रूप से तैयार किये जाते हैं, रक्त में मिलकर जितना रोग को दूर करने में सहायक होती हैं उससे कही अधिक विषयुक्त रसायन के रूप में काम करते हुए शरीर के ऊतकों, अवयवों और कोशिकाओं को नष्ट करती है। प्राकृतिक चिकित्सा का रहस्य वास्तव में प्रकृति ने ही दिया है। समस्त ब्रह्माण्ड की रचना प्रकृति में मुक्त अथवा संयुक्त रूप में पाये जाने वाले तत्वों से होती है। उदाहरण के लिए सोडियम, पोटेशियम, केल्सियम, फास्फोरस, आइरन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि वैज्ञानिकों के अनुसार इस ब्रह्माण्ड में जितनी भी वस्तुएं हैं चाहे वह किसी भी रूप में हैं, चाहे जीवित है या मृत, सबकी रचना इन्हीं तत्वों के आपसी संयोग से होती है। पत्थर, गैस, पानी, पशु-पक्षी, चौपायें, मिट्टी, वनस्पतियां, पेड़-पौधे, मनुष्य आदि सभी कुछ इन्हीं तत्वों के मेल से उत्पन्न होते है।
एक निश्चित दशा और निश्चित अनुपात में हाइड्रोजन ऑक्सीजन तत्व मिलते हैं तो पानी बनता है, निश्चित अनुपात में सोडियम और क्लोरीन तत्व मिलते है तो नमक बनता है, निश्चित अनुपात में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन मिलते है तो प्रोटीन का निर्माण होता है, निश्चित अनुपात में जब कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा वैसे अम्ल मिलते हैं तो वसा बनती है। मनुष्य की इकाई कोशिका होती है और कोशिका की रचना में महत्त्वपूर्ण भागीदारी प्रोटीन तथा वसा की होती है। कोशिका भित्ति, जीवद्रव्य और केन्द्रक कोशिका के अविभाज्य अंगक हैं और इन सबका निर्माण प्रोटीन और वसा से होता है।
कोशिका को जीवन देने वाले ‘‘जीन्स’’ की रचना डी.एन.ए. से होती है और डी.एन.ए. के निर्माण में फिर वही प्रोटीन तथा अन्य अकार्बनिक रसायनिक पदार्थ अग्रणी भूमिका निभाते हैं। जब तक इन रसायनिक यौगिकों का संयोग संतुलित और मानक रूप एवं स्तर में होता है शरीर ठीक ढ़ंग से काम करता हैं किन्हीं कारणों से जब इन यौगिकों और तत्वों के अनुपात में, इनके संयोग में असन्तुलन उत्पन्न होता है तो बीमारी उत्पन्न होती है। एक बार बीमारी या रोग उत्पन्न होने के बाद यदि रोग का उपचार सही ढ़ंग से करना है तो इन प्राकृतिक घटकों के असन्तुलन को दूर करना श्रेयस्कर होता है, वह भी सर्वथा प्राकृतिक ढंग से।
यही प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का दर्शन भी है और सिद्धांत भी। कोई बीमार तभी होता है जब उसकी आन्तरिक रोग प्रतिरोध क्षमता का क्षय होता है। दूसरे शब्दों में जब जीवनी शक्ति का ह्रास होता है अथवा वह अत्यंत क्षीण होती है तब रोगी से लड़ने की क्षमता घटती है। बीमार सा पीला चेहरा, लगातार सिर-हाथ पैर में दर्द, अपच और कब्ज आदि निम्न स्तर की जीवनी शक्ति के द्योतक हैं। यदि हम जीवनी शक्ति के संवर्धन में सफल हो सके तो निश्चित रूप से अपने आपको बचा सकेंगे। इसके लिए कतिपय दैनिक एवं प्राकृतिक क्रियाओं का नियोजन करना अपरिहार्य होता है। इन सभी को प्राकृतिक चिकित्सा के आयाम की संज्ञा दी जाती है। प्रकृति प्रदत्त जीवनीशक्ति के संवर्धन हेतु निम्नांकित आयामों पर ध्यान देना चाहिए- नींद, सूर्य का प्रकाश, वायु, जल, भोजन एवं जीवन शैली।
जीवन तो सभी प्राणी जीते हैं, कुछ स्वस्थ रहकर कुछ रुग्ण रहकर। यह एक स्थापित सत्य बन चुका है कि जीवनशैली स्वास्थ्य पर अमिट छाप छोड़ जाती है। हमारा उठना-बैठना, खाना-पीना, हमारा व्यवहार, हमारी वेश-भूषा, दैनिक स्वास्थ्य पर हल पल असर डालते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा का अटूट संबंध है, स्वास्थ्य से या यूं कहें कि स्वास्थ्य के पटरी से उतर जाने पर ही किसी चिकित्सा के हस्तक्षेप की आवश्यकता और उपयोगिता महसूस होती है इसलिए कहा जा सकता है कि जीवनशैली भी प्राकृतिक चिकित्सा का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। प्राकृतिक चिकित्सा से बहुत लाभ है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)